एस.एन.वर्मा
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श्रद्धांजली
माया गोविन्द का जन्म 17 जनवरी 1940 को लखनऊ में हुआ था। अस्सी साल की उम्र पाकर लम्बी बिमारी के बाद हमें छोड़कर चली गई। माया गोविन्द बहुमुखी प्रतिभा की स्वामनी थी। सफल कवित्री, कविसम्मेलनों की आकर्षण रही। साथ ही करीब 350 फिल्मो में उन्होंने कर्णाप्रिया गीत लीखे। सिनेमा के गीत और साहित्यिक कविता के अन्तर को पाटनेे में उनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत खन्डे से संगीत में विशारद उपाधि ली और संगीत में उनका दखल स्मरणीय रहा है। साथ ही भारत खन्ड से ही नृत्य की शिक्षा ले नृत्य में पारंगत हुई।
यही नहीं यही से नाट्य अभिनय भी सीखा। उनमें कितने गुण समाहित थे अब आप अन्दाजा लगा सकते है। बालीउड में लखनऊ में कई कलाकार विभिन्न क्षेत्रों में गये जिन्होंने अभिनय, निर्देशन, संगीत निर्देश, लेखन में अविस्मणीय योगदान दिये। पर माया गोविन्द वालीउड में लखनऊ की पहचान रही। मेरे विचार से वालीउड में संगीतकार नौशाद से बड़ा और लोकप्रिय लखनऊ का कोई किसी भी क्षेत्र का कलाकार नहीं रहा है पर लखनवी पहचान माया गाविन्द ही रही।
माया गोविन्द जब बीस साल की थी तो लखनऊ के एक कवि सम्मेलन में मशहूर फिल्म अभिनेता भारत भूषण ने सुना था। बतादे की भारत भूषण कानपुर के रहने वाले थे। राजश्री प्रोडक्शन वाले कवि सम्मेलन पर एक फिल्म बना रहे थे। भारत भूषण जी ने बताया की कवि सम्मेलन फिल्म बन रही है आप कवि तो है ही उसमें शामिल हो सकती है। माया गोविन्द उस कवि सम्मेलन वाले सीन में शामिल हुई और कविता पड़ते हुये अवतरित हुई। बताते हैं सुमघुर आवाज में रसीली वजनदार कविता ने उन्हें अकूत वाहवाही दिलायी।
माया गोविन्द का फिल्मी गीत लिखने का सिलसिला 1974 में फिल्म आसपास से शुरू हुआ और इस सफर को आगे बढ़ाते हुये उन्होंने तकरीबन 350 फिल्मों में गीत लिखे। उनकी पहली फिल्म आरोप के गाने हिट रहे और उनके लिये फिल्मी गीत लिखने का फाटक खुल गया। उनकी प्रतिमा से प्रभावित हो ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म रंग बिरंगी और झूठी के गीत लिखवाये। मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन ने अपनी फिल्म दमन के लिये भी माया जी ने सराहनीय गीत लिखे। रजिया सुल्तान फिल्म में एक गीत शुभघड़ी आयी। माया गोविन्द को बुलवा कर लिखवाया गया क्योंकि इसके फिल्मकार को विश्वास था कि इस सिचुयेशन का हिट गीत माया गोविन्द ही लिख सकती है। फिल्मों में उनके गीत के अवदान को देखते हुये 1999 में फिल्म राइटर्स एसोसीयेशन ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड दिया। इससे पहले उन्हें सावन को आने दो फिल्म में लिखे गीत के लिये फिल्म वर्ल्ड पुरस्कार दिया जा चुका था। 1970 में माया गाविन्द को संगीत नाटक अकादमी का बेस्ट एक्टेªट अवार्ड से नवाजा गया था। माया गोविन्द ने एक एनजीओ जीवन्ती फाउन्डेशन चलाती थी। जिसने सभी प्रकार के कलाओं को प्रोत्साहन देती थी। उनकी काव्य प्रतिभा का आकलन इस बात से लगा सकते है कि उनकी एक दर्जन से कुछ ऊपर पुस्तक प्रकाशित हुई है। सभी को अच्छी लोकप्रियता मिली है। जानने वाले बताते है कि वह लखनऊ पर इस कदर फिदा थी कि कोई भी वार्ता हो उसमें वह लखनऊ जिक्र ज़रूर लाती थी और उसपर रोचक बातें लोगो बताते थकती नहीं थी।
माया जी ने श्रीमदभगवत गीता के सारे अध्यायों को अपनी कविताओं में पिरोया। इस पर एक म्यूजिक एलबम भी बना। जिसका संगीत संगीतकार विवेक प्रकाश ने तैयार किया था। इस म्यूजिक एलबम के वीडियो में कृष्णन भजन सम्राट जलौटा बने है और अर्जुन का किरदार संगीतकार विवेक प्रकाश ने निभाया है।
एक बार इंग्लैण्ड के मैन चेस्टर में कवि सम्मेलन था। जिसमें नीरज के साथ लखनऊ के सर्वेश सक्सेना और माया गोविन्द भी थी। माया गोविन्द ने कहा आज अवधी के दोनो कवि हिट रहेगे। जब कवि सम्मेलन शुरू हुआ तो सचमुच अवधी के दोनों कवि हिट रहे।
माया जी कितनी लखनऊमय थी और लखनऊ के प्रति कितनी भावुक थी इससे अन्दाज लगा सकते है कि 1980 के दशक में वह लखनऊ महोत्सव में शरीक हुई थी। 1990 के दशक में कवि सम्मेलन चकल्लस में वह शामिल हुई थी। श्रोताओं में अमृत लाल नागर बैठे थे। कवि सम्मेलन समाप्त हुआ तो वह नगर जी के गोद में सर रखकर फफक पड़ी। वाद में बताया वह लखनऊ की बेटी है पिता लुत्प नागर जी को देखकर भावुक हो उठी। तुम्हारी याद आंसू बनके आई चश्मे वीरा में जहे किस्मत की वीरानों में बरसाते भी होती है।
अवधनामा परिवार की ओर से अन्श्रुआन्जली और श्रद्धांजली