पहले युद्ध विराम

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एस. एन. वर्मा

इजराइल हमास युद्ध अन्धकार और अस्भ्य युग में प्रवेश कर गया है। विश्व शक्तियां किस बात का इन्तजार कर रही है। इस्राइल स्वतन्त्र और समप्रभु राष्ट्र है। सभी जानते है स्वतन्त्र और समप्रभु राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय नियमों से बन्धे होते है जिन्हें युद्ध के समय पीड़ित और असहाय लोगो को मनवीय सहायता पहुचानी चाहिये उसमें रोक नहीं लगानी चाहिये। अल अहली अलआवी अस्पताल में धमाके को लेकर आरोप प्रत्यारोप जारी है। पर इस्राइल ने कुछ ठोस सबूत जुटाये है जिसके बल पर उनका कहना है अस्पताल में विस्फोट हमास आतंकवादियों ने कराये है। पर आतंकवादी संगठन हमास इसे इस्राइल की करनी बता रहा है। इस्राइल के सुरक्षाबल ठोस सबूतो के आधार पर कह रहे है गाजा में सक्रिय आतंकवादी संगठन फिलिस्तीनी इस्लाम जेहाद ने अस्पताल में धमाका कराया है। इस धमाके से अस्पताल में जितने महिलाऐ बच्चें और निर्दोश मारे गये है उनकी संख्या एक दो नहीं सैकड़ों में है। बहरहाल धमाका कराने वाला इस्राइल हो या हमास यह कान्ड निहायत अमानवीय है सोचकर दिल दहल जाता है। जिनके लोग मारे गये है उनके दुखों की कल्पना करके आंखे पनीली हो जाती है। युद्ध का यह स्वभाव है कि वह हर मानवीय पहलू को नजन्दाज कर संहार और ध्वस्तीकरण में लगा रहता है। उसे विनाश और हत्या से मतलब होता है। जितना बड़ा विनाश हो जितनी ज्यादा हत्याये हो युद्ध के सिपाही अपनी वीरता का तगमा मानते है। युद्ध की यही मानसिकता होती है जो खतरनाक बन जाती है।
सोच जाये तो युद्ध की शुरूआत करने वाले और युद्ध को न रूकवाने वाले दोनो बराबर के अपराधी ठहरते है।
हमास के अस्पताल पर हुये हमले को लेकर विश्व में तीखी प्रति़िक्रयाये आ रही है। लगता है जैसे कुछ देश इसकी प्रतीक्षा में थे कि उन्हें हमास के पक्ष में खड़ा होने के लिये एक बहाना मिल जाये। ये लोग युद्ध विराम लगाने या युद्ध जैसी कोई घटना न होने देने के लिये कोई इरादा नहीं रखते है। जा़हिर है इस घटना के विरोध में इस्राइल की तरफ से भी तीखी प्रतिक्रिया आ रही है। जैसे एक युद्ध प्रतिक्रियायों का भी चल रहा है। इस्राइल का कहना है हमास की अमानवीयता पर बहस की कोई गुन्जाइश नहीं है न तो उसके समर्थन में कोई खड़ा हो सकता है। यानी दुश्मनी का बदला दुश्मनी से। बदले और गुस्से से अभिभूत राष्ट्र अन्तराष्ट्रीय युद्ध नियमों और कानूनो को भूल जाते है। ज्यादा से ज्यादा विनाश ज्यादा से ज्यादा हत्या यही उनका लक्ष्य होता है। यह दोनो पक्षों के लिये लागू होता है। इसके लिये जो देश लड़ाई में उलझे दोनो देशो को उसकाते है मदद देते है वे भी उतने ही दोषी है जितना पहले आक्रमण करने वाला देश होता है।
इस समय शान्ती बहाली कराने की जरूरत है। पीड़ित घायलों को जीवन सामग्री दवा इत्यादी मुहैया कराने की जरूरत है। पीड़ित और घायल तो दोनो पक्षों में होगे उन्हें जीवन की बुनियादी जरूरतें दवा दारू आनज मुहैया कराने की जरूरत है। अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएं और तटस्थ देशों को युद्धरत दोनो देशो को एक टेबुल पर आमने सामने बैठा कर चर्चा कराने से पहले युद्ध बन्द कराये। इसके बाद दोनो का आपस में बिन्दुवार चर्चा कराये। जो समस्याये तुरन्त सुलझा सके तत्काल सुलझा दे वार्ता से दीर्घ कालीन समस्याओं के निराकरण के लम्बी और कई बैठक बुलाते रहे जब तक समाधान न मिल जाये। काम बहुत श्रमसाघ्य और लम्बे समय वाला होगा और संयम की परीक्षा भी होगी। अन्तरराष्ट्री एजेन्सियों की अग्नी परीक्षा होगी साथ ही तटस्थ देशो की भी।
चूकि इस्राइल का पलड़ा युद्ध में भारी दिख रहा है इसलिये उसे उदारता ज्यादा बरतनी पड़ेगी। हारने वाले को यह महसूस न कराये की वह विजेता है बल्कि बराबरी पर चर्चा हो। अगर वार्ता फेल होती है तो इस्राइल को आगे मुशकिलों का सामना करना पड़ सकता है। क्यों कि तब फिलिस्तीन इस्लामिक जेहाद जैसे संगठन और आतंकी समूह इस्राइल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर सकता है। जो बहुत थका देने वाला और परेशान करने वाला होता है। और बहुत लम्बा खिचता है। गुरिल्ला युद्ध वियतनामियांे का याद होगा जिन्होंने अमेरिका जैसे सम्पन्न और मजबूत राष्ट्र को पानी पिला दिया था।

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