अवधनामा संवाददाता
अम्बेडकरनगर(Ambedkarnagar) अबूतालिब का दूसरा नाम इस्लाम है क्यूँकि अगर अबूतालिब ना होते तो इस्लाम का नाम लेने वाला कोई नही होता। कर्बला मे सबसे ज्यादा खून अबूतालिब के घर का बहाया गया।
यह बातें मीरानपुर में सालाना मजलिस साफ़िरे हुसैनी में वक़ार रिज़वी के इसाले सवाब की मजलिस को पढ़ते मौलाना गुलज़ार जाफरी ने कही।
मौलाना ने कहा अन्धेरे को बुरा कहने पर रोशनी नहीं होतीं है बल्कि अगर कुछ करने की ठान ले तो रोशनी आपने आप हो जायेगी। मजलिस को खिताब करते मौलाना ने पढ़ते हुए कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन के द्वारा कूफ़ा में भेजे गए अपने दूत सफिरे जनाब मुस्लिम पर पढ़ते मोलाना ने कहा कि कूफ़ा की जनता ने जालिम बादशाह से निजात पाने के लिए इमाम हुसैन को कूफ़ा बुलाने के लिए कई बार निवेदन वाला पत्र भेजा। कूफ़ियों की वफ़ादारी की पुष्टि करने के लिए इमाम हुसैन ने योद्धा मुस्लिम बिन अक़ील को स्थिति का निरीक्षण करने के लिए कूफ़ा भेज दिया। जब बिन अक़ील कूफ़ा पहुंचे तो देखा करीब 30हजार कूफ़ियों ने उन के हाथों पैर बैय्यत के साथ-साथ अपनी वफादरी का सबूत दिया। मस्जिदे कूफ़ा में मुस्लिम बिन अक़ील मग़रिब की नमाज पढ़ाने के लिए खड़े हुए उनके पीछे 30 हजार लोग खड़े हुए। लेकिन ईशा की उस नमाज के खत्म होने तक सिर्फ एक व्यक्ति वहां रह गया था। मौलाना ने कहा कि कर्बला की लड़ाई के पहले शहीद मुस्लिम बिन अक़ील थे जिनकी शहादत हुई उन्हें कूफ़ा में दफन किया गया। हर साल लाखों लोग उनकी क़ब्र की ज्यारत के लिए कूफ़ा जाते हैं मजलिस के आयोजक आरिफ अनवर ने बताया कि तीन दिवसीय मजलिस में कोविड कप देखते हुए ऑनलाइन मजलिस पर ज़ोर दिया गया है जिससे भीड़ कम से कम आये।
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