Thursday, May 15, 2025
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ब्लैक फंगस से डरना नहीं बल्कि इलाज में सतर्कता बरतना जरूरी

 

It is not necessary to be afraid of black fungus but to be cautious in treatment

अवधनामा संवाददाता

पहले भी मधुमेह के कुछ मरीजों में मिलती रही है ब्लैक फंगस की शिकायत
 
कोविड मरीज का लाइन ऑफ ट्रीटमेंट सही होगा तो नहीं होगी कोई दिक्कत
 
एक से दूसरे व्यक्ति में न तो प्रसार होता है और न ही हर कोविड मरीज को परेशानी
गोरखपुर । (Gorakhpur) ब्लैक फंगस एक ऐसी बीमारी है जिससे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। यह आदिकाल से मधुमेह के कुछेक (अत्यल्प) मरीजों में देखने को मिलती रही है। फंगस संक्रमण की समुचित परिस्थिति (सड़न व अनियंत्रित रक्त शर्करा) के बिना इसका न तो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसार होता है और न ही हर कोविड मरीज को यह बीमारी होती है। कोविड के गंभीर मरीजों का लाइन ऑफ ट्रीटमेंट सही रखा जाए तो उन्हें भी यह दिक्कत नहीं होगी। यह कहना है बाबा राघव दास मेडिकल कालेज के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. राज किशोर सिंह का। वह खुद कोविड मरीजों के इलाज में शुरु से ही जुड़े हुए हैं व सपरिवार संक्रमित हैकर ठीक भी हुये हैं।
डॉ. राज किशोर ने बताया कि साधारण भाषा में कहा जाए तो कहीं भी फंगस तभी पनप सकता है जब कोई चीज सड़े। ब्लैक फंगस पर भी यही लागू होता है। यह ज्यादातर मधुमेह के अनियंत्रित स्तर और कोविड के मामलों में एल एम ड्ब्लू हीपेरीन व स्टेरायड के समुचित और सही तरीके से इस्तेमाल न होने के कारण शरीर के किसी उत्तक या कोशिका के सड़ने / मृत होने पर ही उनके फंगल संक्रमण से हो रहा है। पर्याप्त व गहन सतर्कता रख कर इसे रोका जा सकता है।
डॉ. राज किशोर सिंह का कहना है कि ब्लैक फंगस एक रेयर डिजीज रही है और आगे भी यह रेयर ही रहेगी। यह तभी होगा जबकि इसके अनुकूल वातावरण हो। जैसे सिर्फ़ सडी हुई रोटी में ही फंगस लगने की संभावना होती है वैसे ही मानव शरीर के मृत अत्तकों व कोशिकाओं में ही फंगस संक्रमण की संभावना होती है। यह संभावना अनियंत्रित ब्लड शुगर वाले मरीजों में कई गुनी बढ़ जाती है। उनके अनुसार आदि काल से अति अनियंत्रित मधुमेह के मामलों में आंख, कान और नाक पर ब्लैक फंगस का असर देखा व पाया जाता रहा है। कोविड के गंभीर मरीजों को इलाज के समय दिये जाने वाले स्टेरायड के कारण व कोविड के कारण भी मधुमेह स्तर बढ़ जाता है। इसे नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन की उचित मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए। उन मरीजों में भी जिनमें कभी भी मधुमेह नहीं रहा है, कोविड रोग के दौरान अनियंत्रित रक्त शर्करा को इंसुलिन से ही नियंत्रित किया जाना चाहिए। चिकित्सक के परामर्श से खून पतला करने वाली दवाइयों का सेवन शिघ्र व अवश्य होना चाहिए। अन्यथा की स्थिति में रक्त वाहिकाओं में थक्का जमनें से मानवीय शरीर के उत्तक व कोशिकाएं मृत हो जाती व लाख दवाओं व प्रयास के बाद भी वहाँ फंगल संक्रमण हो जाता है। अतः आवश्यकता इस बात की है की कोविड होनें पर चिकित्सक की सलाह पर शिघ्र ही एल एम ड्ब्लू हीपेरीन शुरू किया जाये ताकि उत्तक व कोशिकाओं को मृत होने से बचाया जा सके। स्टेरायड का सेवन भी सुबह की डोज में एक साथ ही करना चाहिए, इससे कोविड साइटोकाइन स्ट्राम के नियंत्रण में आसानी होती है व हाइपोथैलेमो पिट्यूटरी एक्सीस सपप्रेशन की संभावना अत्यल्प हो जाती है। अगर कोविड के इलाज में सतर्कता बरती जाए तो ब्लैक फंगस की आशंका बिल्कुल कम हो जाती है।
इन लक्षणों पर करें गौर
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमएआर) के सुझाव के आधार पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार आंख एवं नाक के आसपास दर्द व लाली, बुखार, सिर दर्द, खांसी,  सांस लेने में कठिनाई, खून की उल्टी और मानसिक स्थिति में बदलाव इसके सामान्य लक्षण हैं।
परन्तु डॉ. राज किशोर सिंह का कहना है कि इस बात का ध्यान रहे कि जिसमें भी ऐसे लक्षण दिख रहे हैं, जरूरी नहीं कि वह ब्लैक फंगस का ही मामला हो।उनके अनुसार अगर कम प्रतिरोधक क्षमता वाले सह-रूग्णता (कोमार्बीडीटी) ग्रसित जैसे कैंसर, लीवर डिजीज, एड्स, अंग प्रत्यारोपण व किडनी फेल्योर आदि के गंभीर मरीजों कोविड के साथ मधुमेह के मरीजों में यह लक्षण दिख रहे हैं तो ज्यादा सतर्क होने की आवश्यकता है इन्हीं मरीजों मे ही ब्लैक फंगस की संभावना होती है। डॉ राज किशोर सिंह के अनुसार अनियंत्रित मधुमेह या कोविड या स्टेरॉयड जनित उच्च ब्लड शुगर वाले मरीजों के नाक में काला जमाव, नाक से काला स्राव, गाल की हड्डी पर दर्द के साथ काला पड़ना, चेहरे पर कालीमा के साथ एक तरफ दर्द, सुन्न और सूजन होना, नाक या तालू के ऊपर कालापान आना, दांत में दर्द व जबड़े की कालीमा के साथ दांतों का ढीला होना, त्वचा के काले चकत्ते युक्त घाव, जैसे लक्षण  होने पर ब्लैक फंगस या अन्य फंगस संक्रमण की संभावना होती हैं।
 
इन बातों का रहे विशेष ध्यान
• शारीरिक स्वच्छता पर ध्यान देना आवश्यक है।
• कोविड होने पर मधुमेह के स्तर को इंसुलिन के सेवन से नियन्त्रित करें, भले ही आपका शुगर मुह से खानेवाली दवाओं से नियंत्रित हो। हमेशा सुबह खली पेट अर्थात नाश्ते के पहले का शुगर करीब 100  व नाश्ते, दोफहर भोजन व रात के भोजन के 2 घण्टे बाद के शुगर को 180 से नीचे ही रखें। इंन्सुलीन शुगर नियंत्रण के साथ ही आपको कोविड बिमारी से उबरने में सहयोग करेगा व पोस्ट कोविड काम्प्लीकेशन से भी बचायेगा।
• चिकित्सक की निगरानी में ही स्टेरायड का सेवन करना है। स्वंय से व नीम हकीम की सलाह पर स्टेरॉयड का सेवन घातक है।
• घर की सफाई करते समय या कहीं भी बाहर जाते समय या धूल भरे स्थानों पर जाते समय मॉस्क का प्रयोग अवश्य करें।
• बागवानी, काई या खाद के बीच कार्य करते समय जूते, लंबी पैंट, फुल बाजू वाली कमीज और दस्ताने पहनें।
इस बात का रहे विशेष ध्यान
डॉक्टर राजकिशोर ने बताया कि अगर दुर्भाग्य से ब्लैक फंगस संक्रमण के लक्षण दिखें तो उक्त जगह / अंग से स्कालपल या ग्लास स्लाइड से खुरचन निकालकर सुखे स्टरलाइज कंटेनर में रख कर दो घंटे के भीतर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में जाँच के लिए भेजें व जाँच कि रिपोर्ट आने के पश्चात ही इसका संक्रमण मानें।बहुतेरी बिमारियों में इस तरह के मिलते-जुलते लक्षण होते हैं, अतएव कभी भी सिर्फ लक्षणों के आधार पर ब्लैक फंगस की चिकित्सा प्रारंभ न करें। ब्लैक फंगस के इलाज में प्रयुक्त दवायें अत्यंत टाक्सीक होती हैं, इसका भी ख्याल रखें व चिकित्सक को जाँच के आधार पर उचित निर्णय लेने हेतु पर्याप्त समय दें। बहुतेरी एन्टीबायोटिक व एन्टीफंगल दवाओं के अनुचित व अत्यधिक प्रयोग से भी ब्लैक फंगस संक्रमण होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए हर स्तर पर अत्यंत सतर्कता व संयम की आवश्यकता होती है।
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