एस एन वर्मा
भारतीय स्वतन्त्रता के लड़ाई के इतिहास में दिसम्बर 1929 में हुये लाहौर अधिवेशन का विशेष महत्व है। इसलिये कि उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पन्डित जवाहर लाल नेहरू जो नौजवान थे, समाजवादी विचारधारा के करीब थे लाहौर अधिवेशन में प्रस्तुत करने के लिये ड्राफ्ट उन्होंने ही तैयार किया था। भारत के आजादी की लड़ाई कैसे आगे बढ़ाई जाये, भारत के आजादी का स्वरूप क्या होगा, संविधान किस तरह का होगा, हर छोटी और बड़ी बात को बहुत तर्कसंगत दृष्टि से व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया था।
उसी के आधार पर आज भारत का लोकतन्त्र कायम है इस पूरे प्रारूप में गांधी का जोर केवल लड़ाई अहिंसात्कम रहे और देश धर्म के मामले में सेकुलर रहे पर जोर था जिसे प्रारूप में शामिल किया गया था। पूरे देश में स्त्री, पुरूष बूढ़े बच्चों में असीम उत्साह था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सुबह आठ बजे सभी तिरंगा झन्डा लिये निकल पड़े थे और वन्देमातरम् और झन्डा गीत से पूरे भारत के शहर और गांव में तिरंगा लहरा रहे थे। यह भारत के पूर्णस्वराज और स्वाधीनता का संकल्प था। उसी दिन से 26 जनवरी को सुबह आठ बजे ही झन्डा रोहण का कार्यक्रम होने लगा।
दिसम्बर 29 को लाहौर अधिवेशन में ही पन्डित नेहरू ने अग्रेजी शासन को संवैधानिक सुधारों की अर्जी देने और स्वशासन की पुरानी मांग को तोड़ते हुये आजादी घोषणा कर दी और इसे पूर्ण स्वराज की संज्ञा मिली। फिर इलाहाबाद कांग्रेस में पूर्ण स्वराज को जन-जन में पहुचाने के लिये 6 जनवरी 1930 की बैठक में कांग्रेस कार्य समिति ने 26 जनवरी का पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाने का निर्णय लिया। 26 जनवरी चंूकि महीने का आखिरी रविवार उस समय इसीलिये इसी तारीख को हमेशा सुबह आठ बजे झन्डा फहराने का निर्णाय मान्य किया गया। देशवासियों से कहा गया अगली 26 जनवरी को तिरंगा फहरा कर पूर्ण स्वराज का जय घोष किया जाय।
स्वाधीनता दिवस के बारे में गांधी जी ने 26 जनवरी 1930 से पहले स्वाधीनता दिवस आयोजन को लेकर सुबह कुछ निर्देश दिये थे। जुलूस आहिंसक तरीके से लोग निकालेगे भाषण नहीं होगा। कांग्रेस पूर्ण स्वराज के भावनाओं को स्थानीय भाषा में अनूदित कर लोगो को सुनाया जायेगा।
भारत हमेशा अन्तरराष्ट्रीय माहौल को भी अपने पक्ष में लाने के लिये कोशिश करता रहा। इस क्रम में संकल्प की सूचना दूसरे देशों को भी भेजी गयी। इसका सीधा असर हुआ। उस समय अमेरिका के कई सांसदों ने भारत के स्वतंन्त्रता संकल्प को समर्थन दिया था। 26 जनवरी 1930 को न्यूयार्क की एक सभा में अमेरिकी सांसदों ने भारत के पूर्ण स्वराज संकल्प को समर्थन दिया। यही नहीं अमेरिकी सीनेट ने स्वाधीन भारत को अपनी मान्यता देने का भी आग्रह किया। अमेरिकी सिनेट के विदेशी सम्बन्धों की समिति में भी यह प्रस्ताव लाया गया और सांसदों ने यह सन्देश पन्डित नेहरू को भेजा दुनियां के और देशो के भारतीयों ने भी विदेश में ही स्वाधीनता दिवस 26 जनवरी 1930 को मनाया। जिसे स्थानीय लोगो ने पूर्ण समर्थन दिया। तभी से 1930 से ही आजादी मिलने तक भारत हर साल 26 जनवरी को ही स्वाधीनता दिवस मनाता आ रहा है।
लाहौर अधिवेश आजादी की लड़ाई में इसलिये महत्वपूर्ण है कि इस अधिवेशन में भारत के संविधान और भावी शासन प्रणाली की रूप रेखा प्रस्तुत की गई थी। जिसमें पन्डित नेहरू का योगदान नहीं भुलाया जा सकता। जिसे उन्होंने तैयार किया था। लाहौर अधिवेशन ने आर्थिक, राजनीतिक, संस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिये प्रेरित किया। स्पष्ट किया गया कि भारत पथ निरपेक्ष शासन व्यवस्था लागू करेगा।
चूकि पन्डित नेहरू का झुकाव शुरू से समाजवादी की ओर रह है इसलिये कहा अर्थव्यवस्था समाजवाद पर आधारित होगी। पूजीपतियों और राजाओं द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था के लिये स्थान नहीं रहेगा। नेहरू ने यह भी कहा इंग्लैन्ड संसद का निर्णय अमान्य रहेगा, न भारत पर उसके द्वारा थोपे गये कजऱ् स्वीकार नहीं करेगा।
लाहौर अधिवेशन में भारत के लिये दिशा निर्देश तय किये गये। वहीं भारत के संविधान सभा की प्रस्तावना के सिद्धान्त बने नेहरू द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों के आधार पर ही समावेशी संविधान बनाया गया। 28 दिसम्बर 1929 की लाहौर कांग्रेस की प्रस्तावना और 13 दिसम्बर 1946 को भारत के संविधान सभा का प्रस्तावना पन्डित नेहरू ने ही प्रस्तुत किये थे। इन दोनो प्रस्तावनाओं के संकल्प का दिन 26 जनवरी था। इसीलिये संविधान निर्माण का काम पूरा हो जाने के बाद भी उसे 26 जनवरी 1950 में लागू करने का निर्णय लिया गया। संविधान के माध्यम से भारत दिनो दिन फल-फूल रहा है। अन्तरराष्ट्रीय स्पेस में अपना महत्वहपूर्णा स्पेस बढ़ाते हुये आगे बढ़ता जा रहा है। इस तरह तरह का इतना बड़ा लिखित संविधान शायद किसी देश में नहीं है।