आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए किसान करें गौ मूत्र का छिड़काव

0
199

अवधनामा संवाददाता

मिल्कीपुर- अयोध्या।cकिसानों को इस समय मौसम के प्रतिकूलता को दृष्टिगत रखते हुए आलू की फसल में विशेष निगरानी की आवश्यकता है।
बदली का मौसम है। ऐसी स्थिति में आलू की फसल को किसानों के लिए बचाना नितांत आवश्यक है। वातावरण में जब आद्रता 80% से ज्यादा हो जाती है, और मौसम के उतार एवं चढ़ाव होने से आलू की फसल में अगेती एवं पिछेती झुलसा/ पाल रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। मौसम में हो रहे बदलाव के चलते जहां किसानों की फसलों मे नुकसान होने की संभावना हैं।वही आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज की प्रसार निदेशक डॉक्टर ए पी राव से जब बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि मौसम में ठंड गर्म वातावरण के उतार एवं चढ़ाव होने से फफूदा का प्रकोप आलू की फसल पर पड़ता है। पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे फफूदी उभरने लगते हैं। ,
रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार और रंग में भी वृद्धि होती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां सिकडु कर गिरने लगती है, तनो पर भी काले धब्बे होने लगते हैं , जिससे आलू का आकार छोटा ही रह जाता है, तना एंव डंठल पर भूरे धब्बे बनाकर फसल की बाढ़ रोक देता है। तथा फसल जल सी जाती है। इस रोग के निदान के लिए किसान आलू की फसल में मैनको ज़ेब फफूदनाशी 0.25 प्रतिशत 2.5 ग्राम/ लीटर पानी मैं प्रथम छिड़काव करें, 10 दिन उपरांत रेडोमिल एमजेड या करजेड एम-81 या सेक्टिन 60 डब्ल्यूपी में से किसी एक दवा का 0.25 प्रतिशत 2.5 ग्राम/ लीटर पानी से छिड़काव करें, किसान जैविक क्षेत्र पर बचाव के तौर पर देसी गाय का मूत्र 1.0 लीटर 15-20 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें फसल के 50 से 60 दिन की अवस्था में प्रति एकड़ 10 से 12 किलोग्राम लकड़ी की राख का बुरकाव कर अपनी फसल को बचा सकते हैं। इस उपचार के बाद, आलू की अच्छी पैदावार ले सकते हैंं, साथ ही साथ पाला से बचााव हेतु 10 से 15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करके आलू के खेत में नमी बनाए रखना नितांत आवश्यक है।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here