हमारे समाज में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जब कोई व्यक्ति जान-बूझकर या अनजाने में हमारे साथ अनुचित व्यवहार करता है। ऐसी स्थिति में हमारा तत्कालिक मनोभाव उसे उसी भाषा में उत्तर देने का होता है, जिससे समाज में अशिष्टता और कटुता को बढ़ावा मिलता है।
किंतु यदि हम धैर्य, संयम और शिष्टता का परिचय दें, तो न केवल हम अपनी गरिमा बनाए रखते हैं, बल्कि समाज में सौहार्द और सद्भाव की भावना को भी प्रोत्साहित करते हैं।
हमारा रब हमसे एक ऐसी ही जिन्दगी चाहता है जिसमें असभ्यता और उद्दंडता के लिए कोई जगह न हो, हमारा रब हमें सभ्यता और मानवता के उच्चतम शिखर पर पहुंचाना चाहता है।
यही कारण है कि रब ने एक माह के रोज़े अनिवार्य किए ताकि हम संयमी और सदाचारी बनें।
“ऐ ईमान वालों! तुम पर रोजे अनिवार्य किए गए, जैसे तुमसे पहले लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम संयमी (परहेज़गार) बनो।”
सूरह अल-बक़रा (2:183)
होली रंगों का उत्सव है, जो हमारे हिन्दू भाई बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, और वह पूरी तरह रंगों में रगे हुए होते हैं।
इस साल होली जुमा के दिन है, और इस्लाम में जुमा को तमाम दिनों पर श्रेष्ठता प्राप्त हैं।
जिस प्रकार होली साल में एक बार आती है ठीक इसी तरह रमज़ान भी साल में एक बार आता है, जुमा का महत्व आम दिनों में ईद के दिन जैसा है तो रमज़ान के जुमा का महत्व अपने आप विशेष हो जाता है।
इसलिए जुमा अवश्य अदा करें लेकिन अपनी मानवीय जिम्मेदारियों को निभाते हुए।
इसलिए जब हम नमाज़ के लिए निकलें तो शांत और सुविधा जनक रास्ते का चुनाव करें।
फिर भी अगर भूलवश गलती से किसी के द्वारा रंग आपके कपड़ों पर गिर जाये और वह अपनी भूल और ग़लती पर शर्मिंदा हो तो बहुत ही प्रेम से मुस्कुराकर आगे बढ़ जाये, हमारा ऐसा करना हमारे बड़प्पन और सहृदयता को दर्शाता है।
दूसरी बात रंगों से कपड़े अपवित्र नहीं होते, क्यों कि हमने जो कपड़ा पहना है वह भी तमाम रंगों में किसी एक रंग का ही है।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति पूर्व नियोजित रूप से, प्लान बनाकर उद्दंडता या अपमान की भावना से ऐसा करता है, तो भी हमें विवेकपूर्ण ढंग से प्रतिक्रिया देनी चाहिए, क्यों कि क़ुरान हमें यही शिक्षा देता है।
वाद-विवाद करने या उसी तरह प्रतिउत्तर देने से नकारात्मकता ही बढ़ेगी। इसके विपरीत, शांति और संयम से उत्तर देकर हम न केवल अपनी गरिमा बनाए रख सकते हैं, बल्कि सामने वाले को भी यह अहसास करा सकते हैं कि शिष्टता की शक्ति कहीं अधिक प्रभावी होती है।
आप इस तरह समझिये जिस संयम और धैर्य को हम रमज़ान में सीख रहे हैं अब उसकी इस जगह पर परीक्षा है।*
क़ुरान में हम सबके रब ने समस्त मानव समुदाय का मार्गदर्शन किया है …
“और भलाई और बुराई दोनों समान नहीं, तुम उत्तर में वह कहो जो उससे श्रेष्ठ हो, फिर तुम देखोगे कि तुममें और जिसमें शत्रुता थी, वह ऐसा हो गया जैसे कोई मित्र सम्बन्ध वाला।”
(क़ुरान 41:34)
किसी भी सभ्य समाज की पहचान उसके लोगों की परिपक्वता और सहिष्णुता से होती है। यदि हम हर अशिष्टता का उत्तर अशिष्टता से देने लगें, तो समाज में कटुता और वैमनस्यता ही बढ़ेगी।
इसके बजाय, यदि हम धैर्य और समझदारी से प्रतिक्रिया दें, तो यह हमारे समाज को अधिक शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण बना सकता है।
जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं, जब हम दूसरों की अनुचित बातों और कार्यों का सामना करते हैं। ऐसे में, यदि हम क्रोध और प्रतिशोध की भावना को छोड़कर संयम और शिष्टता का परिचय दें, तो यह न केवल हमारे व्यक्तिगत चरित्र को उन्नत करता है, बल्कि संपूर्ण समाज में सद्भाव और शांति का वातावरण भी निर्मित करता है।
इसलिए, हमें यह समझना होगा कि अशिष्टता का उत्तर शिष्टता से देना ही समाज में सच्चे संस्कारों को बनाए रखने का सबसे प्रभावी मार्ग है।
मैं सभी देशवासियों से खासतौर से मुस्लिम समुदाय से अपील करता हूं। कि इस पवित्र महीने में आप सी भाईचारे को बनाए रखें मोहब्बतें पैदा करें नफरत ए खत्म करें। अमन और शांति बनाए रखें। यही धर्म की राजनीति करने और कराने वालों के मुंह पर प्यार का थप्पड़ होगा। हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा को याद रखें। और एक अच्छे और सच्चे भारत निर्माण में अपना सहयोग दें। आप जानते हैं सड़क से सदन तक धर्म के नाम पर नफरतें फैलाई जा रही है। हम सबको मिलकर प्यार से जवाब देना होगा। हम भीड़ तंत्र का शिकार ना बने और ना दूसरों को बनने दे। तभी हम एक सच्ची और अच्छे भारतीय नागरिक बन सकेंगे।
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