फिरोज़ ख़ान देवबंद: विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद की मजलिस ए शूरा ने ऐतिहासिक फैसला किया है।मजलिस ए शूरा ने दारुल उलूम देवबंद और दारुल उलूम वक्फ देवबंद को एक करने के लिए शूरा की आखरी बैठक में ऐतिहासिक फैसला लिया है।
जिस के बाद दोनों संस्थाओं के मोतमिमों की आपस में मुलाकात हुई और तमाम गिले-शिकवे दूर कर के एक दूसरे को गले लगाया। पिछले 37 साल की तारीख में यह पहला ऐसा कदम है जिसका उलेमा और मदरसे समेत देवबंद से जुड़े सभी लोगों और देवबंद के वासियों ने दिल खोलकर खैर मकदम किया है।
पिछले 3 दिनों से जारी मजलिस ए शूरा में जहां कई फैसले लिए गए वही बुधवार को आखिरी दिन मजलिस ए शूरा ने एक ऐसा फैसला कर दिया जो एक तरीके से ऐतिहासिक बन गया है। इस तारीखी फैसले केे पीछेे दोनों संस्थाओं के पिछले लगभग 40 साल से चल रहे मनमुटाव को दूर करने की ओर बड़ी कोशिश बताया गया है।
बुधवार को दारुल उलूम वक्फ देवबंद के मोहतमिम मौलाना मोहम्मद सुफियान क़ासमी,नायब मोहतमिम मौलाना शकेब क़ासमी और इकबाल अहमद ने दारूल उलूम देवबंद की दावत पर मेहमान खाने में शूरा की आखरी बैठक में शिरकत की। इस दैरान शूरा सदस्यों और दारुल उलूम वक्फ के जिम्मेदारों के बीच हर तरह के इख्तालाफ को खत्म करने के लिए घंटों चर्चा हुई। जिसके बाद आखरी फैसला हुआ के तमाम मनमुटाव और इख्तालफ को खत्म किया जाएगा और मिलजुल कर और सर जोड़कर आगे बढ़ेंगे।
दोनों संस्थाओं की ओर से आपसी मतभेद को खत्म किया जाएगा, आपस में राब्ते के लिए और हर तरह के परेशानियों को दूर करने के लिए 6 सदस्य कमेटी बनाई गई है जिसमें जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी, मौलाना अनवारुल रहमान बिजनौरी, दारुल उलूम वक्फ देवबंद के मोहतमिम मौलाना सूफियान कासमी, मौलाना शकेब क़ासमी और शैखुल हदीस मौलाना अहमद खिजर को शामिल किया गया।
शूरा के इस फैसले की हर तरफ जबरदस्त प्रशांसा और चर्चा हो रही है। यकीनी तौर पर यह फैसला देवबंद की तारीख में बड़ी अहमियत रखता है और इस फैसले से जहां मनमुटाव दूर होगा वही आपसी दूरियां भी कम होगी और दोनों संस्थाएं मजबूत होकर शिक्षा और समाज की तरक्की के लिए एकजुट होगी। इस ऐतिहासिक फैसले की हर तरफ जबरदस्त प्रशंसा और चर्चा हो रही है।
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