एस.एन.वर्मा
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पूरी दुनिया एक बहुत बड़ा पूजा स्थल है एक पूजा स्थल के अन्दर बहुत से पूजा स्थल की क्या जरूरत है यह सटीक कथन पर्शियन रहस्यवादी रबकानी का है। आज के बंटे हुये वैभनस्य वाले माहौल में इससे सबक लेना चाहिये। रहस्यवाद को कोई नाम नही दिया जा सकता है। यह धर्म से बिल्कुल अलग है। यह न तो इस्लामी है न हिन्दू है, न इसाई है। रहस्यवाद वैश्विक है। यह व्यापक है। ज़र्रे में फैला हुआ है। यही से हर चीज में छोटी, बड़ी, दिखने वाली, न दिखने वाली हर एक में व्याप्त होता है।
अकबर एलाहाबादी का एक शेर है हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से हर सांस यह कहती है हम है तो खुदा भी है। अकबर साहब का कहने का मतलब है हर जर्रा सर्वशक्तिमान की रोशनी से रोशन है। ष्हर सांस कहती है अगर हम है तो खुदा भी है।ष् यही अध्यात्म है यही रहस्यवाद का निचोड़ है। यह धर्म की संकीर्ण सीमा में बंधा हुआ नही है। न तो पूजा स्थल के संकीर्ण जगहों में बंधा हुआ है। रीनार्ल्ड एक निकलसम ब्रिटिश स्कालर है पार्शिपन के बड़े विद्वान माने जाते है। उनका कहना है यह व्यक्तिगत रूप से व्यक्तिगत है। इस्लामी रहस्यवाद का सार जलाउद्दीन रूमी बालखी में पाया जा सकता है जो स्वागत करते है अग्निपूजक का विधर्मी का खुदा को मानने वाले का, न मानने वाले का, मूर्तिपूजन का, मूर्ति भजंक था। उनके आर्शीवाद में सब समा जाता है। हर आत्मा वैश्विक आत्मा का वाहक है उसमें विश्वआत्मा के ही सारे गुण निहित होते है। अल्लामा इकबात का शेर देखिदे हक़ीकत एक है हर शै की खाकी हो यानूरी। लहू खुर्शीद का टपके अगर ज़र्रा का दिलचीरे। मतलब मूल सच हर एक चीजों का एक ही है। सूरज का खून टपकेगा अगर एक कण का भी दिल काट कर खोला जाये।
इरान के रहस्यवादी उपनिषद और वेदान्त के दर्शन से प्रभावित थे। आदमी के सीधे विकास के वे हिमायती थे। जब मानव विकसित होता है तो इश्वरत्व तक पहुचं जाता है। तब अपने शाश्वत देवत्व का बोध पाता है। तब आदमी की जिन्दगी एक ऐसा बिन्दु आता है जहां वह न मूर्तिपूजक रह पाता है न मुस्लिम निराकार भगवान की पूजा करने लगता है। दूसरे शब्दो में मानवता का सार प्राप्त करना है देवत्व है। हर व्यक्ति अनुभव प्राप्त आत्मा वैश्विक आत्मा का वाहक हो जाता है। उपनिषद के सूत्र की घोषणा करने के लिये अहम ब्रहमास्मि या अनहल हक़ इस्लामी अध्वत्म में रहस्यवाद कोई अलग न तो दर्शन है न उत्कृष्ट विचार है। यह मानव स्वभाव का फलनाफूलना है, आत्मा का विकास है, अन्तरजगत के देवत्व का अनुभव है। एक रहस्वादी पूरी मानवता के विजय का उत्सव मनाता है, हर आदमी के दर्द, मनोवेग, दुर्दशा, दर्दनाक परिस्थिति का अनुभव करता है। आदमी हो भगवान है बाकी नगण्य है। रहस्यवादियों का यह श्रुतिलेख है जो मानव जाति को आपस में जोड़ती है। रहस्यवादी का दिल हर चीज को स्वीकार करने को तैयार रहता है। जिसके द्वारा हर चीज का समानरूप से स्वागत करता है। स्थिर रहता है। समता रहस्यवादी का गर्म होता है। हर एक को अपनी इसी दृष्टि से अपने में समोलेता है। एक रहस्यवादी दुनिया में रहता है पर अपने को रोज बरोज के दुनियां के कारोबार से अछूता रखता है। वह द्रष्टा है, निरक्षक है बिना किसी भेदभाव पूर्वाग्रह के एलहाबादी इसको इस तरह कहते है दुनिया में हॅू दुनिया का तलबगार नही हूं बाजार से गुजरा हूॅ खरीदार नहीं हूॅ लेकिन मै उसका इच्छुक नही हॅू। मै बाजार से गुजरा हॅू जिसे दुनियां कहते है लेकिन मै खरीदार नहीं हूूं।
आज बुद्धिमानी होगा याद करना विश्व प्रेम जो रहस्यवादियों द्वारा प्रस्तुत किया गया है जिन्होंने जीवित अजिवित सभी में आश्चर्य चकित कर देने वाला वही अंगार देखा है। खुले रूप में चेतना को छूते हुये सभी जीवित प्राणियों में तत्क्षण उसे विराट से जोड़ना रहस्यवाद का प्रयोजन है। व्यक्ति को अपनी योग्यता देखने लायक बना कर रहस्वादिता व्यक्ति को ऊपर उठाती है आदमी को ईश्वर के स्तर तक पहुंचाती है। क्षुद्रता के लिये कोई स्थान नही छोड़ती है जिसे हम रोज देखते है। एक रहस्यवादी आदमी द्वारा बनाये गये धर्म के दिखावे की प्रस्तुतीकरण ऊपर होता है। शकील बदायूनी के शब्दों में पहंुचा हॅू वहां नही दूर जहां भगवान भी मेरी निगाहे से मै उस ऊंचाई पर पहंुच गया हॅू जहां भगवान भी मेरी नज़र से दूर नही है। यही रहस्यवाद की आत्मा है।