हिमाचल की चुनावी गुत्थी

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

हिमाचल का चुनाव भाजपा के लिये चैलेन्ज है तो कांग्रेस के लिये मौका है। 1985 के बाद से यह एक ही पार्टी की सरकार लगातार दो बार चुनाव नही जीत सकी है। अभी वहां भाजपा की सरकार है इसलिये कांग्रेस उत्साहित है। पर कांग्रेस को यह भी सोचना होगा कि वहां त्रिकोणी संघर्ष है। आप पार्टी का यह चुनाव में प्रवेश पहली बार हो रहा है उसके उम्मीदवार जीतते है तो वे कांग्रेस के मतदाताओं के बल पर जीतेगे जो कांग्र्रेस के लिये बड़ा झटका होगा।
कांग्र्रेस ने पिछले नवम्बर के चुनाव में चारो सीटे जीती थी। जिसमें एक लोक सभा की भी सीट थी। कांग्रेस का इससे उत्साहित होना स्वाभाविक है पार्टी ने मतदाताओें को रिझाने के लिये पुरानी पेन्शन की बहाली, 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली महिलाओं को 1500 रूपये देने की घोषणाओं से कुछ हद तक लोग प्रभावित तो होगे ही।
पर कांग्रेस पार्टी में गुटबन्दी भी बहुत है। मुख्यमंत्री के रेस में तीन लोग है। कांग्रेस के एक वरिष्ट नेता महाजन ने भाजपा का दामन पकड़ लिया है। देश के दूसरे मागों में कांग्रेस का लगातार नीचे जाता ग्राफ सब मिलकर कांग्रेंस के लिये कोई आशाजनक अनुभूति नही कराते है। पार्टी वीरभद्र सिंह की लीगसी जो बहुत मजबूत है और उनके चले जाने से जो खालीपन आया है उसे भर नही पाई है। शायद कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कोई बड़ी रैली यहां न तो कर पाये है न कर रहे है।
कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिमा सिंह को मैदान में उतारा है उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी है। पार्टी की गुटबाजी खत्म कर कांग्र्रेस को वापस लाने की। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है।
आप पार्टी की अपनी समस्यायें है। यहा पहली बार चुनाव में उतरी है पर उसका जमीनी स्तर पर कोेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेई प्रभाव नही है। दिल्ली पंजाब में पार्टी की हालत ठीक नही चल रही है। दलबदल की भी छाया है जिससे आक्रमक प्रचार नही कर पा रही है। इस राज्य में उसका कोई प्रभावशाली नेता भी नही है।
पार्टी पंजाब की जीत से उत्साहित हो यहां अपनी उपस्थिति बनाने में लगी हुई है। हिमाचल के वे क्षेत्र जो पंजाब सीमा पर है वहां आप को कुछ फायदा मिल सकता है। पर आप के कुछ नेता पार्टी छोड़ भी रहे है जो उसके आशाओं पर पानी फेर देगे। सुरजीत ठाकुर आप के प्रदेश अध्यक्ष है। उन्ही के नेतृत्व ने आप चुनाव लड़ रही है। ठाकुर पहली बार नेतृत्व कर रहे है।
भाजपा की अपनी मुशकिले है। पहले तो दो बारा आने का चैलेन्ज है। यहां के राजनीति में दो प्रमुख लाबी है सेब उगाने वालो की और सरकारी अमले की। ये नतीजे को प्रभावित करते है। स्थानीय कुछ लोगो की कुछ समस्यायें है और सरकारी अमला पुरानी पेन्शन की मांग कर रहा है। केन्द्र सरकार इसके विरूद्ध है। ये नतीजे में हस्तक्षेप तो करेगे ही। दूसरे आप पार्टी से भी इनका मुकाबला रहेगा, वे भी इनके कुछ मतदाताओं को प्रभावित कर सकते है। दूसरे इनकम्बेन्सी भी अपना हिस्सा अदा कर सकती है। पार्टी में भी कुछ असन्तुष्ट है। इक्का दुक्का पार्टी छोड़ भी रहें है पर भाजपा में आने वालो की संख्या ज्यादा रहती है।
इन सबके बावजूद भाजपा का पक्ष मजबूत दिख रहा है। पहले तो वहां के मुख्यमंत्री काल बेदाग़़़़़़़़़़़़ रहा है। कोविड के समय में टीकाकरण का प्रभावी इन्जजाम करके कोविड पर काबू पाया और पर्यटको के गिरती संख्या को फिर से पुनरजीवित कर दिया। उनके शासन में कोई विवाद नही उठा। पहले तो मोदी फैक्टर ही काफी प्रभावशाली रहता है और यहां के सन्दर्भ में भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी यही के है इसका भी फायदा मिलेगा। केन्द्र का हटटी को आदिवासी दर्जा देना कुछ जगहो पर असन्तुष्टी की वजह बन सकता है पर जिस क्षेत्र में हड्डी है वहां तो आंख मूद के सपोर्ट मिलेगा भाजपा को इसके अलावा यहां पर शिक्षा, स्वस्थ्य और उ़द्योग के क्षेत्र में बड़े प्राजेक्ट शुरू किय है। उनका असर पड़ना तो लाजमी है। यहां भाजपा के भाजपा ने बड़े नेता आ रहे है। यहां के विकास को लेकर और विकास के प्रोजेक्ट को लेकर वे निर्णायक प्रभाव डालेगे।
पिछले उपचुनाव में तहलका मचाने वाले मु ख्यमंत्री जैराम ठाकुर कांग्रेस द्वारा जीते उपचुनाव के तूफान को झेलकर मजबूती से डटे हुये है। ठाकुर को सभी पसन्द करते है। दृढ़ इच्छा शक्ति की वजह से कभी कभी आलोचना भी हो जाती है। पर इन्ही के कुशल नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ रही है। सभी से इनके सम्बन्ध अच्छे है। लगातार दो बार लाने का चैलेन्ज कैसे निपटाते है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। ऊंट किस करवट बैठता है।

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