अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। क़ायनात के मिजाज़ को मर्ज़िये परवर दिगार से चलाने वाले को इमाम कहते हैं। इमामत सितारों की मोहताज नहीं होती, सितारे इमामत के मोहताज होते हैं। सूरज की तक़दीर है पूरब से निकलना पश्चिम में डूबना। जो सूरज की तक़दीर बदल कर पश्चिम से निकाल दे वही क़ायनात की तक़दीर बदल सकता है।
यह बात अहमद रज़ा द्वारा आयोजित अशरये मजालिस की पांच मजलिसों को खिताब करने मौलाना गुलाम अस्करी हाल मे आए आली जनाब मौलाना गुलाम रसूल नूरी ने कही। मौलाना ने यह भी कहा कि इरादये इलाही के चश्मे को इमाम कहते हैं। ग़दीर ख़त्मे नबूवत नहीं, ग़दीर जश्ने तसलसुले इमामत है। यहां से इमामत का ओहदा ट्रांसफर होता है वारिस को वरासत सौंपी जाती है। आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किये जिसे सुनकर सभी रोने लगे। मजलिस से पहले मौलाना रज़ा ज़ैदपुरी ने पढ़ा – कसरे यज़ीद बह गया दरियाये अश्क में हर दिल में है हुसैन की दुनियां बसी हुई। हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा मुमकिन नहीं है शाह का गम हो सके रक़म, सरवर तखय्युलात की चादर समेट ले। इसके अलावा ज़ामिन अब्बास, अदनान रिज़वी, मो. रज़ा ज़ैदी व मो. हसन ज़ैदी ने भी नज़रानये अकीदत पेश किया। मजलिस का आग़ाज़ मो. जवाद ज़ैदी ने तिलावते कलामे इलाही से किया। अन्जुमन सदा ए हुसैन ने नौहाख्वानी व सीनाज़नी की। बानियाने मजलस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।