Thursday, March 6, 2025
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जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट लखनऊ में पूर्व सिविल सेवक अनिल स्वरूप की लेखक वार्ता

व्यक्तिगत प्रतिभा से अधिक महत्वपूर्ण है टीम प्रबंधन

 

लखनऊ | “एथिकल डिलेमास ऑफ ए सिविल सर्वेंट” और “नो मोर ए सिविल सर्वेंट” पुस्तकों के लेखक तथा आईएएस (सेवानिवृत्त), पूर्व सचिव, भारत सरकार श्री अनिल स्वरुप द्वारा लिखित पुस्तकों पर चर्चा के लिए जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट लखनऊ ने रविवार को संस्थान में कार्यक्रम का आयोजन किया।

सत्र के सम्मानित पैनलिस्टों में श्री आलोक रंजन, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार; श्री आलोक जोशी, पूर्व एमडी, सीएनबीसी आवाज; श्री जयंत कृष्णा, सीईओ, फाउंडेशन फॉर एडवांसिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी; और डॉ. कविता पाठक, निदेशक, जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, लखनऊ शामिल हुए।

जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट लखनऊ की निदेशक डॉ कविता पाठक ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगो का स्वागत किया और कहा कि इन पुस्तकों के प्रत्येक पृष्ठ  पर प्रबंधन के सिद्धांतों की मजबूत पुष्टियां हैं। प्रबंधन के छात्रों के लिए इससे सीखने के लिए बहुत कुछ है।  श्री अनिल स्वरूप द्वारा लिखित पुस्तकें राष्ट्र और समाज के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती हैं। सब कुछ लक्ष्य-निर्देशित है, और उनकी पुस्तकें लक्ष्य-संचालित व्यवहार के बारे में बात करती हैं ।

श्री आलोक जोशी ने कहा कि “नो मोर ए सिविल सर्वेंट” रिटायरमेंट के बाद के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक पुस्तक है।  उन्होंने कहा कि आप जो निर्णय लेते हैं वह तय करेगा कि आप भविष्य में अपने जीवन में कहां पहुंचेंगे। इस पुस्तक को सिविल सेवा की तैयारी कर रहे छात्रों, सेवा निवृत्त अधिकारीयों,  मौजूदा सरकारी तथा गैर सरकारी कर्मचारियों को अवश्य पढ़ना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरान श्री अनिल स्वरूप ने अपनी पुस्तकों “एथिकल डिलेमास ऑफ ए सिविल सर्वेंट” और “नो मोर ए सिविल सर्वेंट” के बारे में बात की और कहा कि बहुत से लोग महान काम कर रहे हैं, लेकिन चिंता यह है कि हम उनके बारे में बात क्यों नहीं करते हैं। आज जरूरत है अच्छे काम करने वालों पर ध्यान देने की। मैंने “नो मोर ए सिविल सर्वेंट” में एक अध्याय लिखा है जिसमे बताया गया है कि “एक अधिकारी की वास्तविक क्षमता उसकी सेवानिवृत्ति के बाद जानी जाती है”।

श्री जयंत कृष्णा ने कहा कि ये दोनों पुस्तकें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं और एक संगीतमय राग की तरह हैं। दोनों पुस्तकें सिविल सेवकों से संबंधित अवसरों, चुनौतियों, वास्तविकताओं, और मिथकों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करती हैं।

श्री आलोक रंजन ने कहा कि अनिल स्वरूप कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनकी पुस्तक में, एक भाग उनके प्रतिबिंबों के बारे में है, दूसरा भाग उन सिविल सेवकों के बारे में बात करता है जिन्होंने देश के लिए बहुत योगदान दिया है। ऐसे बहुत से अधिकारी रहे हैं जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन फिर भी लोगों को उनके बलिदान के बारे में पता नहीं है। पुस्तक का तीसरा भाग राष्ट्र के नागरिक समाज के बारे में है।

श्री सुधांशु मणि, सेवानिवृत्त IRSME अधिकारी और वंदे भारत ट्रेन के इनोवेटर  ने कहा, “यह पुस्तक अनुभवों का एक गुलदस्ता है, दुविधाओं का एक किस्सा है। यह आशा और आशावाद का एक नया निर्देश है, खासकर सिविल सेवकों के क्षेत्र में। इस किताब में  उद्देश्य, प्रतिबद्धता, दृढ़ संकल्प, और अखंडता की भावना पप्पार विशिस्ट प्रकाश डाला गया है । ” कार्यक्रम के दौरान श्रोताओं ने “एथिकल डिलेमास ऑफ ए सिविल सर्वेंट” और “नो मोर ए सिविल सर्वेंट” के लेखात श्री अनिल स्वरूप से उनकी लिखी इन किताबों  से सम्बंधित प्रश्न भी किये।

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