एस.एन.वर्मा
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इतना क्रूर आदमी कैसे हो जाता है सोच कर हैरत होती है। दास्तान नही हकीकत ऐसी है कि पत्थर भी पिघल जाये। पर वाहरे आदमी जिसे सृष्टि का सबसे संवेदनशील और सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी माना जाता है वह इतना क्रूर भी हो सकता है। मानव जाति ही सारे रिश्ते संवेदना के साथ निभाता है। बाकी जीवित प्राणी तो न बाप पहचानते है न भाई, न मां पहचानते है न बहन यदा कदा मनुष्यों में भी ऐसे जानवर निकल आते है पर वे अपवाद स्वरूप होते है।
लखनऊ के टिकैतगंज में एक रामेश्वर प्रसाद थे। किराये के मकान में रहते थे। खड़े मसाले का व्यापार करते थे। परिवार की ज़रूरत भर कमा लेते थे। इसी व्यवस्था से दो बेटो और चार बेटियों की परिवरिश की और उनकी शादियां कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये। सोचा दो बेटे है शरीर भी अब थक गया है। बढ़ती उम्र की बीमारियां गिरफ्त में लेती जा रही थी। दोनो बेटे गाड़ियां चलाने लगे थे। बेफिक्र हो शरीर की अक्षमता से मसाले का व्यापार बन्द कर दिया। घर में रहने लगे। बच्चों की परिवरिश में मशगूल अशवस्त थे और अपने भविष्य के बारे कुछ भी नही सोचा बच्चे के रहते कभी ऐसा ख्याल भी नही आया।
पर खून का रिश्ता पैसो में बदल गया। दोनो बच्चों के लिये पिता अब काम के चीज नही रहे बेकार का भारी बोझ महसूस करने लगे। बच्चों के व्योहार से आहत उनका स्वास्थ तेजी से गिरने लगा और वह बुरी तरह अशक्त हो गये तो बच्चों ने मार पीट कर उन्हें घर से बाहर कर दिया। सोचिये पिता के दिल पर क्या गुजरा होगा। सिवा आसुओं के उनको अपना साथ देने वाला कोई नही दिख रहा था। कोई पड़ोसी सहानुभूति में उनसे बात करता तो उनकी बात का मतलब यही होता था कि गुजर गया जो वह छोटा सा इक फसाना था, फूल थे चमन था आशियाना था, न पूछ उजड़े चमन की दास्ता न पूछ, थे चार दिन के पार नाम आशियाना था। सुन कर पड़ोसियों की आंखे भर आती थी। बीमार चल रहे थे। बच्चों ने घर से बाहर कर ही दिया था। आस पास घिसट रहे थे। एक पड़ोसी ने तरस खा कर 85 साल के रामेश्वर प्रसाद को बलरामपुर अस्पताल में भरती करवा दिया। वहां ठीक हो जाने पर डाक्टरों ने उन्हें डिसचार्ज कर दिया। अब वो जाये तो कहां जाये।
पेशाब की थैली पकड़े वो बेटे के घर पहुंचे पर बेटे ने उन्हें नही रक्खा वह थैली पकड़े सड़क पर पड़े थे एक राहगीर ने तरस खा पुलिस को सूचित किया फिर वन स्टाप सेन्टर की टीम ने उन्हें सरोजनीनगर वृद्धा आश्रम में उनको जगह दिलवा दी। जानकारी के मुताबिक पुलिस में बेटो के खिलाफ रिपोर्ट भी लिखवाई थी। बुजुर्गो की सुरक्षा के लिये कानून है जिसमें परिवार के खिलाफ कार्यवाई की जा सकती है।
वृद्धा आश्रम के कौन्सिलिग के दौरान सिसकते हुये रामेश्वर प्रसाद ने अपनी दर्दनाक दास्तान बयान कर दी। बच्चों द्वारा पीटकर निकाले जाने की दास्तान सुनकर और जानकर दो बेटो चार बेटियों के पिता है रामप्रसाद के साथ सुनने वाले भी सिसक उठे। दर्दनाक दास्तान सुनकर एक शेर उमड़ पड़ा तेरी दुनियां में सब्रोशुक्र से हमने बसर कर ली, तेरी दुनियां से बढ़कर तेरे दोज़ख में क्या होगा। क्या नर्क इससे भी विमत्स हो सकता है।
वनस्टाय सेन्टर के मैनेजर ने बताया 27 सितम्बर को बिमारी के चलते रामेश्वर प्रसाद की मौत हो गई। तब उन्होंने उनके मौत की खबर बेटो को दी पर परिवार से कोई नही आया। तब पुलिस वनस्टाप सेन्टर और वृद्धाश्रम ने मिलकर रामेश्वर प्रसाद का अन्तिम दाह संस्कार करवाया। हर पिता की ख्वाइश होती है मरने के पुत्रों का कन्धा मिले और चिता को मुखान्ग्रि पुत्र ही दे। जिनको पुत्र नही है उनकी चिता को मुखन्गि आजकल लड़कियों भी देने लगी है। रामप्रसाद जी को दो पुत्र और चार बेटियां है। सबको बाहों में झुलाया होगा कन्धों पर बैठाया होगा। गया भी होगा मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा। कुपुत्रों ने नाम तो रोशन किया। पर निहायत घटिया और अमानवीय कृत्य करके। पिता की चिता पर चार लकड़ियां घरने के लिये दो बेटो और चार बेटियों में से कोई भी नही आया। वो सोचते होगे उनके साथ ऐसा नही होगा। पर उनकी औलादे उनसे जो संस्कार पा रही है क्या उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे दूसरे राह पर चलेगे। भगवान सबको सदबुद्धि दे इस दुर्गति से बचाये। दुश्मन की भी ऐसी दशा न हो। इससे भी हृदय विदारक कुछ हो सकता है!