डा हेमलता पंत
प्रयागराज । केन्या से चलकर पाकिस्तान होते हुए टिड्डी दल प्रायागराज में अपना आतंक फैला रहे हैं । टिड्डिययों की सम्यस्या पर बात करते हुए कृषि वैज्ञानिक डा हेमलता पंत ने बताया कि टिड्डी एक्रिडाइडडी परिवार के आर्थोप्टेरा गण का कीट है। हेमिप्टेरा गण के कीट भी टीड्डी या फसल टिड्डी कहलाता है। इसे लघु श्रंगीय टिड्डा भी कहते हैं संपूर्ण संसार में इसकी केवल 6 जातियां पाई जाती हैं यह प्रवासी कीट है और इसकी उड़ान 2000 मील तक पाई गई है टिड्डी दल किसानों के सबसे प्राचीन शत्रु हैं वे मध्यम से बड़े आकार के टिड्डे होते हैं जन्म के समय अकेले होते हैं और साधारण टिड्डा की तरह व्यवहार करते हैं तो उन्हें एकाकी अवस्था में जाना जाता है। भीड़ भाड़ की सामूहिक स्थितियों में वे साथ-साथ समूह बनाकर रहते हैं और चिरस्थाई तथा संम्बद्ध वयस्क टिड्डियों का झुंड बनाते हैं यह तब होता है जब वह यूथ चारी रूप में रहते हुए समुहशिलता या सामूहिक जीवन की अवस्था में पाए जाते हैं इसके बाद वाली अवस्था में वे फसलों और अन्य पेड़-पौधों व वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
डा पंत के अनुसार एकाचारी टिड्डी की संतति झुंड में पलने पर यूथ चारी किस्म मैं परिवर्तित हो जाती हैं यदि यूथ अधिक संख्या वाला और दीर्घकालीन होता है तो उसमें पलने वाले एकाचारी टिड्डी के बच्चे चरम यूथाचारी तथा प्रवासी होते हैं। यूथ चारी टिड्डी के संतति एकांत में पलते हैं और एकचारी में परिवर्तित हो जाती हैं। टिडि्डया फसलों की पत्तियों को किनारे से खाती हैं और झुंड बनाकर आक्रमण फसलों पर करती हैं।
डा हेमा पंत ने कहा कि टिड्डियों का झुंड दिन के दौरान उड़ान भरता रहता है ।शाम होने पर पेड़ों पर झाड़ियों व फसलों इत्यादि में बसेरा करता है व रात गुजारता है। अत: टिड्डियों के दलों की तलाश के सिलसिले में विशेष तौर से इन स्थानों की जांच की जानी चाहिए फिर वह सुबह होने पर सूर्य उदय के बाद अपने बसेरों के स्थान से ऊपर उठकर उड़ना शुरू कर देते हैं। आने वाले टिड्डी दल दो रंग के गुलाबी और पीले होते हैं। पीले रंग का टिड्डी ही अंडे देने में सक्षम होती है इसके लिए पीले रंग की टिड्डी के पड़ाव डालने पर पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता है,क्योकि पड़ाव डालने के बाद टिड्डिया किसी भी समय अंडे देना शुरू कर देते हैं। अंडे देते समय दल का पड़ाव उसी स्थान पर तीन-चार दिन तक रहता है। अतः दल उड़ता नहीं है इस स्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहिए गुलाबी रंग की टिड्डियों के दल का पड़ाव अधिक समय नहीं होता है इसलिए इसके नियंत्रण हेतु तत्परता बहुत जरूरी है टिड्डियों का आतंक प्रारंभ हो जाने के बाद इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। नियंत्रण हेतु प्रजनन कम होने देना चाहिए इसके लिए जहां अंडे दिए जाते हैं वहां पर जुताई करके अंडों को नष्ट कर देना चाहिए। दूसरा नियंत्रण कृषक भाइयों को अपने खेतों में जाकर तेज ध्वनि 100 से 125 डेसीबल किसी भी माध्यम से करना चाहिए।
टिड्डियों से बचाव का उपाय बताते हुए डा हेमलता पंत ने कहा कि एक हेक्टेयर फसल में क्लोनालफास 1.5 प्रतिशत डी पी या क्लोरपाइरीफास 1.5 प्रतिशत डी पी@25 किलोग्राम का का बुरकाव खड़ी फसल में करें। बुरकाव के 15 दिन बाद ही फसल को बुरकाव। इससे व्यस्क नष्ट हो जाते हैं। अंडे जिन स्थान पर दिख जाते हैं वहां पर भी इन कीटनाशकों को डालकर अच्छे से मिला दे तो अंडे भी नष्ट हो जाते हैं।
कार्बारिल चुर्ण का छिड़काव 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खड़ी फसल में लाभप्रद होता है।
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