Friday, April 19, 2024
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कठिन सियासी दौर से गुजर रहीं बसपा प्रमुख, मुश्किलों भरा है राज्यसभा व विधान परिषद का रास्ता

कठिन सियासी दौर से गुजर रहीं बसपा प्रमुख, मुश्किलों भरा है राज्यसभा व विधान परिषद का रास्ता
-समर्थन के बाद भी नहीं सध रहा है समीकरण, निर्दलीय विधायकों पर नजर
-राज्यसभा में पहुंचने के लिए जरूरी है 37 विधायकों का समर्थन
लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती अपने सियासी जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं। इस बार उनके लिए विधान परिषद और राज्यसभा दोनों के रास्ते बंद दिख नजर आ रहे हैं। कांग्रेस और सपा का समर्थन मिलने के बाद भी वे राज्यसभा नहीं पहुंच पाएंगी क्योंकि यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कम से कम 37 विधायकों का समर्थन हासिल करना होगा। यही हाल विधान परिषद में बसपा प्रमुख है। विधान परिषद सदस्य चुने जाने के लिए उन्हें कम से कम 29 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती यह रास्ता कैसे पार करती हैं।
उत्तर प्रदेश में मायावती के पास केवल 19 विधायक हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के विधायकों की संख्या महज सात है। कांग्रेस एक बार बसपा का साथ दे चुकी है। ऐसे में यदि दोनों दल मिल भी जाए तो जादुई आंकड़ा नहीं छू पाएंगे। कांग्रेस और बसपा के विधायकों को मिलाकर यह संख्या 26 तक पहुंचती है, जबकि जीत के लिए 37 वोटों की जरूरत है। यह दीगर है कि सपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा प्रमुख मायावती को सहयोग देने के लिए कई बार हुंकार भर चुके हैं। अपनी एक सीट जिताने के बाद सपा के पास 10 विधायक बचेंगे। अगर इन विधायकों को भी मायावती के लिए जोड़ लिया जाए तो संख्या 36 ही होती है जबकि जरूरत 37 विधायकों की होगी। अब माजरा तीन निर्दल विधायकों पर टिकता है। जाहिर है देखना यह है इन विधायकों को कौन किस तरह तोडऩे में सफल होता है। यह भी साफ है कि मायावती सपा का सहयोग नहीं लेंगी क्योंकि वे खुले तौर पर सपा का विरोध करती रही हैं और पूर्व में कई बार अखिलेश सरकार को निशाना बना चुकी है। इसलिए इस बार मायावती के लिए राज्यसभा में जाने के रास्ते तकरीबन बंद दिख रहे हैं।
सदन में जाने की गणित
राज्यसभा में जाने के लिए गणित कुछ इस प्रकार है। यूपी विधानसभा में 403 विधायक हैं। बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह की मार्ग दुर्घटना में मृत्यु के चलते 402 विधायक बचे हैं जो इस चुनाव में वोट डाल सकेंगे। एक सीट जिताने के लिए जो प्रक्रिया है उसके मुताबिक एक सीट जीतने के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट चाहिए। सहयोगियों सहित 324 विधायकों के साथ बीजेपी 8 सीटें आसानी से जीत जाएगी। फिर इसके बाद 28 वोट उसके पास अतिरिक्त बचेंगे। विधान परिषद चुनाव में तीनों निर्दलीय और निषाद पार्टी के इकलौते विधायक सहित चारों ने बीजेपी का समर्थन किया था। इनको लेकर संख्या 32 हो जाती है। उसको भी जोड़ लें तो बीजेपी आसानी से 34-35 वोट जुटाती दिख रही है। वहीं समूचे विपक्ष की बात करें तो एक उम्मीदवार का कोटा तय करने के बाद सपा के पास 10 वोट तब अतिरिक्त बचेंगे जब कोई क्रॉस वोटिंग न करे या अनुपस्थित न हो। अगर पूरा विपक्ष संयुक्त हो जाए तो 36 वोट दूसरी सीट के लिए जुटाए जा सकेंगे। मौजूदा सियासी हालात में बीजेपी इस गणित को आसान रहने नहीं देगी। फिलहाल इस चुनाव में 10वीं सीट के लिए काफी संघर्ष दिख रहा है।
विधान परिषद के दरवाजे भी बंद
अपने 19 विधायकों के बल पर बसपा का कोई नेता 2018 को रिक्त होने वाली सीटों पर विधान परिषद भी नहीं जा सकता। परिषद की 13 सीटों की चुनावी गणित में एक सीट के लिए कम से कम 29 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा। हालांकि, विधायकों की संख्या के हिसाब से भाजपा विधान परिषद की 11 सीटों पर कब्जा कर लेगी और एसपी एक सीट हासिल कर सकेगी। ऐसे में अगले वर्ष राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद मायावती के लिए संसद के ऊपरी सदन और विधान परिषद दोनों की राह मुश्किल हो जाएगी।
सीमाब नक़वी की रिपोर्ट
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