ममता का ग्राफ नीचे की ओर

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एस.एन.वर्मा

अपने नेतागिरी के शुरूआत में ममता फायर ब्रान्ड नेता रही। पश्चिम बंगाल की राजनीति और सरकार अपने दम पर बदल दी। एक जुझरूनेता की छवि अब धूूमिल होती जा रही है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी मात देकर विरोध की राजनीति में छा गयी थी। पर जिसे तेजी से उठी उसी तरह से अब फिसलती जा रही है।
पहले तो केन्द्र से उनका टकराव कोई रचनात्मक नही है कि विरोधी दल भी उन्हें सहयोग करें। दूसरे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में जो विरोधी दल एक होने की सम्भावना तलाश रहे थे उनसे छिटक कर उन्होंने उनसे दूरी बना ली। फिर जब जब मोदी के खिलाफ 2024 को ध्यान में रखकर विरोधी दल एक होने की बात चलाते है तो वह अपने को केन्द्रीय भूमिका में रखने की कोशिश करती है और किनारे कर दी जाती है।
इसके अलावा उनकी अपनी कई मुशकिलें है। भ्रष्टाचार को लेकर होईकोर्ट के आदेश पर एक के बाद एक घोटालों की जांच हो रही है। दोषियों को जेल का रास्ता दिखाया जा रहा है। घोटाले उनके सरकारी असरकारी संगठनों के है, व्यक्ति विशेष के है जो उनके सरकार संगठन में महत्वपूर्ण पदांे पर है। कुछ ममता के बेहद करीबी है। स्कूल सर्विस कमीशन ने शिक्षक भर्ती में लाखों रूपये देकर वेटिंग लिस्ट में चल रहे लोग जिन नेताओं को पैसे दिये हैं उनसे पैसे वापस भाग रहे है। एक दो केस ऐसे भी है जिनमें सिलेक्शन किसी और का है पर नौकरी किसी रसूखदार के करीबी को दी गई है। जिसकी नौकरी भी आ गई है, और वेतन में पाये पैसे लौटाने के आदेश भी हुये है। जो घूस देकर नौकरी पाये है उनकी पूरी लिस्ट कोर्ट के पास पहुंच गई। ममता के खास करीबी नेता पर इसी मामले में ईडी ने शिकंजा कसा और अकूत धन और सम्पत्ति मिल रही है आदमी पैसें नही गिन पा रहे है कई गिनने वाली मशीने लगानी पड़ी है।
अब राज्य की सरकारी हालत देखिये। घोटाले की वजह से मनरेगा, पीएम ग्रामीण सड़क योजना और आवास योजना का पैसा रोक दिया गया है। तीनो केन्द्रीय योजनायें है। आर्थिक बदहाली का बंगाल का पुराना इतिहास है पर मुख्यमंत्री के लिये कितना बड़ा सर दर्द होता है यह भुक्तभेागी ही समझ सकता है। इस समय राज्य का राष्ट्रीय सकल उत्पाद का योगदान 3-3 प्रतिशत रह गया है जो कभी 30 प्रतिशत था। जब ममता पहली बार मुख्यमंत्री बनी तो विदेशी निवेश एक प्रतिशत था उसी पर आज भी कायम है। इस समय राज्य पर कर्ज उसके सकल जीडीपी का 37.1 प्रतिशत है जो 5.35 लाख करोड़ होता है।
जब राज्य में आय के साधन कम है पूजी निवेश नामा मात्र का है तो ऐसे में सरकार कुछ खर्चो पर नियन्त्रण लगाकर आर्थिक हालत को कुछ बेहतर कर सकती है पर अभी तक ऐसा नहीं किया जा रहा है। कुछलोक लुभावन, कुछ चुनाव के दृष्टि से मदद दिये जाते है जो उन्होने शुरू किया है उसके नाम पर स्थानीय क्लबो को पहले एक लाख अब दो लाख का अनुदान देती है। 2015-16 में यह 88 करोड़ पर पहंुच गया है। हर मुहल्ले में इस तरह के क्लब है जहां खेल के नाम पर कैरम वैगेरह होते है, म्यूजिक सिस्टम चलते, तालाबों में तैराकी कराते है। रक्तदान शिविर लगाते है। यानी क्लब खानापूर्ति कर अनुदान पाने की पात्रता बनाये रखते है। इसके अलावा इमामों को सरकार जो तकरीबन 30,000 है 2500 और मुअज्जिनो को 1500 का अनुदान देती है। 80 हजार पुरूहितो को 1000 रूपयों की हर महीने मदद दी जाती है।
केन्द्र सरकार से उनका टकराव राज्य के लिये एक अलग सिरदर्द है। ममता की ख्याति जुझारू नेता के रूप में है। पर बेकार के मुद्दों को, छोटे-छोटे मुद्दो के लेकर टकराव पैदा करना उन जैसे कदकाठी के नेता को शोभा नही देता है न तो इससे उनका काम बनता है। टकराव रैशनल और सकारात्मक होना चाहिये।
राज्य में पीएम आवास योजना, मनरेगा और पीएम ग्रामीण सड़क योजना को लेकर दुरूपयोग का आरोप लगाया जा रहा है। इसे लेकर सरकारी महकमों में और अमलों में घबराहट है जो कुछ और ही इशारा कर रहे है। तस्करी जिलों में सेवा दे चुके आठ आईपीएस अफसरों से लोकल घोटाले के मामले के लेकर पूछताछ के लिये दिल्ली ईडी ने बुलाया है। ये आठो तस्करी वाले जिलों में रह चुके है।
अभी तक ममता का रूख रही कानून अपना काम करे। पर अब वह परेशान हो रही है बगावती तेवर में आ रहा है। जबसे तस्करी के मामले में वीर भूमि जिले के तृणमूल के अध्यक्ष की गिरफ्तारी हुई है वह बौखला गई है। कह रही है एक अणुव्रत जिलाध्यक्ष तृणमूल की गिफ्तारी से लाखों अगुव्रत पैदा होगे। एक निहायत जिम्मेदार नेता का यह गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं माना जायेगा जो उनकी छवि को और घूमिल करेगा। यहां तक कह गई है कि अगर सीबीआई मेरे घर छापा मारने आती है तो अन्दोलन के लिये तैयार रहे। यह अराजकता को बढ़ावा देना है। कानून को हाथ में लेने के उसे प्रेरित करने जैसा है। जो विभाग जिस काम के लिये बना है उसे अपना काम करने से रोकना कहा का जुझूारूपन है।
विधान सभा चुनाव में भाजपा को हाटाने के बाद वह विपक्ष का नेता बनना चाह रही थी। राष्ट्रीय स्तर पर उभरना चाहती थी। बिहार की सरकार बदलने से इनके इरादे को बड़ा झटका दे दिया है। विरोधी दल मोदी के विरोध में एक सूत्र में बधने को उत्साहित हो सकते है। पर ममता उसकी केन्द्रीय नेता बने यह वह नही होने देगे। एक तो विरोधीदलों से उनका टकराव राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर आगे बढ़ गया है। वह किसी भी हालत में उन्हें स्वीकार नही होगी। दूसरे राष्ट्रीय नेतृत्व के लिये विरोधी दल में भी कई उम्मीदवार है। ममता जब दिल्ली आई थी तो किसी विपक्षी नेता से नहीं मिली थी। मोदी से मिलकर चली गई थी। वह कांग्रेस को साथ रखकर किसी दल को मजबूत करने में भी नहीं लगी है। बस चाह है केन्द्रीय नेतृत्व की वह उन्हें कोई दल देने को तैयार नही है। ममता जी की उम्र भी बढ़ रही है। भतीजे का प्रेम भी उन्हें बांधे हुये है। हर तरफ से हालात विपरीत ही दिख रहे है।

 

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