Thursday, July 24, 2025
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दिल्ली-मुंबई नहीं, छोटे शहरों में रहना चाहते Gen Z; वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

डिजिटल युग में युवा पीढ़ी अब महानगरों की बजाय टियर-2 शहरों को पसंद कर रही है। इसकी मुख्य वजह है बेहतर इंटरनेट आधुनिक सुविधाएं और सांस्कृतिक समृद्धि। रिमोट वर्क के अवसरों ने भी इसमें योगदान दिया है। टियर-2 शहरों में किफायती आवास यात्रा सुविधा और स्वच्छ वातावरण भी उपलब्ध हैं। सरकारी योजनाओं और तकनीकी कंपनियों के निवेश से रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

देश की युवा पीढ़ी अक्सर पढ़ाई और रोजगार के लिए गांव और छोटे शहरों से महानगरों की ओर पलायन करते रहे हैं। हालांकि, अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है। आज के समय टियर-2 शहरों यानी छोटे शहरों में भी शानदार इंटरनेट स्पीड और बेहतर जीवन जीने के ज्यादातर विकल्प मौजूद हैं।

क्यों महानगरों से हो रहा लोगों का मोहभंग?

इसी वजह से जनरेशन जेड (वो लोग जो साल 1997 से लेकर 2012 के बीच पैदा हुए हैं) महानगरों या मेट्रो शहरों में रहने की जगह टियर- 2 शहर में रहना ज्यादा पसंद कर रहे। दरअसल, इसके पीछे कई वजहें भी हैं। टियर-2 शहरों में लोगों को आधुनिक सुविधाएं तो मिल ही रही है वहीं, सांस्कृतिक समृद्धि भी मौजूद है।

आज के समय रिमोट वर्क के विकल्प मौजूद हैं। रिमोट वर्क कल्चर की वजह से युवा पीढ़ी टियर-2 शहरों में रहना पसंद कर रहे हैं। महानगरों की तुलना में छोटे शहरों में किफायती आवास, ट्रैवलिंग की सुविधा और स्वच्छ वातावरण मौजूद है। स्मार्ट सिटीज मिशन और विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के विकास जैसी सरकारी पहलों ने बुनियादी ढांचे में सुधार और रोजगार के अवसर पैदा करके टियर-2 शहरों को और बेहतर बना दिया है।

जेनपैक्ट, एचसीएल टेक, कॉग्निजेंट और इंफोसिस जैसी वैश्विक टेक फर्म मेलूर, नागपुर, लखनऊ और भुवनेश्वर में कार्यालय खोल रही हैं।

छोटे शहरों में बढ़ रहे रोजगार के अवसर

अर्न्स्ट एंड यंग (EY) के अनुसार , टियर-2 शहरों में वर्चुअल-फर्स्ट ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) और IT और बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा (BFSI) क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। रैंडस्टैड 2025 की रिपोर्ट से पता चलता है कि इन शहरों में नौकरी के अवसर लगभग 42 प्रतिशत बढ़े हैं, जबकि मेट्रो हब में यह वृद्धि केवल 19 प्रतिशत रही।

छोटे शहरों में पैसों की बचत अधिक
टियर-2 शहरों में कर्मचारी महानगरों की तुलना में 25-35 प्रतिशत कम कमाते हैं, लेकिन छोटे शहरों में खर्च भी काफी कम होती है। जयपुर, पुणे और वडोदरा जैसे अन्य टियर-2 शहरों में में इंजीनियरिंग संस्थानों और व्यावसायिक केंद्रों की लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिसकी वजह से इन शहरों में शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

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