Caste Census In India राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि 1971 के पहले तक दक्षिण में तेजी से आबादी बढ़ रही थी जबकि उत्तर प्रदेश एवं बिहार समेत उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या नियंत्रित थी। कुशवाहा ने स्टालिन का नाम लिए बगैर तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर जनसंख्या के हिसाब से परिसीमन को जरूरी बताया।
आबादी के हिसाब से लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन का विरोध कर रहे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के खिलाफ राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने मोर्चा संभाल लिया है। दिल्ली में मंगलवार को उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि 1971 के पहले तक दक्षिण में तेजी से आबादी बढ़ रही थी, जबकि उत्तर प्रदेश एवं बिहार समेत उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या नियंत्रित थी।
उस वक्त भी जनसंख्या के हिसाब से ही परिसीमन हुआ था तो क्या यह मान लेना चाहिए कि उत्तर भारत के राज्यों के साथ अन्याय हुआ था। अब विपरीत स्थिति है। दक्षिण के राज्यों ने जनसंख्या को नियंत्रित कर रखा है तो भी पहले वाले फार्मूले पर ही परिसीमन होना चाहिए।
वर्ष 1881 से हो रही देश में जनगणना
कुशवाहा ने स्टालिन का नाम लिए बगैर तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर जनसंख्या के हिसाब से परिसीमन को जरूरी बताया। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश का उदाहरण दिया, जहां 1971 के पहले दक्षिण के राज्यों की तुलना में आबादी बढ़ने का अनुपात कम था।
देश में वर्ष 1881 से जनगणना हो रही है। तब दक्षिण के राज्यों की औसत आबादी चार करोड़ 62 लाख थी, जो 1971 तक 13 लाख 52 करोड़ हो गई। लगभग तीन गुना बढ़ी। इसी दौरान उत्तर प्रदेश की आबादी में सिर्फ दोगुना वृद्धि हुई।
1881 में उत्तर प्रदेश की आबादी चार करोड़ 50 लाख थी, जो 1971 में बढ़कर मात्र आठ करोड़ 40 लाख ही हो पाई। इसी तरह 1881 में भारत की कुल आबादी में बिहार का हिस्सा 10.8 प्रतिशत था, जो 1951 में घटकर 8 प्रतिशत हो गई।
दक्षिण भारत को मिला प्रत्येक परिसीमन का फायदा: उपेंद्र कुशवाहा
कुशवाहा ने कहा कि अंग्रेजी राज में उत्तर भारत का सर्वाधिक शोषण हुआ, जिसके चलते गरीबी और भुखमरी बढ़ी और जनसंख्या घटती चली गई, जबकि इस दौरान दक्षिण की आबादी तेजी से बढ़ती रही और प्रत्येक परिसीमन में उन्हें फायदा मिलता रहा।
दक्षिण ने 1971 तक ज्यादा जनसंख्या का लाभ लिया। अब हमारी जनसंख्या बढ़ी है तो उन्हें दिक्कत हो रही है। दक्षिण में अभी औसतन 21 लाख आबादी पर एक एमपी चुना जाता है, जबकि बिहार-यूपी में यह संख्या औसतन 31 लाख है। कुशवाहा ने परिसीमन को आमजन का अधिकार बताया और कहा कि इसे होने देना चाहिए।