अवधनामा संवाददाता(आदिल तन्हा)
बाराबंकी। पौराणिक तथा अनेक धार्मिक ग्रंथो की अभिव्यक्तियो में पारिजात वृक्ष का वर्णन बहुत जगह मिलता है। इस वृक्ष के मूल उत्पत्ति के बारे में पुराण यह वर्णित करते हैं कि यह उन चौदह रत्नो में से एक रत्न है, जो देवताओ तथा असुरो द्वारा समुद्र मंथन करते समय निकले थे। सब रत्नो को देवताओ तथा असुरो ने आपस में बांट लिया थां यह वृक्ष इन्द्र के हिस्से में आया और स्वर्गलोक में नंदन कानन की शोभा बढ़ाने लगा। इसलिए इस वृक्ष को यह कहा जाता है कि स्वर्ग का वृक्ष है और भूतल में इसकी उत्पत्ति कही नही है। जो विश्व का एकमात्र पारिजात वृक्ष कहा जाता है। इस वृक्ष के भूखंड मं होने को लेकर विद्वानो ने अपने अपने विचार व्यक्त किए हैं।
कहा जाता है कि द्वापर में जब कृष्ण का अवतार हुआ तथा कौरवो व पांडवो के युद्व की तैयारी होने लगी तो पांडवो की माता कुंती को अपने पांच पुत्रो की चिंता हुई कि पांडव महाबलवान कौरवों से कैसे जीतेंगे क्योकि पांडवो की उम्र 12 साल ही थी। वनवास तथा एक साल अज्ञातवास के कारण सब साधनो से वंचित थे तथा उनका तेरह साल से किसी राजवंश से संपर्क तथ मिलाप भी नहीं हुआ था। दूसरी तरफ कौरव धन वैभव राज्य श्री व सैन्य बल से संपन्न थे तथा उनका यश चारो ओर फैला था। इसलिए माता कुंती ने यह व्रत लिया कि वह अपने पुत्रो की विजय हेतु नन्दन कानन के पारिजात पुष्पो से भगवान शंकर की महाशक्ति को निरंतर अभिषेक कर उनके वरदान से अपने पुत्रांे की विजय श्री प्राप्त करवाएगी। माता कुंती ने नंदन कानन से पुष्प लाने का कार्य अपने पुत्र अर्जुन को सौंपा। अर्जुन ने यह सोंचकर कि हो सकता है कि पुष्प लाने में देर हो जाए जिस कारण अभिषेक का सिद्व मुहूर्त टलने की संभावना हो सकती है। इसलिए अर्जुन स्वर्गलोक गए और उन्होने आशीर्वाद प्राप्त कर तथा आज्ञा लेकर नंदन कानन से एक वृक्ष पृथ्वी पर ले आए, इन्द्र के वरदान से यह वृक्ष पृथ्वी पर लग गया और आज तक विद्यमान है।
पारिजात वृक्ष बाराबंकी जनपद की सिरौली गौसपुर तहसील मुख्यालय के ग्राम बरौलिया में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए बस, जीप आदि सवारी के साधन उपलब्ध हैं। वृक्ष के तने की परिधि करीब सौ वर्ग फिट है। पेड़ के चारों तरफ शाखाएं फैली हुई हैं। पारिजात एक अलौकिक एवं अद्वितीय वृक्ष है जिसके संबंध मंे ऐसा कहा जाता है कि ऐसा वृक्ष किसी स्थान पर उपलब्ध नही है। इस वृक्ष की शाखाएं न तो दूसरी जगह लगती हैं और न ही इसे उगाने के लिए दूसरा पौधा ही है। कमी बस यह है कि इस स्थान का ढंग से विकास नहीं हुआ है दूसरी बात यह कि पारिजात वृक्ष में देख रेख के अभाव में क्षरण जारी है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।