एस.एन.वर्मा
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कर्नाटक राज्य में बहुत सारी समस्यायें है पर मुख्यमंत्री बोम्मई अपना ध्यान अल्पसंख्यको के ऊपर केन्द्रित किये हुये हैं। अगर उनके भले के लिये काम करते तब तो साधुवाद के हकदार होते पर वे उन्हें परेशान करने में लगे है। बोम्मई ने जुलाई 2021 में युेदुरप्पा से मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया। इसके पहले जेडीएस के कुमार स्वामी से उत्तराधिकार ग्रहण किया था। बोम्मई को भाजपा इसलिये लाई कि सोशल इन्जीनियरिंग के माध्यम से अन्य पार्टियों को लोगों को खीचकर भाजपा में लायेगे और भाजपा की मजबूत सरकार बनायेगे। हाल में हुये उपचुनाव और पंचायत चुनाव में आशा क अनुरूप नतीजे नहीं आये।
कर्नाटक में भारी भ्रष्टाचार है। बोम्माई के मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के एक महीने पहले कर्नाटक के स्टेट कान्ट्रैक्टर्स संघ ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी सरकारी महकमें में भारी भ्रष्टाचार है। लिखित में दिया कि राजनैतिक प्रतिनिधियों और नौकरशाहों की चालिस प्रतिशत मांग घूस के रूप में है। इसके अलावा भी बहुत से भ्रष्टाचार के केस है। नदी पानी के बटवारे का झमड़ा बरकरार है, पिछले चुनाव में वैज्ञानिकों ने पीने के पानी की किल्लत को सबसे बड़ी और तत्काल ध्यान देने लायक समस्या बताई थी। पर बोम्मई इन समस्यों की तरफर आंख मूंदे हुये है। हल करने की एक भी कोशिश नहीं कर रहे है। भाजपा दक्षिण में अपनी मजबूत पैठ बनाने के लिये प्रयासरत है। पर वहां के जिम्मेदार नेता अगर इन समस्याओं की तरफ से मुंहफेरे रहेेगे तो भाजपा ने अभी तक जो कुछ हासिल किया है वह भी खो जायेगा।
मुख्यमंत्री बोम्मई का ध्यान अल्पसंख्यक को पर केन्द्रित है। वह भी उन्हें प्रताडि़त करने में जोर लगा रहे है। उनके कार्यक्रम के निम्न मुद्दे प्रमुख है। धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून जबकि संविधान स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की आजादी देता है। उन्होंने हिजाब को एक इशू बना दिया है। मन्दिर के आसपास मुस्लिम दुकानदारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। हलाल मीट को बन्द किया है। अल्पसंख्यक संस्थानों को परीक्षण के अन्तर्गत ला दिया है। स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने की तैयारी में लगे है।
यह सभी को मालुम है मन्दिरों के आसपास हमेशा सभी जातियों, धर्मवालों की दुकान रहती आई है। और तो और पूजा में लगने वाले बहुत सामानों की तो कल्पना भी बिना मुस्लिम कारीगरों के नहीं की जा सकती। झटका मीट को राष्ट्रीय कहना हलाल को अंराष्ट्रीय कितना बचकाना सोच है। उपरोक्त प्रयास सामाजिक तानाबाना को किस तरह नष्ट करेगे और कर रहे है मुख्यमंत्री को इसका ख्याल नहीं है।
कर्नाटक में हिन्दू भी कई सम्प्रदायों में बंटे हुये है। कुछ तो ब्राहृमण विरोधी समूह भी है। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग है। इनके अलग-अलग धर्म गुरू है अलग-अलग देवी देवता है। अलग धर्म गुरू है। वे गीता को केैसे स्वीकार करेगे। कर्नाटक में शिव, महावीर, मदर गाडेस, राम कृष्ण से ज्यादा लोकप्रिय हैं सदियों से लिंमायत जो यहां की एक प्रमुख जनसंख्या है जिसका झुकाव सरकार बानने में प्रमुख कारक रहता है उसका मोह भाजपा में बोम्मई की वजह से भंग हो रहा है। अगर नया गठबन्ध बनता है और थोड़े भी लिंगापत उस गठबन्धन में शामिल होते है तो भाजपा की मेहनत पर पानी फिर सकता है। उसका जो एक आधार कर्नाटक में तथा दक्षिण में बन रहा है, उसको बोम्मई की वजह से जबरदस्त झटका लगेगा।