एस.एन.वर्मा
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रामनवमी और हनुमान जयन्ती के अवसर सात आठ राज्यों में हुई हिंसा कानून व्यवस्था के लिहाज से चिन्ताजनक है। साथ ही आपसी भाईचारा को भी तारतार कर दिया है। अवसर धर्म का बात धर्म पर काम अधर्म का। मध्यप्रदेश के खरगोन और राजस्थान के करौली में भंयानक दिल को हिला देने वाला नज़ारा देखने को मिला। दिल्ली का जहांगीराबाद इलाका जो पहले से ही बदनाम है जहां बांगलादेशी लोग ज्यादा है, जहां पुलिस केन्द्रीय सरकार के आधीन है तथा दिल्ली के कुछ और इलाके में भीषण उपद्रव हुये। समझ में नहीं आता प्रशासन व्यवस्था और खुफिया विभाग इनकी तैयारी से अनजान कैसे रहा। रचा जा रहे खड़यंत्रों का इन्हें पहले से ही पता हो जाना चाहिये और घटना से पहले ही रोक देने का पक्का इन्तजाम कर दिया जाना चाहिये।
इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की तारीफ करनी होगी। वहां रामनवमी और हनुमान जयन्ती बिना किसी उपद्रव के बीता। जबकि जगह-जगह उत्सव, जलूस और पाठ का आयोजन चलता रहा। अयोध्या में तो भारी भड़ी इक्ट्ठा हुई थी। मुख्यमंत्री ने पहले ही सम्बन्धित विभागों को सचेत कर दिया था। सम्बन्धित विभाग अपना काम मुस्तैदी से कर रहे थे। पेट्रोलिंग बढ़ा दी, जहां ज़रूरत समझी अतिरिक्त फोर्स भेजी। कानू व्यवस्था और सुरक्षा के प्रहरी सजग रहे जिसका नतीजा रहा कि यूपी जैसा बड़ा प्रदेश जहां भारी जनसंख्या भी है शान्तिपूर्वक भाईचारे के साथ त्योहार मना सका। पीड़ित राज्यों में भी कानून व्यवस्था सख्ती से लागू किया गया होता तो ऐसी अपराधिक घटनाओं को रोका जा सकता था। देखने में आता है कुछ उपद्रवी पेशेवर होते है उनका काम उपद्रव फैलाना होता है उन्हें धर्म या जाति से कोई मतलब नहीं होता। एक तरह से उनका शलत होता है। उनकी दिलचस्पी दुकानों को लूटने में होती है। कुछ स्वार्थी राजनैतिक दल जानबूझ कर खास अवसरों पर अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के लिये दंगा फसाद कराते हो। इन्हें रोकने के लिये यूपी मुख्यमंत्री की तरह जीरो टलरेन्स पर चलना चाहिये। यहां अपराधी खौफ में है, कुछ तो थानो में जाकर खुद आत्म समर्पण कर रहे है। यह तभी सम्भव है जब खुद में राष्ट्र सेवा और जनसेवा की भवना सबसे ऊपर है। जिनका रूझान भाई भतीजा वाद ऊपरी कमाई, भ्रष्टाचार, माफिओं को संरक्षण देने की ओर है वे जीरो टालरेन्स स्थापित नहीं कर सकते।
सबसे अहम दर्दनाक बात यह है कि दंगा फंसाद की वजह से समाज की समरसता तार-तार हो रही है। दो समुदाय जबकि दोनो भारतीय है एक दूसरे की जान ले रहे है। ऐसे उदाहरण भी सामने आ रहे है कि कुछ विपरीत समुदाय के लोग भाईचारा का निर्वाह करते हुये उनके धार्मिक उत्सवों में मदद कर रहे। इसी त्योहार के दौरान मैने देखा एक समुदाय के लोग जलूस जो रहे थे, बेहद गर्मी को देखते हुये कुछ विपरीत समुदाय को लोग पानी और कोल्डडिंक उन्हें पिला रहे थे। सर श्रद्धा से झुक गया दिल से निकसा स्वर्ग यही है।
देश में इसी तरह के माहौल को विकसित करने की जरूरत है। इसमें एनजीओ और राजनैतिक पार्टियां राजनैतिक सरकारे नहीं अहम भूमिका निभा सकती है। खुफिया विभाग को अतिरिक्त सतर्कता दिखानी होगी। किसी भी तरह के षडयन्त्र की उसे पहले से ही जानकारी हो जानी चाहिये जिससे कानून व्यवस्था उनके रिपोर्ट के आधार पर समुचित कार्यवाई कर ऐसी वारदातों पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके।
आमतौर पर आम आदमी कैसी भी परिस्थिति हो कभी उपद्रव में भाग नहीं लेता है न लूटपाट में भाग लेता है। ज्यादातर असानाजिक तत्व ऐसी घटनाओं में भाग लेते है और दो चार पत्थल फेक कर माहौल खराब कर देते है। पार्टियों के कुछ कार्यकर्ता भी इसी सोच के होते है। पार्टियों को उनपर अंकुश लगाना चाहिये वे जिस काम के लिये कार्यकर्त्ता बने है सख्ती से उन्हें ताकीद करें वे वही काम करें। अगर अलग आचरण करते है तो पार्टी से निकाल देना चाहिये।
प्रशासन, कानून व्यवस्था सभी मिलजुल कर इस दिशा में काम करे तो कभी उपद्रव नहीं होगे। देखा जाता है किसी पार्टी सरकार आती तो माफियाओं, गुन्डो, बदमाशों, बलात्कारियो, अपराधिक तत्वों का टेम्पो हाई जाता है। सरकार बदलते ही सब ठन्डा हो जाता है।
जरूरत इच्छा शक्ति की है और क्षुद्र स्वार्थ का त्याग करने का है। स्वर्ग हमी बनाते है नर्क भी हमी बनावे है। चुनना हमारा काम है हमें क्या बनाना है।