एस. एन. वर्मा
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति कुछ ऐसा करते और कहते रहते है जो विवाद पैदा कर देता है। लीक से हट कर कुछ करने का उत्साह भारी पड़ जाता है। ताजा घटना में माननीय ने अपने निजी स्टाफ को संसद की 12 स्टैन्डिग कमेटियों और 8 विभागीय स्टैन्डिंग में लगा दिया है। ऐसा संसद की इतिहास में पहली बार हो रहा है। जबकि इस कार्य के लिये जिम्मेदारियां लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के अधिकारियों को दिये जाने की परम्परा है। इसे लेकर विपक्ष में असन्तोष होना स्वाभिविक है। इसे लेकर उपराष्ट्रपति कार्यालय से स्पष्टीकरण जारी किया जा रहा है और खुद उपराष्ट्रपति भी एक कार्यक्रम में बोले है लोकसभा की स्टैन्डिंग कमेटियों और विभागीय स्टैन्डिंग कमेटियांे में पसर्नल स्टाफ लगाने के पीछे कोई गलत मकसद नही है। हमारी कोशिश यह है कि संसदीय समितियों में मानव संसाधन की कमी न हो। यह भी बता रहे है कि तैनाती ऐसे अफसरों की गई है जो रिर्सच और डवेलमेन्ट कार्यो का अनुभव रखते है और कुशल माने जाते है। हर चीज करने की एक परम्परा होती है नियम होते है। अगर संसदीय समितियांे में स्टाफ की कमी महसूस कर ही थी तो इस आशय का अनुरोध सभापति को समितियों द्वारा भेजा जाना चाहिये था। विपक्ष का कहना है मानव संसाधन की कमी नहीं है। फिर धनखड़ साहब को कैसे इलहाम हो गया कि संसदीय समितियों में स्टाफ की कमी है।
फिर अगर संसदीय नियमो और परम्पराओं से हट कर कुछ नया किया जाना है तो उसका भी लोकतान्त्रिक तरीका होता है। लोकतन्त्र में पक्ष और विपक्ष दोनो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दोनो लोकतन्त्र के लिये एक दूसरे के पूरक होते हैं। माननीय को अगर यह महसूस हो रहा था कि निजी स्टाफ को लगाने की जरूरत है तो विपक्ष से चर्चा करनी चाहिये थी। उन्हें विश्वास में लेना चाहिये था। यदि ऐसा करके सहमति से स्टाफ लगाने का काम करते तो न कोई विभेद उठता न विवाद। लोकतन्त्र तो सामूहिक मत के आधार पर फलता फूूलता है। निजी राय थोपा नहीं जा सकता।
इस समय सत्तापक्ष और विपक्ष में कई बातो को लेकर टकराहट चल रही है। इसे लेकर टकराहट और आपसी अविश्वास और बढ़ेगा जो लोकतन्त्र के लिये शुभ नही है। क्योकि इस समय लोकतान्त्रिक परम्पराओं को कमजोर करने को लेकर तल्ख बहस चल रही है।
राज्यसभा सचिवालय ने निजी स्टाफ लगाये जाने की जानकारी देते हुये बताया है कि सम्बन्धित अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से और नया निर्देश जारी होने तक के लिये इस कमेटियों से जोड़ा गया है। निर्देश के अनुसार ये अधिकारी उन कमेटियों के काम काज में सहायता देगे। क्या ऐसे हालत में कमेटी और लगाये गये अधिकारियों के सम्बन्ध सामान्य रहेगे। क्योकि इन कमेटियों में ऐसी भी बैठके होती है जिन्हें गोपनीय रक्खा जाता है। विपक्षी इसे लेकर एतराज कर रहे है। कुछ विशेषज्ञ भी इसे संसद की मान्य परम्पराओं नियमों के विपरीत बता रहे है।
अब जब संसद का सत्र शुरू होगा तो निश्चित रूप से विपक्ष मुखर हो कर सत्तापक्ष पर विरोध की बौछार करेगा। विपक्ष इसे स्वीकार करेगा बिल्कुल नहीं लगता है। सत्र में गतिरोध भी पैदा हो सकता है। पर समस्या का कोई हल तो निकालना ही पड़ेगा। या तो निजी स्टाफ वापस बुला सदन के सचिवालय के ही अधिकारी लगाये जाय या कोई नया फार्मूला तलाशा जाता है। इसे लेकर संसद के दूसरे मुद्दे न रूके। व्यर्थ का संसद में हंगामा भी न हो। सत्र में गतिरोध न पैदा कर बहस से इस समस्या का निराकरण निकाला जाय। इसकी जिम्मेदारी विपक्षी और सत्तापक्ष दोनो पर आती है। सत्ता पक्ष तो बहस ही चाहेगा। विपक्ष अपने विक्षोंभ पर काबू रख विरोध और बहस का संसदीय गरिमा बनाये रखकर इसका हल निकाले चूकि यह पहली बार हुआ है असन्तोष तो लाजिमी है।