एस.एन.वर्मा
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आल इन्डिया डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथारिटी सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने न्यायिक प्रक्रिया की कमी की ओर इशारा करते हुये कहा विचाराधीन कैदियों के मसले को उठाया कहा जीने की सहूलियत, व्यापार करने की सहूलियत की तरह न्याय पाने की सहूलियत भी होनी चाहिये। जेलों में लाखो विचाराधीन कैदी है उन तक न्याय की पहुच जल्द से जल्द होनी चाहिये। जिलों ऐसे मामले देखने के लिये जिला जज की अध्यक्षता में एक समिति है। प्रधानमंत्री इस मसले को कई बार उठा चुके है। जब राज्यों केे मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीशों का सम्मेलन हुआ था तब भी इस मसले को उठाया था। सुप्रीम कोर्ट भी समय समय पर इस पर टिप्पणी करता रहा है। पर इस मामले में कुछ प्रगति देखने को नहीं मिली। पहले तो मुकदमें इतने ज्यादा है कि उनकी तुलना में न्यायधीश बहुत कम है। जजो की संख्या तो सरकार ही बढ़ायेगी। दूसरी बात यह है कि राज्य सरकारे बहुत से बेकार मुकदमें खड़ा करती रहती है जिससे कोर्ट में मुकदमे और कैदियों की संख्या बढ़ती रहती है।
नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो ने 2020 से एक रिपोर्ट निकाली थी। जिसके अनुसार देश में कुुल 488511 कैदी थे। जेलो में ये कैदी जानवरों की तरह ठुसे हुये हैं क्योकि जेलो की क्षमता कैदियों की संख्या की तुलना में बहुत कम है। इनमें से कई दस दस पन्द्रह पन्द्रह साल से फैसले का इन्तजार कर रहे है। कोई जरूरी नही कि इनमें सभी दोषी ही हों। दलित ओबीसी आदिवासियों की संख्या बहुत ज्यादा है। इनमें कई इतने गरीब है कि वकील नही रख सकते। कइयों के घर में खाने को नही है जेल में कम से कम खाना तो मिल जाता है। जमानत के पैसे नही जुटा पाते।
अखबारो में पढ़ने को मिलता है तीस तीस बत्तीस बत्तीस साल के उम्र में जेल से मामूली दोष के लिये मामूली जुर्माने पर छूट जाते है जबकि वे बीस बाइस साल के उम्र में जेल आये थे। कितना अमानुषिक है जीवन का सुनहरा समय जेल में कट जाता है और जब रिहा होते है तो किसी काम लायक नही रह जाते है। कई दोषी साबित होने के पहले ही कई साल जेल में गुजार देते है। कई निर्दोष छूट भी जाते है। पर उम्र का बड़ा हिस्सा बिना कसूर के जेल में बिता कर। उनके बारे में कहा जा सकता है मेरे रोने का जो किस्सा है, मेरे उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।
इतने ज्याद कैदी हैं कि समय से जमानत की सुनवाई भी नही हो पा रही है। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से जुड़े एक मामले मे आदेश दिया था कि राज्य में सभी विचाराधीन कैदियों को जमानत पर छोड़ दिया जाय जिनके खिलाफ सिर्फ एक मामला हो और जिन्हें जेल में रहते दस साल से ज्यादा समय हो चुका हो पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन नही हुआ, कोई कदम नही उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राज्य सरकार और हाईकोर्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुये कहा अगर आप लोग ऐसा आदेश जारी नहीं कर सकते तो हम खुद ऐसा आदेश जारी कर देगे। अभी इस समय मामले में सरकार और हाईकोर्ट की तरफ से क्या कदम उठाये जाते है इसका इन्तजार है। हालाकि उपरोक्त सन्दर्भ उत्तर प्रदेश का है पर ऐसी पहल पूरी देश में किये जाने की जरूरत है। मामला बहुत संवेदनशील है, इसी ढंग से इस पर गौर करके साहनुभूतिपूर्ण निर्णाय दिया जाना चाहिये। न्याय के मामलें में प्रसिद्ध और सटीक बचन है न्यायपाने में देरी न्याय न पाने के बराबर है। प्रधानमंत्री की चिन्ता संवेदना और सहानुभूति से भरा हुआ है। मोदी सरकार से ही ऐसी उम्मीद बनती है।