जाते-जाते न्यायमूर्ति डी पी सिंह ने निभाया न्यायमूर्ति का फर्ज और कर गए कई बड़े फैसले : विजय कुमार पाण्डेय
आपके कार्यकाल का अंतिम दिन हो और उस समय भी यदि आप पहले दिन की तरह तल्लीनता से कर्म करें यह स्वयं में बहुत बड़ा संदेश है जो एक कर्मयोगी ही कर सकता है ऐसा न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने किया पेंशन के मामले में उन्होंने सेना पेंशन रेगुलेशन 14, 16, 21 और 300,(A) को उपनिवेशवादी सोच का बताते हुए लोकतंत्र और संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के विरुद्ध करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि प्रत्येक नियम-कानून संविधान की छतरी के नीचे हैं सेवानिवृत व्यक्ति की पेंशन किसी अपराध में सजा होने के बाद नहीं रोंक सकते है क्योंकि मालिक और सेवक का संबंध रिटायर्मेंट के बाद समाप्त हो जाता है एटा निवासी आदेश कुमार बहुविवाह के मामले में सेना से निष्कासित किए जाने के बाद उस आदेश को निरस्त करने के बावजूद डी एस सी उसे भर्ती के योग्य मानने से इंकार कर दिया लेकिन न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने उसे रखने का आदेश दिया विकलांगता पेंशन के कई मामले निस्तारित किए l 1953 में फ़ैजाबाद के कर्मागंव में जन्में न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह की शिक्षा-दीक्षा सरकारी स्कूल में हुई साकेत डिग्री कालेज से स्नातक ग्रहण की, 1976 में अधिवक्ता, यू पी बार काउन्सिल के दो बार सदस्य और चेयरमैन बने और लखनऊ में यू पी बार काउन्सिल का आफिस खुलवाया, 5 लाख का बीमा, 40000 के करीब निर्णय, 2003 में उच्च-न्यायालय के जज, 2015 में सेना कोर्ट में जज बने और 5000 के करीब निर्णय दिए, उनके निर्णयों में जीवन में नैतिकता, पर्यावरण, सामाजिक-सुरक्षा, महिला-सुरक्षा, बाल-सुरक्षा, आंगनबाड़ी-कार्यकत्रियों, गरीबों, किसानों,मजदूरों, शिक्षा और स्वास्थ्य इत्यादि पर बड़े निर्णय सुनाए l
कोर्ट में शिक्षक और अभिवावक की भूमिका भी निभाते थे अपने रिफरेन्स उद्बोधन में कहा परिवर्तन क्षणों में हो रहा है उसकी पहचान करना बेहद जरूरी है, संविधान एक जीवंत दस्तावेज है इसके ऊपर कोई नहीं व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर इसकी व्याख्या नहीं होनी चाहिए सेना कोर्ट में आने के बाद वे सीमा पर गए वहां पर सेना की समस्या और परिस्थिति समझी, नेवी के शिप में गए और देखा कि कितनी विषम परिस्थिति में जवान कार्य करते हैं और वायु-सेना के लडाकू विमान में बैठे जिसका प्रभाव उनके फैसलों में दृष्टव्य है उन्होंने कहा न्याय करना ही महत्वपूर्ण नहीं न्याय होते दिखना भी जरूरी है और न्याय में अपने और पराए नहीं होते प्रशासनिक सदस्यों को पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए केवल न्याय की तरफ देखना चाहिए उन्होंने बार, ड्राईवर, सहायक, पुस्तकालय प्रभारी और सभी कर्मचारियों की सराहना की और धन्यवाद दिया l
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