अवधनामा संवाददाता (शकील अहमद)
लीची की खेती से किसानो को अन्य फसलो से ज्यादा आर्थिक लाभ
सरकार ध्यान दे दे तो जनपद लीची का बन सकता है हब
कुशीनगर। जनपद में किसान परम्परागत खेती का मोह छोड़ अब लीची की खेती करने लगे है। जनपद में इस वक्त बड़े पैमाने पर लीची की खेती की जा रही है। किसानो को लीची की खेती से जहां उन्हें अन्य फसलो से ज्यादा आर्थिक लाभ हो रहा है वही लीची को बेचने के लिए किसानों को कोई मसक्कत भी नहीं करना पड़ रहा है। व्यवसायी स्वयं खेतों से ही किसानों के उत्पाद को खरीद ले रहे है। यदि सरकार जनपद में हो रही लीची की खेती पर ध्यान दे तो जनपद लीची की खेती का हब बन सकता है और सरकार को भी करोडों का राजस्व प्राप्त हो सकता है।
कभी बिहार के मुजफ्फरनगर के लीची की धुम हुआ करती थी अब कुशीनगर के लीची की मिठास देश के कई राज्यो में फैल रही है। कुशीनगर जनपद की मिट्टी एवं जलवायु लीची की खेती के लिए मूफिद साबित हो रही है लीची की कुछ एैसी प्रजातिया है जो सिर्फ कुशीनगर जनपद में ही पैदा हो रही है जिनका स्वाद बेहद ही मीठा है। यहॉ की लीची देश के साथ साथ विदेश में भी निर्यात की जा रही है। दो एकड़ क्षेत्रफल से लीची की खेती शुरू कर 8 एकड़ में लीची की खेती करने वाले किसान का कहना है कि लीची की खेती करने का सबसे बडा लाभ यह है कि यह नगदी फसल है किसानो को उनकी उपज का लाभ मिल जाता है और लीची की फसल हर साल हो जाती है इसी बात को लेकर अन्य किसान भी इसकी खेती के प्रति आकृष्ट हो रहे।
लीची खेती के बाबत जिला उद्यान अधिकारी का कहना है कि शासन द्वारा जनपद में लीची की खेती का कार्यक्रम आया है जो किसान लीची की खेती कर रहा है उसे विभाग के द्वारा खेती करने पर संसाधन भी उपलब्ध कराया जा रहा है विभाग के कर्मचारी समय समय पर किसानो को लीची की नयी प्रजातियो और रोग संबधित जानकारिया उपलब्ध कराते है।
चंद दिनो की मेहमान होती है लीची
चंद दिनो की मेहमान कहे जाने वाली यह लीची एक फल है जैसे अपने घरो पर आने वाला मेहमान जिस तरह आता है बहुत जल्दी ही वह चला भी जाता है। ऐसे मे ठीक उसी प्रकार का यह लीची भी आती है और कम समय मे मेहमान की तरह लोगो के बीच से बिदा हो जाती है। इस फल को खरीदने के लिए जिले के हर कस्बो, शहरो व ग्रामीण चौराहो पर लोगो की भीड उमड़ रही है। हालांकी शहर व देहात मे 80 से 100 रुपये प्रति किलो लीची बीक रही है।
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