अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी (Barabanki)। पांच साल की शिवांगी के जन्म से सुन्न कानों में पहली बार आवाज गूंजी तो वह घबरा गयी। कान में हुई हलचल से रोने लगी। उसके चेहरे पर अजीब डर था। यह सब देख रहे उसके पिता की आंखें भी डबडबा गईं। आरबीएस टीम की अथक प्रयास से इसी बच्ची का कुछ दिन पहले गंभीर बीमारियों से जूझ रही मेहरोत्रा ईएनटी हॉस्पिटल कानपुर के डॉक्टरों ने सफल कॉक्लियर इम्प्लांट किया था। ऑपरेशन के बाद स्पीच प्रोसेसर के जरिए पहली बार बच्चे के कान तक आवाज पहुंची। बच्ची की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उसका ऑपरेशन करने वाली टीम के सदस्यों के चेहरों पर भी मुस्कान छा गई।
जनपद में विकास खण्ड फतेहपुर के नालापर दक्षिणी निवासी सुजीत कुमार की पांच साल का बेटी जो जन्म से ही सुन और बोल नहीं सकती थी। इसका आर महरोत्रा ईएनटी हॉस्पिटल कानपुर में डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि बच्ची के कान से दिमाग की नस जुड़ी नहीं है। इस कारण वह सुन नहीं सकती। न सुन पाने के कारण बोल नहीं पा रही है। उन्होंने कॉक्लियर इम्प्लांट की सलाह दी। पिता के हामी भरने पर छह जुलाई को ऑपरेशन हुआ। इस ऑपरेशन में कान की सर्जरी करके इलेक्ट्रोड (इंटरनल प्रोसेसर) इम्प्लांट करके दिमाग और कान की नस को कनेक्ट किया गया।
कॉक्लियर इम्प्लांट के बाद पन्द्रह जुलाई को बच्ची की पहली बार स्पीच थैरेपी हुई। इसके लिए कान के बाहर स्पीच प्रोसेसर लगाया गया। प्रोसेसर इंस्टॉल और ऑन करने के बाद सात साल बाद बच्चे के कान तक कोई आवाज पहुंची। तो उसके चहरे पर मुस्कान आ गई। डॉक्टर के अनुसार कान में हियरिंग मशीन की तरह लगाया जाना वाला स्पीच प्रोसेसर बैटरी से चलता है। इसे ऑन करने पर तरंगे इम्प्लांट किए गए इंटरनल प्रोसेसर से कनेक्ट हो जाती है। बाहर की आवाज को दिमाग तक पहुंचाती है। कुछ थैरेपी के बाद बच्चा आवाज सुनने का अभ्यस्त हो जाएगा।
फतेहपुर नालापर निवासी सुजीत कुमार मजदूरी करता है। बच्ची के पिता ने बताया कि मेरे दो बच्चें है, जिसमे एक बेटा अभय बड़ा और शिवांगी लाडली है। वह सुन बोल नहीं पाती थी, तो उसके भविष्य को लेकर चिंता होती थी। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे।
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