हालिया वर्षों में इस्लाम की तरफ़ उन्मुख होकर मुसलमान होने वालों में से एक, फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर Milanie Georgiades “मिलेनी जोरजियाड्स” भी हैं जिनका स्टेज नाम Diam’s “डिएम्स” है। उन्होंने ख्याति के शिखर पर इस्लाम स्वीकार किया।
Milanie Georgiades “मिलेनी जोरजियाड्स” का जन्म 25 जूलाई 1980 को साइप्रस में हुआ था। मिलेनी या डिएम्स के पिता यूनानी थे जबकि उनकी माता फ़्रांसीसी थीं। डिएम्स का बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जब डिएम्स की आयु चार वर्ष की थी तो उनके माता-पिता अच्छे भविष्य की आशा में उसको लेकर फ़्रांस चले आए। फ़्रांस में आने के बाद डिएम्स की ज़िन्दगी अच्छी होने की जगह और ख़राब हो गई। हुआ यह कि सात वर्ष की आयु में वह अपने माता-पिता से हाथ धो बैठीं। अब डिएम्स के जीवन में अधिक उथल पुथल आरंभ हो गई। बेसहारा होने की वजह से डिएम्स को अनाथालय जाना पड़ा। अनाथालय में उन्होंने अनाथों के साथ रहकर जो समय गुज़ारा उससे वह बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थीं। वह सदैव परेशान रहा करती थीं।
सन 1994 में डिएम्स के जीवन में एक बदलाव आया। डिएम्स के भीतर गीत और संगीत की अपार क्षमता मौजूद थी। उन्होंने इस क्षेत्र में क़दम बढ़ाए और बहुत ही कम समय में संगीत की दुनिया में वह छा गईं। संगीत के क्षेत्र में डिएम्स इतनी मश्हूर हो चुकी थीं कि उनको फ़्रांस में संगीत की दुनिया की शहज़ादी कहा जाने लगा।
अब डिएम्स के पास दौलत और शोहरत सब कुछ था। उन्होंने कई ख्याति प्राप्त अवार्ड भी जीते। उनसे आटोग्राफ लेने वालों की संख्या बहुत अधिक थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद धन-दौलत और शोहरत कोई भी चीज़ डिएम्स को भीतर से शांत नहीं कर पाई। डिएम्स भीतर से अशांत और व्याकुल रहा करती थीं। सन 2007 में डिएम्स, अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हो गई जिसके कारण उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
Milanie Georgiades
अस्पताल से वापस आने के बाद डिएम्स एक बार अपनी एक मुसलमान दोस्त से मिलने उसके घर पर गईं। शाम के समय वह अपने मित्र के घर पहुंचीं। जब डिएम्स अपने मित्र के घर पहुंची तो सहेली ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें बिठाया और कहा कि अगर तुम बुरा न मानो तो मैं कुछ देर के लिए नमाज़ पढ़ने जा रही हूं। नमाज़ ख़्त्म होते ही मैं आ जाऊंगी। यह कहकर वह बराबर वाले कमरे में नमाज़ पढ़ने चली गई और डिएम्स वहीं पर बैठ गईं। कुछ ही देर में डिएम्स भी बराबर वाले कमरे में गईं जहां पर उनकी दोस्त नमाज़ पढ़ रही थी। डिएम्स ने पहली बार किसी को इस प्रकार की उपासना करते हुए देखा। उनको अपने मित्र की उपासना का अंदाज़ विचित्र सा लगा। नमाज़ ख़त्म होने के बाद डिएम्स ने अपनी सहेली से नमाज़ के बारे में पूछा। उन्होंने पूछा कि क्या मैं भी यह काम कर सकती हूं? बाद में डिएम्स का कहना था कि मुझको यह काम करके अभूतपूर्व शांति मिली। कुछ समय के बाद डिएम्स, मुसलमान हो गईं।
जब डिएम्स से पूछा गया कि क्या आपने अनन्य ईशवर की याद को संगीत का विकल्प बना लिया है तो इसके जवाब में डिएम्स का कहना था कि नहीं ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती। अब मैं केवल ईश्वर के प्रेम में जी रही हूं। मुझको अब अकेलेपन का एहसास नहीं रहा। मेरे जीवन को एक अर्थ मिल गया है। पूर्व फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर डिएम्स कहती हैं कि अब मैं अपनी पूरी निष्ठा से पांच बार नमाज़ पढ़ती हूं जिससे मुझको बहुत शांति मिलती है।
डिएम्स कहती हैं कि हो सकता है कि कुछ लोग यह सोचते हों कि कुछ बंधनों और पाबंदियों के कारण हम मुसलमान, सौभाग्यशाली नहीं हैं जबकि ऐसा नहीं है। डिएम्स जो विगत में एक मश्हूर गायिका थीं अब पश्चिमी संगीत के बारे में कहती हैं कि वास्तव में अब मैं संगीत नहीं सुनती हूं। मैं यह नहीं चाहती कि इस प्रकार के संगीत को मुझ पर थोपा जाए। डिएम्स कहती हैं कि मैं सोचती हूं कि पश्चिमी संगीत ख़तरे उत्पन्न कर सकता है। वे कहती हैं कि इसको स्वीकार करना एक प्रकार की मूर्खता है। उनका कहना है कि अब मैं बदल चुकी हूं और संगीत के वातावरण से कोई संपर्क रखना ही नहीं चाहती।
फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर Milanie Georgiades “मिलेनी जोरजियाड्स” जैसे कलाकारों द्वारा इस्लाम अपनाए जाने के कारण इस्लाम विरोधी बहुत क्रोधित हो गए हैं। इन इस्लाम विरोधियों ने मिलेनी डिएम्स की छवि को ख़राब करने और उन्हें इस्लाम से वापस लाने के लिए बेहूदा कार्यवाहियां शुरू कर दीं विशेषकर इसलिए क्योंकि डिएम्स ने हिजाब पहनना आरंभ कर दिया है। फ़्रांस जैसे देश में, जहां पर आज़ादी के बारे में बहुत बातें कही जाती हैं और यह बताया जाता है कि यहां पर पूर्ण रूप से स्वतंत्रता पाई जाती है, हिजाब करने वाली महिलाओं के लिए बाधाए उत्पन्न की गई हैं। इस बारे में डिएम्स कहती हैं कि जब मैं मुसलमान हो गई तो पेरिस में मेरे कुछ ऐसे चित्र प्रकाशित किये गए जिनसे मुझको तकलीफ़ हुई। यह मेरे वे निजी फोटो थे जिनको चुराकर छापा गया था। उन्होंने कहा कि यह एक ख़तरनाक खेल था। अपने विरोधियों को संबोधित करते हुए डिएम्स कहती हैं कि हर एक इंसान को यह कहने का अधिकार है कि वह अपने जीवन से संतुष्ट और खुश है। जब ऐसा है तो इसको दूसरों को भी बताया जा सकता है।
डिएम्स कहती हैं कि ऐसा लगता है कि मेरा हिजाब, फ़्रांस में एक समस्या बन गया है। वे कहती हैं कि यह सुनने को मिल रहा है कि मेरा काम राजनीति से प्रेरित था जो विद्रोह के समान है। उन्होंने एक फ़्रांसीसी पत्रिका को दिये गए साक्षात्कार में कहा कि क्या जो इस्लाम को स्वीकार करता है या हिजाब पहनता है उसके पास वैचारिक स्वतंत्रता नहीं है? वे कहती हैं कि हिजाब से वीरता, धैर्य, व्यक्तित्व, पक्का इरादा और संकल्प पैदा होता है। हिजाब या पर्दे से स्त्री का आध्यात्म मज़बूत होता है। मेरा हिजाब मेरे ईश्वर के साथ संपर्क का एक माध्यम है। मैने पर्दा करने का फैसला स्वयं लिया है। अब मैं अपने पूरे मन के साथ पर्दा करने लगी हूं। हिजाब करके मैंने अपने आप को पहचाना है। सन 2015 में डिएम्स ने एक किताब लिखी जिसका नाम था, “फ़्रांसीसी मुसलमान मेलाई”। इस किताब में उन्होंने विरोधियों का जवाब देते हुए इस्लाम के पक्ष में बहुत कुछ कहा है।
पश्चिम में व्यापक दुष्प्रचारों के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया जाता है कि तकफ़ीरी एवं अन्य आतंकवादी गुटों की हिंसक कार्यवाहियां, इस्लामी विचारधारा से प्रभावित हैं। इस प्रकार पश्चिमी संचार माध्यम सभी मुसलमानों को आतंकवादी दर्शाते हैं। विशेष बात यह है कि इन आतंकवादी गुटों के बनाने में पश्चिमी सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पश्चिमी देशों के संचार माध्यमों की ओर से इस्लाम विरोधी व्यापक दुषप्रचारों के दृष्टिगत, अतिवादी दक्षिणपंथी और इस्लाम विरोधी दोनो ही पक्ष समस्त मुसलमानों को पश्चिम में की जाने वाली आतंकवादी घटनाओं का ज़िम्मेदार बताते हैं।
जनवरी सन 2015 में पेरिस में Charlie Hebdo “शार्ली हेब्दो” पत्रिका के कार्यालय पर होने वाले हमले के बाद पश्चिम विशेषकर फ़्रांस में मुसलमानों के विरुद्ध दुष्प्रचार और वहां के अतिवादियों द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियों में तेज़ी से वृद्धि हुई। उस समय मिलेनी डिएम्स ने एक संदेश में इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की थी। अपने शोक संदेश में उन्होंने लिखा था कि मैं फ़्रांसीसी हूं। मुसलमान हूं। मैं भी इस घटना से बहुत दुखी हूं। वे लिखती है कि इस्लाम के नाम पर की जाने वाली इस प्रकार की हिंसा से मैं बहुत दुखी हूं। इस्लाम ने आतंकवाद की निंदा की है और वह शांति का पक्षधर है। इस्लाम प्रतिरोध या हिंसा का पाठ नहीं देता बल्कि वह मानव जाति को शांति एवं उच्च शिक्षा सिखाता है। वे लिखती हैं कि वे लोग जो जातिवादी विचारधारा रखते हैं वास्तव में अनपढ़ और मूर्ख हैं। इस्लाम हमें बुराइयों से दूर रखता है।
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