इजरायल-ईरान युद्ध से कालीन उद्योग में मंदी का खतरा मंडरा रहा है। वैश्विक उथल-पुथल और अमेरिकी टैरिफ से जूझ रहे इस उद्योग को अब इस युद्ध ने और भी मुश्किल में डाल दिया है। खाड़ी देशों में अस्थिरता से व्यापार प्रभावित होने और कालीन एक्सपो पर असर पड़ने की आशंका है। निर्यातक चिंतित हैं क्योंकि ईरान कालीनों का जनक है और भारत का उससे गहरा नाता है।
भदोही। पिछले ढाई साल से चल रहे वैश्विक घमासान ने कालीन उद्योग का बड़ा नुकसान किया है। वर्तमान समय कालीन उद्योग अमेरिकी टैरिफ के चलते बर्बादी के कगार पर जा पहुंचा है।
इस संकट से अभी उद्योग निकल नहीं पाया था कि इजरायल-फलस्तीन के बीच चल रही जंग इरान तक आ पहुंचा है। इरान और इजरायल एक दूसरे पर हमलावर हैं। इसके चलते खाड़ी देशों में उथल पुथल मच गई है।
इसके कारण खाड़ी देशों से होने वाला व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। पश्चिम एशिया में जारी तनातनी से विश्व बाजार में पहले से अफरा तफरी की स्थिति थी अब हालात और खराब हो गए हैं।
विश्व बाजार में अस्थिरता की हालत उत्पन्न होने से सितंबर में भदोही में आयोजित होने वाले इंडिया कारपेट एक्सपो के प्रभावित होने की आशंका उत्पन्न हो गई है।
युद्ध का सिलसिला जारी रहा तो इसका प्रभाव विश्व बाजार पर पड़ेगा जो कालीन उद्योग के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होगा। इसे लेकर कालीन निर्यातक चिंतित हैं।
निर्यातकों का कहना है कि भारत से इजरायल व इरान के लिए भले ही निर्यात कम है लेकिन वहां के ताजा हालात को देखते हुए अन्य देशों से होने वाला व्यापार भी प्रभावित हो सकता है।
कालीनों का जनक देश है इरान
इरान कालीनों का जन्मदाता देश माना जाता है। इरान का भारत से हमेशा गहरा संबंध रहा है। भारत में कालीनों का व्यवसाय इरान के कारण ही फला फूला। आज भी भारत में इरानी डिजाइनों में कालीनों का उत्पादन किया जाता है।
उधर, इजरायल के लिए भारत से कालीनों का निर्यात बेहद कम होता है। देखा जाए तो इन दोनों देशों के लिए भारत से कालीनों का निर्यात महज नाम मात्र का है लेकिन दोनों देशों में युद्ध का सिलसिला लंबा चला तो अन्य देशों से होने वाला कालीन व्यवसाय प्रभावित होना तय है।