अवधनामा संवाददाता(शकील अहमद)
दिपावली की तैयारियां जोरों पर
कुशीनगर (अवधनामा ब्यूरो)। दिपावली का पर्व कुछ दिन शेष रह गया है। ऐसे में लोग जहां अपने घरों की साफ-सफाई कर सजाने में लगे है वहीं पुरातन काल से चली आ रही परम्परा के तहत कुम्हार दियो को बनाने में लगे है, उनकी चाक पुरी गति से चल रही है। लेकिन कुम्हारों के इस पारम्परिक रोजी रोटी पर अब संकट के बादल मडराने लगे है क्योंकि आधुनिक युग में सूचना प्राद्योगिकी और इलेक्ट्रानिक उपकरणों ने दियो की जगह अपना स्थान बना लिया है। लोग कम लागत में पुरी सुन्दरता के साथ दियो की जगह पर इलेक्ट्रानिक उपकरणों का प्रयोग करने लगे है, और मिट्टी का दिया लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
यू तो भारत वर्ष में सैकड़ों की संख्या में पर्व मनाए जाते है लेकिन दिपावली पर्व का अपना एक विशेष महत्व है। सुख, सौभाग्य, समृद्वि और अनुपम खुशियों का यह पर्व लोग बड़ी श्रद्वा और धन समृद्वि की कामना के साथ जरूर मनाते है और अपने स्नेंहीजनो को उपहार देकर गले मिलकर उनके सुखद और समृद्व जीवन की मंगलमयी कामना करते है। पुरातन काल से मिट्टी के दियो का प्रयोग लोग करते चलें आ रहे है अपने घरो, चौबारे, अटालिकाओ पर दियो की पंक्ति सजाकर प्रकाश पर्व दिपावली को बड़ी श्रद्वा पुर्वक मनाते चले आ रहे है। किसी कवि ने लिया है कि-‘‘ दिवाली प्यारी आती है, दिवाली न्यारी आती है, दियो की पांति जलाने को, हृदय से खुशी मनाने को, दिवाली प्यारी आती है।‘‘
उक्त पंक्ति से स्पष्ट है कि दिपावली जो प्रकाश पर्व है मनुष्य के जीवन मे दुख, निराशा, असफलता और दरिद्रता की घनीभुत कठोर कालिमा को मिटाकर मनुष्य के जीवन को सुख समृद्व देते हुये अपार खुशिया प्रदान कर दिपावली कें दिये उनके जीवन को अपने रश्मिमयी किरणो से जीवन को आलोकित कर देती है लेकिन युग बदला, लोग बदले और हमारे पारम्परिक रीति रिवाज भी आधुनिक युग के सुचना प्राद्योगिकी के कहर से बच नही पाये और कुम्हार जो आदि काल से मिट्ट के दिये बनाकर लोगो के घर के लिए प्रकाश पर्व मे सहयोग कर रोजी रोटी का जुगार कर लेते थे आज इनके सामने भी संकट के काले बादल भी घिर गये है। लोग मिट्टी के दिखे जलाने के बजाय आज तमाम प्रकार के इलेक्ट्रानिक उपकरण जो कम विद्युत खर्च एलईडी युक्त वस्तुओ का प्रयोग कर रहे और यहाँ तक की मोमबत्ती जैसे रोजगार पर भी संकट के बादल घिर गये है। आज कुम्हार काफी मशक्कत कर चाक पर मिट्टी के दिये बनाते है जो आधुनिक युग में इन सब उपकरणो से कुम्हार के जीवन यापन करने मे दिक्कते पैदा हो गयी है। पहले कुम्हार शिकहर बहिया बनाकर दिये और मिट्टी के खिलौने जिसमे चाकी, घंटी, कोशे आदि रखकर गांव और शहरो मे पहुंचते थे और लोगो जहाँ दिये खरीदते थे वही बच्चो के लिए उनके मनपसन्द के मिट्टी के खिलौने भी खरीदते थे लेकिन आज सब कुछ बदल गया और इस बदले परिवेश मे किसी को राहत मिली तो किसी की रोजी रोटी पर संकट पैदा हो गया।