सामाजिक और पारिवारिक विखराव को रोंकने वाला निर्णय  : विजय कुमार पाण्डेय 

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न्यायमूर्ति एस.बी.एस.राठौर ने जनरल कोर्ट मार्शल के आदेश को किया रद्द: सेना कोर्ट लखनऊ

सामाजिक और पारिवारिक विखराव को रोंकने वाला निर्णय  : विजय कुमार पाण्डेय

 

पत्नी के साथ दुर्व्यवहार की शिकायत पर जनरल कोर्ट मार्शल करके सेना से बर्खाश्त किए गए कैप्टन त्रिलोक दीक्षित के बर्खाश्तगी आदेश को सेना कोर्ट के न्यायमूर्ति एस.बी.एस.राठौर ने निरश्त कर दिया l प्रकरण यह था कि 2 सितम्बर 2000 को सेना में कमीशन प्राप्त कैप्टन का विवाह 24 जनवरी 2004 को मेजर मनमीत भुसारी के साथ हुआ जिनके विरुद्ध उनकी पत्नी ने प्रताड़ना सम्बन्धी शिकायती-पत्र सेना के उच्च-अधिकारीयों को पेषित किया जिस पर आर्मी रुल 22 (1) के तहत कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी करने के बाद जनरल कोर्ट मार्शल का आदेश हुआ इसके पहले ही दोनों के बीच 20 मार्च 2007 तलाक हो गया लेकिन 17 मई 2008 के आदेश से दरकिनार कर दिया गया और दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे l उसके बाद पत्नी ने शिकायत वापस किए जाने सम्बन्धी अनेक प्रार्थना-पत्र दिए लेकिन कैप्टन त्रिलोक दीक्षित को 16 मार्च2009 को बर्खास्त कर दिया गया, सेना अधिनियम की धारा 164(2) के तहत की गयी अपील भी 14 अगस्त 2012 को रक्षा-मंत्रालय द्वारा ख़ारिज कर दी गई l

ए.ऍफ़.टी.बार एसोसिएशन के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय मीडिया को बताया कि इसके बाद कैप्टन के पास सेना कोर्ट में वाद दायर करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था इसलिए उसने 7 अगस्त 2013 को सेना कोर्ट कोलकाता में मुकदमा दायर किया किया लेकिन 23 फरवरी 2017 को हुए समझौते की कापी कोर्ट में दाखिल की, विजय पाण्डेय ने बताया कि सेना द्वारा पांच आरोप लगाये गए थे; हत्या और आत्म-हत्या का, अमर्यादित व्यवहार और खुद को गम्भीर चोट पहुँचाना शामिल थे l कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा किसमझौते के पश्चात् कैप्टन त्रिलोक दीक्षित औए मेजर मनमीत भुसारी पति-पत्नी की तरह रहने लगे और अपनी शिकायतें वापस लेने का प्रार्थना-पत्र सम्बन्धित अधिकारी को दे दिया तब उसके बाद आरोप का आधार नहीं बनता जो कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुरूप है और यदि हत्या, अमर्यादित व्यवहार या चोट पहुंचाने का प्रयास किया गया तो यह याची की मनोदशा के ठीक न होने के कारण हुआ पत्नी ने जब लिखित रूप से आग्रह किया है कि सभी कार्यवाहियां बंद की जांय तो भविष्य में पति-पत्नी के मध्य बेहतर सम्बन्धों को दृष्टिगत रखते हुए सद्भावना पूर्वक विचारण करना चाहिए था जो कि उसने नहीं किया इसलिए जनरल कोर्ट मार्शल प्रोसिडिंग सहित सभी आदेश रद्द करते हुए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया l

बार एसोसिएशन के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि वैवाहिक-सम्बन्धों में सामाजिक और पारिवारिक विखराव को दृष्टिगत रखना चाहिए और इसमें समझौते को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है l  

https://www.youtube.com/watch?v=ij2i2REOvGo&t=27s


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