एस.एन.वर्मा
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मुलायम सिंह को अलविदा कहते हाथ और होठ दोनो कांप रहे है। आखें बार-बार नम हो रही है। यह उनके व्यक्त्वि की खासियत है कि वह किसी भी पार्टी के रहे हो पर प्यारे सभी के थे। पूरा देश और पूरे नेता शोकमग्ग है। ऐसी लोकप्रियता हर नेता के नसीब में नहीं होती है।
मुलायम सिंह पहले पहलवान बने, फिर स्कूल मास्टर बने और फिर नेता बने। पहलवानी के समय के सीखे दावं पेच वह राजनीतिक जीवन में कुशलता से चलाते रहे पहलवानी के समय उनका एकदांव चरखा दांव था। जिसे वह अकसर लगाते रहे। सियासत में आने के बाद भी उन्होंने उस दांव का दामन नहीं छोड़ा राजनीति में भी वह दाव लगाकर सबके चौकाते रहे। मुलायम सिंह तीन दशक तक राजनीति के पटल पर छाये रहे। चाहे सत्ता में रहे हो या सत्ता के बाहर अपनी प्रासंगिता हमेशा बनाये रक्खा अपने कुश्ती में सिखे दावपेच को राजनीति में चलाकर सभी को चौकाते रहे।
मोदी जी जब दूसरे टर्म के लिये चुनाव लड़ने जा रहे थे तो उन्होंने मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री आर्शिवाद दिया। प्रधानमंत्री से उनके रिश्ते हमेशा मधुर रहे। जब प्रधानमंत्री दोबारा शपथ ले रहे थे तो अमित शाह उनका हाथ पकड़ कर ले गये और आगे बैठाया। मुलायम सिंह और अखिलेश पर भ्रष्टाचार के आरोप चर्चा में लगते रहे पर भाजपा के अब तक के पूरे शासन काल में कोई ऐसा कदम सरकार ने पूरे सैफई परिवार के खिलाफ नहीं उठाया जिससे इस परिवार को असहज होना पड़ता। यह मुलायम सिंह के सम्बन्धों का कमाल है कि वरोध में रहकर भी विरोधी नेताओं से उनके सम्बन्ध हमेशा मधुर बने रहे। 1989 में जब विपक्षी दल जनता पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे तो जनता दल थोड़े से मतो से बहुमत से दूर रह गया। उस समय मुख्यमंत्री के दो दावेदार थे अजित सिंह और मुलायम सिंह। यूपी के कद्दावर नेता वी.पी.सिंह अजित सिंह के पक्ष में थे। पर मुलायम सिंह ने अपने कूटनीति का दांव दिखाया। जब गुप्त रूप से चुनाव हुआ तो मुलायम सिंह बाजी मार ले गये। विरोधियों को साधने की कुशलता थी उनमें भाजपा भी उन्हें बाहर से समर्थन देती रही।
1980 में मुलायम सरकार तब खतरे में पड़ गई थी जब अयोध्या में शिलान्यास को लेकर शकराचार्य स्वरूपा नन्द को गिरफ्तार कर लिया गया। किसान नेताओं ने विरोध जताया, भाजपा ने भी इस मुद्दे पर अपना समर्थन वापस ले लिया था। वी.पी.सिंह सत्ता से बाहर थे चन्द्रशेखर कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बन गये थे। अजित सिंह ने अपने 90 विधायकों के साथ मुलायम सिंह को नेता मानने से इनकार कर दिया था। इस मुशकिल समय में मुलायम ने चन्द्रशेखर को और कांग्रेस को अपने पक्ष में किया और सरकार बचा ले गये। गौर करने की बात यह है कि जिस कांग्रेस को मुलायम ने सत्ता से बाहर किया था उसी के सहयोग से अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे यह है उनके कूूटनीति का जादू सरकार बचाने में कामयाब रहे। यह है उनके कूटनीति का जादू लोहिया और चरण सिंह के शिष्यत्व में मुलायम आगे बढ़ते गये। राजनीति की नज़ाकत की उन्हें पक्की पहचान थी। कब किसको जोड़ना है किसको छोड़ना है वह भांप लेने की कला में माहिर थे। पहले अजित सिंह को मुख्यमंत्री बनने से रोका। वी.पी.सिंह और चन्द्रशेखर से भी अलग हो गये। केन्द्रीय नेता से भी असन्तुष्ट हो गये। 1992 में लखनऊ में अपनी अलग पार्टी सपा बना ली। मुलायम सिंह के ही बदौलत क्षेत्रीय दल भी केन्द्रीय राजनीति में हस्तक्षेप करने लायक बन गये। र्केन्द्र वह रक्षामंत्री भी रहे।
सोनिया को विदेशी मूल की बात पर प्रधानमंत्री बनने के रोकने के लिये विरोध जताया। न्यू क्लियर डील में पहले मुलायम विरोधी बामदल के साथ थे पर बाद में सोच में वदलाव कर मनमोहन सिंह सरकार के साथ हो लिये। न्यूक्लियर डील पर सोनिया सहमत नही थी। तब मनमोहन सिंह ने कहा था तब दूसरा प्रधानमंत्री चुन लीजिये।
मुलायम सिंह तोड़ने और जोड़ने की कला में माहिर थे। दल बदल लेते थे पर सभी दलों के लोगो से सम्बन्ध बनाये रखते थे। लोकदल बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। उनके जैसा नेता रोज बरोज पैदा नही होते। सैफई उनका पैतृक गांव था। 1939 से अक्टूबर 2022 का जीवन काल बहुतो को प्रेरणा देता रहेगा। प्रदेश की राजनीति में उनके जाने से जो खालीपन आया है उसे भरने में समय लगेगा।
मुलायम सिंह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। गुरूग्राम में 82 वर्ष की उम्र भोग कर आखिरी सांस ली। अन्तिम संस्कार उनके गांव सैफई में होगा। प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक रहेगा। अवधनामा परिवार की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धान्जली।
शहीदो की चिताओं पर लगेगे हर बरस मेले