28 फरवरी 2016 को ही पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बरेली में एक किसान रैली को संबोधित करते हुए आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी कि आने वाले 2022 में जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा, तो किसानों की आय दोगुनी हो चुकी होगी। इस हिसाब से इस वादे को किए 5 वर्ष का समय पूरा होने में डेढ महीने का समय ही शेष है। इन सबके बीच नये कृषि कानूनों के विरोध ने इस बहस को पुनः केन्द्र में ला दिया है कि आखिरकार किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजादी के सात दशक से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी किसानों की आय बढ़ाने के बारे में क्यों सोचा नहीं गया। वर्तमान में किसान आंदोलन में सिर्फ तीन विवादास्पद कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने की मांग का ही शोर सुनाई देता है। किसान को कारोबारी बना दिया गया है। बुनियादी समस्याएं और सवाल कुछ और भी हैं, जो किसान की आय और अस्तित्व से सीधा जुड़े हैं। एक अंतरराष्ट्रीय रपट ने अध्ययन किया है कि 2000-16 के दौरान किसानों को 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि उन्हें फसलों के उचित दाम नहीं मिले और खुले बाजार की व्यवस्था बंद-सी रही। बीते अढाई दशक में 4 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। यह स्थिति विविध स्तरों पर कर्ज माफी के बावजूद रही। कर्ज माफ किए गए, तो किसान कर्जदार क्यों रहा? भारत सरकार की आर्थिक समीक्षा, 2016 की रपट को संसद में पेश किया गया था। उसमें खुद सरकार ने माना था कि देश के 17 राज्यों में किसान की औसत सालाना आमदनी 20,000 रुपए है। किसान की मासिक आय 1700 रुपए से भी कम३! अब स्थिति यह है कि बिहार में किसान की औसत आय 42,000 रुपए सालाना है। यानी करीब 3500 रुपए माहवार..! सिर्फ यही नहीं, 2011-15 के दौरान किसानों की आमदनी औसतन 0.5 फीसदी ही बढ़ी है। जरा सोचिए कि 2022 में किसान की आमदनी दोगुनी कैसे हो सकती है? 1967 में एमएसपी को लागू किया गया था। तब से किसान की आमदनी करीब 19 गुना बढ़ी है, जबकि सरकारी कर्मियों के वेतन करीब 150 गुना बढ़े हैं। सातवें वेतन आयोग के बाद तो बजट पर इतना बोझ बढ़ा है कि अभी तक घाटा जारी है।
एक ही देश के दो अलग-अलग कार्य-वर्गों में आय के ऐसे विरोधाभास क्यों हैं? सवाल यह भी है कि किसान आंदोलन ने इन बेहद महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील तथ्यों को नजरअंदाज क्यों रखा है? बाजार बेहतर होता और सरकारी खरीद भी पर्याप्त होती, तो किसानों की यह दुर्दशा क्यों होती? कृषि की राष्ट्रीय विकास दर 4 फीसदी से भी कम क्यों रहती? सबसे संवेदनशील तथ्य यह है कि बीते 30 सालों के दौरान रोजाना औसतन 2000 किसानों ने गांव और खेती को छोड़ा है और वे शहर आकर मजदूरी कर रहे हैं, रेहड़ी-खोमचा लगा रहे हैं अथवा साइकिल रिक्शा चलाते हैं। किसानों को कमोबेश खेती की तुलना में ये काम ज्यादा लाभकारी लगते हैं। वैसे विश्व बैंक की एक नीतिगत कवायद रही है कि लोग गांव छोड़ कर शहरों में बसें और शहरीकरण का विस्तार हो। सरकार के सामने ये तमाम तथ्य जरूर होंगे। खेती पर सरकारी खर्च जीडीपी का मात्र 0.37 फीसदी है। किसान के लिए भी डीजल पर कर है, कृषि संयंत्रों और कीटनाशकों पर भी जीएसटी के रूप में सरकार आधे से ज्यादा वापस वसूल लेती है। प्रौद्योगिकी के अभाव में कृषि उत्पादन भी कम है। गेहूं और धान की पैदावार पर हमें बहुत गर्व है, लेकिन ऐसा उत्पादन करने वाले देशों में भारत का स्थान 50वां है।
कुछ विशेषज्ञों का तो मानना है कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए वार्षिक कृषि विकास दर 14.86 फीसदी होनी चाहिए। लेकिन, यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि भारतीय कृषि के इतिहास में कभी भी किसी वर्ष के लिए ऐसी कृषि वृद्धि दर हासिल नहीं हुई है। पिछले सालों में तो स्थिति और बदतर हुई है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वार्षिक विकास दर 2012-13, 2013-14, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में क्रमशः 1.5 फीसदी, 5.6 फीसदी, -0.2 फीसदी, 0.6 फीसदी, 6.3 फीसदी, 5.0 फीसदी और 2.9 फीसदी रही है। 7 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार भी वर्ष 2019-20 में कृषि विकास दर का अनुमान 2.8 फीसदी ही है। तो अब इसका निष्कर्ष यही निकलता है कि सरकार सिर्फ सपने दिखा रही है क्योंकि आंकड़े कहीं से भी कृषि में वृद्धि को इंगित नहीं कर रहे हैं। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए, कृषि क्षेत्र को कम से कम औसतन 10 फीसदी सालाना की वृद्धि होनी चाहिए थी. जबकि हकीकत में यह 5 फीसदी की औसत दर से भी नहीं बढ़ रही है।
सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से दलवाई समिति बनाई थी. इस समिति के आकलन के अनुसार यदि 2015-16 को आधार वर्ष लेकर हम किसानों की आय को दोगुना करने के लिए काम करें तो किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने के लिए हमें प्रति वर्ष कृषि आय में 10.4 फीसदी की दर से बढ़ोतरी करनी होगी। वर्तमान में कृषि आय में कितनी वृद्धि हो रही है, इसका आंकड़ा मौजूद नहीं है. अशोक दलवई की अध्यक्षता वाली समिति ने वर्ष 2015-16 के थोक मूल्यों के आधार पर 2022 तक किसानों की वार्षिक आय को वर्तमान 96,000 रुपये से 1.92 लाख रुपये तक बढ़ाने के लिए एक विस्तृत रणनीति के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने का कार्य किया था। इस बीच सरकार ने किसानों के लिये कई लाभकारी योजनाओं की घोषणा की है। ये योजनाएं ईमानदारी से धरती पर भी उतारी जा रही हैं। बावजूद इसके कई विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना एक बेहद ही अकल्पनीय लक्ष्य है, लेकिन आज इसकी जरूरत है। इस लक्ष्य को पूरा करने से कृषि और गैर-कृषि आय के बीच कभी न खत्म होने वाली असमानता कम होगी, ग्रामीण संकट दूर होगा और कृषि क्षेत्र में व्यापक विकास होगा। हम देश में बढ़ रहे कृषि संकट का अंदाजा इस तथ्य के साथ लगा सकते हैं कि वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 के बीच में कुल 57,345 किसानों ने आत्महत्या की है। यानी कि हर वर्ष औसतन 11,469 किसानों ने या फिर कहें तो प्रतिदिन 31 किसानों ने आत्महत्या की।
संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होना है। बेशक इस मुद्दे पर हंगामा जरूर होगा, क्योंकि विपक्ष को इसमें भरपूर राजनीति दिखाई देती है। हमारा सरोकार और चिंता किसानों की स्थिति को लेकर है। पंजाब और हरियाणा के किसान अपेक्षाकृत सम्पन्न हैं और उनके लिए मंडियों तथा आढ़तियों की व्यवस्था भी दुरुस्त है। बेबस और गरीब तो देश का औसत किसान है, जिसके पास जोत की अपनी जमीन भी नहीं है और वह दूसरे की जमीन पर मजदूर बना है अथवा जमीन ठेके पर लेकर खेती करने को विवश है। उसकी सुनवाई प्रधानमंत्री मोदी कब करेंगे?