गहलोत पायलट की रस्साकशी

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एस.एन.वर्मा

राजस्थान में अगले साल चुनाव होने वाला है। वहां चुनाव के प्रभारी गहलोत है। गहलोत और पायलट की रस्साकशी पुरानी है। कांग्रेस इसको सुलझा नही पा रही है। समस्यायों को लटकाये रखना कांग्र्रेस की पुरानी आदत है। अब जब खरगें मे कांग्रेस अध्यक्ष बने तो यह उम्मीद की जा रही थी कि सारी समस्याओं के साथ साथ खरगे इसे भी सुधारेगी। पायलट और उनके गु्रप को पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का अश्वासन आला कमान की ओर से मिला पर अभी तक अश्वासन ही बना हुआ है। गहलोत पायलट मुख्यमंत्री न बन पाये इसके लिये एड़ी चोटी का जोर लगाये हुये है। पायलट ने कहा गहलोत वरिष्ट नेता होते हुये ऐसी गन्दी जुबान का प्रयोग कर रहे है जो उन जैसे कद्दावर नेता से उम्मीद नही की जाती है। गहलोत ने उन्हें गद्दार गद्दार और भी इसी तरह के शब्दों की बौझार कर रहे है। पायलट इस मामले में सुलझे हुये दिख रहे है गन्दी जुबान पलटवार नही कर रहे है। उनकी शालीनत सराहनीय है। पायलट अच्छे प्रवक्ता है आकर्षेक भाषण देते है। गहलोत उन्हें किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री नही बनने देना चाहते है। उन्हें डर बना रहता है कही अलाकमान हमको हटा कर पायलट को न मुख्यमंत्री बना दे। गहलोत अपने पुत्र को भी लेकर चिन्तित होगे उसे स्थापित करना चाहते होगे और मुख्यमंत्री की कुर्सी उसके लिये सुरक्षित रखना चाहते होगे। इसीलिये पायलट के खिलाफ उनमें तिक्ता है। सही है अगर पायलट मुख्यमंत्री बनते है तो गहलोत को अपने पुत्र के लिये जगह बना पाने में मुशकिले आयेगी। गहलोत अपनी कुर्सी भी किसी कीमत पर खोना नही चाहते।
गहलोत इन्ही सब वजहे से कह रहे है एक गद्दार को मुख्यमंत्री किसी भी कीमत पर नही बनने देगे। वह उस बात का हवाला दे रहे है जब पायलट अपने कुछ सदस्यों के साथ भाजपा के साथ मेल मिलाप कर रहे थे।
कुछ वजहों से भाजपा ने दिलचस्पी नही दिखायी और पायलट भी अपनी सीमाओं से आगे नही बढ़ पाये। गहलोत इसी को लेकर गद्दार कह रहे है पायलट को राजनीति या किसी कैरियर में रहकर महत्वाकांक्षा पालना बुराई नही है। सभी पालते है। गहलोत भी तो अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से कुर्सी पर हर कीमत पर बैठे रहना चाहते है। याद होगा जब कांग्रेस की एक टीम आलाकामान ने राजस्थान भेजी थी मुद्दों को सुलझाने के लिये तो गहलोत और उनके समर्थकों ने उनसे मिलना तक मुनासिब नही समझा। उनके समर्थक अलग बैठक रहे थे। सब गहलोत की राय से ही हो रहा था। प्रतिनिधि अपमानित होकर वापस लौट गये थे। क्या गहलोत का यह कार्य गद्दारी की परिधि ही आता है। गहलोत अपने गरेबांझाके क्योंकि उन्होंने इसके लिये आला कमान से माफी मांगी थी।
कांग्रेस की भारत छोड़ों यात्रा राजस्थान में प्रवेश करने वाली है। पायलट के अनुयायी विजसिंह बैसला ने कहा पायलट को जल्दी मुख्यमंत्री बनाया जाय वरना यहां यात्रा का विरोध होगा। इस मांग के बाद पायलट प्रियंका गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शािमल हो गये। आशंका है पार्टी ने पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का विचार कर लिया है। गहलोत के कान खड़े हो गये है। गहलोत समर्थकों और विरोधियों को आगाह करते हुये कर रहे है किसी प्रतिकूल फैसले को स्वीकार नही करेगी अगर आलाकमान के फैसले को नकारते है अपने निजीस्वार्थ के लिये तो क्या यह गद्दारी नही होगी।
यदि पार्टी राजस्थान में प्रवेश करने से पहले कोई फैसला लेती है तो इसका प्रतिकूल असर राजस्थान में यात्रा के रहते पड़ेगा। पर राजस्थान का चुनाव भी अगले साल है जिसके प्रभारी गहलोत है। अगर उनके विचार से मेल खाता फैसला नही लिया जाता है तो भी राजस्थान में कांग्र्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। पायलट और उनका ग्रुप भी अश्वासनों से थक गया है वह अब आर-पार की लड़ाई पर अमादा दिख रहा है। अगर कुर्सी बदलनी है तो उसमें देर करना पार्टी के हितों के विरूद्ध जायेगा।
कांग्रेस इस समय दलदल में फंस गई है। किसी को नाखुश करना नही चाहती है। पर उसे कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है। यो भी इधर कांग्रेस में दूरदर्शी नेताओं की कमी दिखती है। आला कमान की कमजोरी भी मौको पर झलक जाती है। वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष, और आलाकमान तथा राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा का अनुभव क्या राह निकालती है लोगो की उत्सुकता बनी हुई है। यह कांग्रेस की दूरदर्शिता और कुशलता का कड़ा इम्तहान ही अगर पार्टी कुशलता पूर्वक विवाद सुलझा लेती है तो आगे होने वाले चुनावों में इसका असर दिखेगा। राहुल के भारत जोड़ों पात्र का भी यह इम्तहान होगा।

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