अस्पताल में जगह पाने के लिए मच्छरदानी का सहारा ले रहे हैं कोरोना मरीजों के परिजन

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Family of Corona patients are resorting to mosquito nets to get a place in the hospital

अवधनामा संवाददाता

प्रयागराज: (Prayagraj) कोरोना महामारी के मुश्किल वक़्त में जहां एक तरफ मरीजों को अस्पतालों में बेड पाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है, तो वहीं संगम नगरी प्रयागराज में कोविड मरीजों के परिवार वालों व तीमारदारों को अलग ही मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. यहां लेवल थ्री के एसआरएन हॉस्पिटल में मरीजों के परिवार वालों को अस्पताल में रुकने की इजाज़त नहीं है, लिहाज़ा लोग बाहर पार्क में अपना वक़्त बिताते हैं. पार्क में सीमित जगह है और रुकने वालों की तादात ज़्यादा होती है, लिहाज़ा आसमान से आग बरसती गर्मी के बीच एक-एक इंच जगह पाने के लिए लोगों को खासी जद्दोजहद करनी पड़ती है. खुले आसमान के नीचे जगह पाने के लिए लोगों ने यहां अनूठा तरीका निकाला है, जो दिलचस्प तो है, लेकिन साथ ही सिस्टम के दावों की पोल खोलने और लोगों की परेशानी बयां करने वाला भी.

संगम नगरी प्रयागराज में मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल, जिले ही नहीं मंडल का यह कोविड का सबसे बड़ा अस्पताल है. लेवल थ्री के इस हॉस्पिटल में तकरीबन ढाई सौ मरीज भर्ती हैं. मरीजों के परिजनों व दूसरे लोगों को बिल्डिंग में जाने की इजाज़त नहीं होती, लेकिन फिर भी ज़्यादातर मरीजों के परिवार के कुछ सदस्य यहां बाहर पूरे वक़्त डेरा जमाए रहते हैं. बिल्डिंग के बाहर अस्पताल गेट के पास पार्कनुमा खुली जगह है. ज़्यादातर परिजन इस तपती दुपहरी में भी यहीं खुले आसमान के नीचे अपना वक़्त बिताते हैं. कई बार रात के वक़्त तो यहां इतनी भीड़ हो जाती है कि लेटने के लिए लोगों को जगह तक नहीं मिलती

कुछ लोगों ने अनूठा तरीका खोज निकाला है

जगह पाने के लिए कुछ लोगों ने अनूठा तरीका खोज निकाला है. तमाम लोग बिस्तरनुमा मच्छरदानी खरीदकर पार्क में रख देते हैं. इसी मच्छरदानी में परिवार के एक-दो शख्स कुछ देर लेटकर आराम कर लेते हैं तो ज़रूरी सामान भी इसी में रख दिया जाता है. जिसकी मच्छरदानी लगी होती है, उस जगह पर उसका कब्ज़ा बना रहता है. मच्छरदानी की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो जाता है तो साथ ही मच्छर व दूसरे कीड़े मकोड़ों से बचाव भी होता है. तमाम लोगों की मच्छरदानी पूरे चौबीसों घंटे लगी रहती है तो कुछ लोग शाम होने पर जगह घेरने के लिए इसे लगा देते हैं. लोगों की हफ्ते-दस दिन की ज़िंदगी इसी मच्छरदानी में सिमटकर रह जाती है. ये मच्छरदानी लोगों की जगह सुरक्षित कर देती है तो साथ ही कोरोना के संक्रमण से भी उनका बचाव करती है

मच्छरदानी में ज़िंदगी बिताने वाले कुछ लोग अपने मरीज को ठीक कराकर साथ घर ले जाते हैं तो कई लोगों को मायूस होकर मरीज के शव के साथ अस्पताल छोड़ना पड़ता है. जगह पाने का यह देसी जुगाड़ मारामारी और विवाद को भी बचाता है. वैसे तो सरकारी अमले को इन तीमारदारों को रुकने के लिए कोई जगह मुहैया करा देनी चाहिए. वहां कम से कम पानी-हवा और शौचालय का इंतजाम होना चाहिए, लेकिन जो नाकारा सिस्टम ज़िंदगी की जंग लड़ते गंभीर मरीजों को भी बेड व आक्सीजन नहीं मुहैया करा पा रहा है, उससे इस तरह की कोई उम्मीद करना शायद बेमानी होगा

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