बौद्धों की गंगा हिरण्यवती के उद्धार को अब भी भगीरथ का है इंतजार

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अवधनामा संवाददाता(शकील अहमद)

नदियों से जोड़ने, जल संचय, रेगुलेटर, सुंदरी करण की अबतक नहीं बनी कोई वृहद योजना

बुद्धा घाट के तीन किमी क्षेत्र में योजनाओं क्रियान्वयन पर है प्रशासन व बुद्धिजीवियों का जोर

 

कुशीनगर। बौद्धों की गंगा हिरण्यवती नदी अपने जीर्णोद्धार को लेकर सदियों से भगीरथ का इंतजार कर रही है। इस नदी के उद्धार के नाम पर अब तक कोई योजना नहीं बन पाई है और न ही कोई ठोस पहल ही हुई। बौद्ध जातक कथाओं और पाली साहित्य में हिरण्यवती नदी का उल्लेख मिलता है। जबकि सरकारी अभिलेखों में बकिया ड्रेन व स्थानीय स्तर पर लोग चँवर, सोनरा, पोखरा व नाला आदि नामों के रूप में जानते है।

बुद्ध काल में यह एक विशाल नदी थी और कुशीनगर में इसकी दो शाखाएं थी। जो मल्ल काल में जीवन रेखा मानी जाती थी। बुद्ध इसके किनारे घने शाल वनों के रास्ते होते हुए शिष्यों के साथ यहां पहुंचे थे और महापरिनिर्वाण प्राप्त किये। हिरण्यवती नदी के जल का बौद्घ श्रद्धालुओं में गंगा जल की तरह महत्व है। आज 64 किमी लम्बी नदी सर्प सी रेखा समान विकृत हो गयी है और इसका पानी पीने के लायक नहीं है। प्रशासन ने बुद्धा घाट सहित नदी के तीन किमी क्षेत्र का सुंदरीकरण कराया, लेकिन दूसरी ओर इस नदी के उत्तरी व दक्षिणी छोर के हिस्से शासन या प्रशासन के सुंदरीकरण योजना से अछूते आज भी है। इस नदी के उद्धार की मांग दशकों से उठती रहती है। जिसको देख प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता स्व0 डा. सुब्बा राव, स्वयंसेवी संगठन, स्थानीय स्तर पर इसके उद्धार की कोशिश की गई लेकिन यह प्रयास आंदोलन नहीं बन पाया। प्रशासन भी समय-समय पर इस नदी के बुद्धा प्वाइंट पर फावड़ा चलाकर और सफाई कर बाहाबही लुटता रहता है। जिसमें कुशीनगर के प्रबुद्ध वर्ग व्यापारी, बौद्ध अनुयायी व छात्र अपना योगदान सुनिश्चित रखते हैं। लेकिन ये सारे प्रयास होने के बाद भी हिरण्ड्यवती नदी के लिए तीन दशक में भी कोई भागिरथ नहीं बन पाया। राष्ट्रीय राज मार्ग- 28 से देवरिया मार्ग पर रामाभार पुल तक के क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से स्थानीय प्रशासन का विकास सराहनीय है, लेक़िन नदियों से जोड़ने, जल संचय, रेगुलेटर, सुंदरी करण की अबतक कोई वृहद योजना नहीं बन सकी और न इस नदी के बाकी हिस्सों के विकास की कोई ठोस पहल ही हो सकी। होना यह चाहिये कि इसके उद्धार की कार्ययोजना बनाकर जनप्रतिनिधियों, आम नागरीकों का सहयोग लिया जाय। तभी केंद्र व प्रदेश सरकार की नदी जोड़ने के साथ नदियों के साफ-सफाई का महत्वाकांक्षी सपना पूरा होगा।

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