अवधनामा संवाददाता
ललितपुर। श्रीगुरुसिंह सभा गुरूद्वरा प्रबंधक कमेटी के तत्वाधान में श्रीगुरुग्रन्थ साहिब का पहला प्रकाश पर्व बड़े ही श्रद्धा व उत्साह के साथ गुरूद्वरा साहिब लक्ष्मीपुरा में मनाया गया। इस अवसर साप्ताहिक पाठ साहिब की समाप्ति सरदार हरजीत सिंह अरोरा परिवार की ओर से हुई। मुख्य ग्रन्थि हरविंदर सिंह व ज्ञानी आदेश सिंह ने गुरबाणी के मनोहर कीर्तन का जसगायन कर संगत को निहाल किया व निशांन साहिब के चोले की सेवा सरदार सुरिन्दर सिंह अरोरा परिवार की ओर से हुई। इस अवसर पर मुख्य ग्रन्थि हरविंदर सिंह ने कहा सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव जी ने 1604 में आज ही के दिन दरबार साहिब में पहली बार गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया था। 1430 अंग (पन्ने) वाले इस ग्रंथ के पहले प्रकाश पर संगत ने कीर्तन दीवान सजाए और बाबा बुड्ढा जी ने बाणी पढऩे की शुरुआत की। पहली पातशाही से छठी पातशाही तक अपना जीवन सिख धर्म की सेवा को समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा जी इस ग्रंथ के पहले ग्रंथी बने। आगे चलकर इसी के संबंध में दशम गुरु गोबिंद सिंह ने हुक्म जारी किया। सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा ने कहा कि गुरु अर्जन देव बोलते गए, भाई गुरदास लिखते गए। 1603 में 5वें गुरु अर्जन देव ने भाई गुरदास से गुरु ग्रंथ साहिब को लिखवाना शुरू करवाया, जो 1604 में संपन्न हुआ। नाम दिया आदि ग्रंथ। 1705 में गुरु गोबिंद सिंह ने दमदमा साहिब में गुरु तेग बहादुर के 116 शबद जोड़कर इन्हें पूर्ण किया। गुरु सिंह सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा ने बताया कि समूची मानवता को एक लड़ी में पिरोने का संदेश है गुरु ग्रंथ साहिब सिखों में जीवंत गुरु के रूप में मान्य श्रीगुरु ग्रंथ साहिब केवल सिख कौम ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए आदर्श व पथ प्रदर्शक हैं। दुनिया में यह इकलौते ऐसे पावन ग्रंथ हैं जो तमाम तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर आपसी सद्भाव, भाईचारे, मानवता व समरसता का संदेश देते हैं। आज के माहौल में अगर इनकी बाणियों में छिपे संदेश, उद्देश्य व आदेश को माना जाए तो समूची धरती स्वर्ग बन जाए। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज बाणी की विशेषता है कि इसमें समूची मानवता को एक लड़ी में पिरोने का संदेश दिया गया है। 6 गुरु साहिबानों के साथ समय-समय पर हुए भगतों, भट्टों ओर महापुरुषों की बाणी दर्ज है। गुरबाणी के इस अनमोल खजाने का संपादन गुरु अर्जन देव ने करवाया। गुरुद्वारा रामसर साहिब वाली जगह गुरु साहिब ने 1603 में भाई गुरदास से बाणी लिखवाने का काम शुरू किया था। गुरु साहिब ने इसमें बिना कोई भेदभाव किए तमाम विद्धानों ओर भगतों की बाणी शामिल की। 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश दरबार साहिब में किया गया। इस अवसर पर लँगर की सेवा भी सरदार हरजीत सिंह अरोरा परिवार की ओर से हुई। इस मौके पर अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा, संरक्षक जितेंद्र सिंह सलूजा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा, कोषाध्यक्ष परमजीत सिंह छतवाल, सुजीत सिंह खालसा गुनबीर सिंह, जगजीत सिंह, गुरबचन सिंह सलूजा, पर्सन सिंह परमार, मेजर सिंह, वीरेंद्र सिंह वी के, बलदेव सिंह, मनजीत सिंह, मनमीत सिंह, दलजीत सिंह, लवशीत सिंह, चरणजीत सिंह, अरविंदर सागरी, महिला सत्संग अध्यक्ष बिंदु कालरा, गुरप्रीत कौर, गोल्डी कौर परमार, अमरजीत कोर बक्शी, कंचन कोर, रूबी कोर, डा.जेएस बक्शी, गोलू सिंह, महिंद्र अरोड़ा, संतोष कालरा, गुरमुख सिंह, पर्षद धर्मेंद्र उर्फ रूपेश, आदि उपस्थित थे संचालन सुरजीत सिंह ने किया।
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