एस एन वर्मा
मनुष्य अपने पांवो में खुद ही कुहाडी मार रहा है। सभी देशों में उपयोग की प्रवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि इससे सम्बिधित वस्तुओ को उत्पन्न करने के लिये तरह-तरह के नुकसानदेह तरीको से ऊर्जा पैदा कर रहे है। इसे लेकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बैठकें भी होती है चिन्ता भी जताई जाती है, रोकने के कुछ फैसले भी लिये जाते है। पर बैठक के बाद सब भूल जाते है। विकसित देश अपनी विलासिता छोड़ने को तैयार नहीं है और विकासशील देशों की मजबूरी है कि वे महंगे ऊर्जा श्रोत का प्रयोग करने लायक नहीं है। इन सबसे प्रभावित हो मौसम का चक्र अनिश्चित होता जा रहा है। असमय बारिश, असमय सूखा, भूकम्प, बाढ़, रेगिस्तान में बर्फ बारी, बसाई बस्तियां में विनाश जैसे उत्तरांचल में बस्ती का ढहना, तरह-तरह के अनजानी बिमारियां, नदियों का सूखना, समुद्र का जलस्तर बढ़ना तरह-तरह की अजीब स्थितियां पैदा हो रही है। अमीर देश बचने के लिये स्पेस में बस्तियां बसाने का विकल्प भी सोच रहे है। सोचिये तो स्थितियां बड़ी भयावह और विनाशकारी भविष्य की ओर अग्रसर है। कुछ देशों में उनके जंगलों में आग कब से धधक रही है।
ग्लोबल वार्मिंग तो अपने आप में कई खतरों को जन्म दे रहा है। हिमशिखरों और उत्तरी गोलार्ध में बर्फ पिघल रही है। बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। विश्व मौसम संगठन ने बड़ी भयावह तस्वीर बढ़ते जलस्तर को लेकर दिखाई है। कह रहा है अगर वार्मिंग 1.5 डिग्री तक भी सीमित रहे तो जलस्तर तीन मीटर तक उठेगा। सोचिये अगर समुद्र का जलस्तर तीन मीटर बढ़ जाये तो कितने देश और कितनी आबादी इससे प्रभावित होगी सोच कर ही कलेजा कांप जाता है। अन्दजा लगइये बढ़ता जलस्तर दुनियां को किस संकट तक पहुचायेगा। विश्व मौसम संगठन के अनुसार इसके चपेट में छोटे शहरो द्वीप देशो के साथ घनी आबादी वाले तटीय शहर भी आजायेगें। फलस्वरूप इन देशो और शहरों के 90 करोड़ आबादी पर असर पड़ेगा। रिपोर्ट ने चेताया है बर्फ पिघलने और समुद्र का जलस्तर बढ़ने के पीछे इनसानों के विनाशक कारनामें है।
अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग अगर 1.5 डिग्री सेल्यिस के निर्धारित लक्ष तक भी सीमित रहती है तो भी समुद्र का जलस्तर दो हजार वर्षो में समुद्र का जलस्तर 2.3 मीटर बढ़ जायेगा। वार्मिंग को अगर दो डिग्री तक रोकने में कामयाबी मिल जाये तो भी समुद्र 6 मीटर ऊंचा उठ जायेगा और अगर कही ग्लोबल वार्मिंग 5 डिग्री तक पहंुच गई तो 2500 साल में समुद्र 19 से 22 मीटर तक उठ जायेगा। इसके नतीजे सोचकर जी कांपने लगता है कि हम अपने वारिसो के लिये कैसी दुनियां छोड़कर जायेगे। हमारी उमर तो कट जायेगी पर हमारे बाल बच्चों की जिन्दगी कैसी बनती जायेगी। हमारे बाल बच्चे अपने बाल बच्चों के लिये और भी भयावह स्थितियां पैदा करके जायेगे। यह सिलसिला पुस्त दर पुस्त आगे ही बढ़ता जायेगा।
इन सबका दुश परिणाम क्या होगा। समुद्र तट के इलाके पानी में समा जायेगे। अर्थव्यवस्था ढह जायेगी। अजीविका खतरे में पड़े जायेगी, सेहत पर अकल्पनीय बुरा असर पड़ेगा। अनजानी बिमारियां कोविड की तरह एकाएक विस्फोट करेगी। जिनका इलाज मनुष्यों के पास नहीं होगा। यानी मौत का सन्नाटा जल स्तर बढ़ने के और भी दुश्वरियां सामने आयेंगे। तेज तुफान आयेगे, ज्वार-भाटा भी कहर ढायेगा, समुद्र के गर्म होते ही रफ्तार पार कर जायेगा। 1971 से 2018 के बीच समुद्र के बढ़े जलस्तर में 50 प्रतिशत हाथ बढ़ते तापमान की ही रही है। 1992 से 1999 और 2010 सं0 2019 के बीच बर्फ का पिघलना चार गुना बढ़ा है। ग्लोबल वार्मिंग अगर 1.5 से 2 डिग्री के बीच भी रहती है तो भी खाद्य सुरक्षा खतरे के चपेट में आ जायेगी।
ग्लोबल वार्मिंग किसी भी सीमा में रहे बढ़ते जलस्तर का प्रभाव हर महाद्वीप पर पड़ेगा। जिन देशों में महाद्वीपों में खतरे की आशंका है वे बहुतायत में है। भारत में मुम्बई, इंजिप्ट में काहिरा, थाईलैन्ड में बैंकाक, बांगलादेश में ढाका, चीन में शंधाई, डेनमार्क में कोप हेगेन, ब्रिटेन में लन्दन, अमेरिका में लासएजिंलिस, अर्जेन्टीना में ब्यूनस अयरिस वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से लगातार आगह कर रहे है। कभी वेमौसम अतिवृष्टि तो कभी सूखा कभी भीषण तुफान, कभी सूखा, सभी वर्मिंग की सौगात है। सभी देशो को छोटे फायदों का मोह छोड़ना होगा। एकजुट होकर इसे रोकने की कोशिश करनी होगी।