प्रशिक्षकों  ने बच्चों में रूचिकर ढंग संस्कारों के बीज पल्लवित करने के गुर सिखाएं

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अवधनामा संवाददाता

लखनऊ। गीता परिवार के तत्वावधान में दो दिवसीय संस्कार संयोजन कार्यकर्ता स्वाध्याय शिविर का समापन कल्याणकारी आश्रम श्री दुर्गाजी मंदिर शास्त्रीनगर में किया गया। इस मौके पर देशभर से पधारे प्रशिक्षकों ने कार्यविस्तार से स्वविस्तार – एक साधना पथ डॉ आशु गोयल, विविध वैकल्पिक प्रतियोगिता श्रद्धा रायदेव, स्तोत्र मधुराश्टकम सुवर्णा मालपाणी, कथाकथन रेखा मुंदड़ा  ने अपने सत्रों के माध्यम से 150 से अधिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि करने के गुर सीखे। प्रशिक्षकों ने बालकों में रूचिकर ढंग से संस्कारों के बीज पल्लवित करने के गुर सिखाएं ताकि जीवनभर उनके विचार संस्कार वृक्ष की छाया में विकसित होते रहे। शिविर के समापन पर श्रीराम जन्मभूमि के कोशाध्यक्ष, श्रीकृश्ण जन्मभूमि के न्यासी और गीता परिवार के संस्थापक, अध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने कार्यकर्ताओं को आर्शीवचन देते कहा कि आज हमें क्या चाहिए जिससे हमारा और समाज का कल्याण हो। आज सर्वाधिक आवश्यकता है मनुश्य के निर्माण की। लोगांे की केवल संख्या वृद्धि होकर नहीं चलता लोग किसी प्रकार के ध्येय, लक्ष्य से बंधे हुए होने चाहिए तब जाकर उनके जीवन का प्रकाश प्रकट होता है आज हमारे पारिवारिक, सामाजिक, राश्ट्रीय जीवन में भी समस्याएं है आसपास देखते है हम लोग परिवार टूटते हुए ध्यान मेेंं आते है माता-पिता को वृद्धा आश्रम में क्यों भेजा जाता है विवाह होने पश्चात चंद महीनों में क्यों पुनः संबंध विच्छेद की बारी आती है भौतिकता वातावरण और आत्मकेंद्रित जीवन पद्धति इसका कारण है इसका समाधान कैसा होगा हमारी आदते, संस्कार और दृश्टिकोण बदले बिना नहीं होगा। आज असंख्य लोग अपना-अपना कुकर्म लगातार करते जा रहे है देश मेें विघटनकारी प्रवृत्तियां लगातार बढ़ती नजर आती है भाशा, सम्प्रदाय, रीति, उपसनों को लेकर समाज को बांटते रहना इस प्रकार कार्य एक शक्ति निरंतर करती हुई दृश्टिगोचर होती है समस्याएं अनेक है मित्रोें लेकिन उपाय एक ही हैं गीता परिवार। भगवद्गीता की शिक्षा, आत्मसंयमपूर्ण विकसित करने वाला सेवाभाव जीवन कैसे जीया जा सकता है इसके आदर्श स्थापित करते हुए गीता परिवार चलेगा तो अपने आप तो ये सारी-सारी समस्याएं वहीं-वहीं के समाप्त हो जायेगी। यह कार्य अगली पीढ़ी के बालकों के लिए कैसा किया जाए यह पाठ लेने जो कार्यकर्ता शिविर में आते है वे धन्य है जो शिक्षा आपको मिलती है, जो बताया, करवाया, करने के लिए कहा जायेगा वह निश्चित रूप हमारी संपूर्ण मानवजाति के कल्याणप्रद और राश्ट्र के हित में होगा। योग तो वह होते जो प्रवाह में नहीं बहते जो स्वयं अपनी क्षमता से प्रवाह को मोड़ देते है इस प्रकार क्षमता गीता के ज्ञान के बिना नहीं आती। शिविर समापन पर कार्यकर्ताओं ने ज्यादा से ज्यादा ग्रीष्मकालीन संस्कार पथ शिविरों को आयोजित करने का संकल्प लिया।

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