बुंदेलखंड क्षेत्र में सरकारी कोटे से मुफ्त गेहूं बंटने से अब यहां गल्ला बाजार को बड़ा झटका लग रहा है। बाजार में गेहूं के कारोबारी खरीद-फरोख्त न होने के कारण सन्नाटे में बैठे रहते हैं। वहीं सरकारी कोटों में मुफ्त गेहूं और चावल लेने के लिए दिनभर लोगों का मेला लगा रहता है। गल्ला बाजार से भी चहलपहल गायब है।
हमीरपुर समेत समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में गैर भाजपा की सरकारों में गल्ला बाजार में बड़ी रौनक रहती थी। इस कारोबार में सैकड़ों लोगों को भी काम मिलता था। खुले बाजार में ही गेहूं की खरीद करने वालों का तांता भी लगता था लेकिन इधर भाजपा सरकार में गल्ला बाजार वीरान होने के मुहाने आ गया है। हमीरपुर शहर और कस्बों की प्रमुख बाजारों में गेहूं के कारोबारियों की बड़ी संख्या थी। बाजार के दिन ही सैकड़ों क्विंटल गेहूं की खरीद होती थी लेकिन अब बाजार से खरीदार ही गायब हैं। नई फसल बाजार में आने के बाद गेहूं की खरीद के लिए दस साल पहले किसानों और आम लोगों की भीड़ गल्ला मंडी में उमड़ती थी। सालभर के लिए हर कोई चार से पांच क्विंटल गेहूं खरीद कर घर में रखता था लेकिन अब कोई भी गेहूं का भंडारण घरों में नहीं कर रहा है। पचास फीसदी लोग हर महीने सरकारी कोटों से मिलने वाले मुफ्त गेहूं और चावल लेकर काम चलाते है। जबकि चालीस फीसदी लोग तो गेहूं की जगह चक्की से आटा खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं।
गल्ला मंडी और बाजार में गेहूं के कारोबारियों के यहां सन्नाटा पसरने से अब इस कारोबार में लगे पल्लेदार और श्रमिक भी बेरोजगार हो गए हैं। पिछले एक दशक पहले मंडी और बाजार में गेहूं के कारोबारियों के यहां बड़ी संख्या में लोग काम करते थे। गेहूं की तौल के लिए पल्लेदार होते थे वहीं गेहूं की उठान और इसे पहुंचाने के लिए श्रमिक भी काम पर लगे थे। बदलते दौर में आटा की डिमांड आम लोगों में बढ़ जाने से अब गल्ला मंडी व बाजार में सन्नाटा पसर गया है।
बुंदेलखंड और आसपास के इलाकों में लोगों में गल्ला मंडी और बाजार में गेहूं खरीदने की रुचि नहीं रह गई है। हर महीने सरकारी कोटों से मुफ्त गेहूं मिलने की सौगात मिलने के कारण गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने बाजार का मुंह देखना छोड़ दिया है। अब ये लोग सरकारी कोटों से मिलने वाले मुफ्त अनाज से काम चलाते हैं। इसीलिए मंडी और बाजार में खरीदारों की कोई चहल-पहल नहीं दिखती। शहर से लेकर कस्बों तक मंडी और बाजारों में सन्नाटा पसरा रहता है।
आटा चक्कियां बंदी के कगार पर
बुंदेलखंड के शहर और कस्बों में अब आटा चक्कियां बंदी के मुहाने आ गई हैं। कभी आटा चक्की प्रतिष्ठानों में गेहूं पिसाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती थी लेकिन अब ज्यादातर लोग किराने की दुकानों से आटा खरीदते हैं। पिछले कुछ सालों से आटा खरीदने का प्रचलन ऐसा चला कि हर कोई इसे खरीदते नजर आता है। गेहूं लाकर पानी से धोने और साफ कर चक्की में पिसाने में पैसे के साथ ही तमाम तरह की परेशानी होती है जिससे घर की महिलाएं अब बाजार से आटा मंगवाती हैं।