सिद्धार्थनगर। नौगढ़ ब्लॉक अन्तर्गत ग्राम पंचायत साहा में आयोजित श्री रुद्र महायज्ञ कार्यक्रम अन्तर्गत श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास आचार्य ब्रम्हानंद शास्त्री जी ने कहा कि भगवान के कार्य में यदि अहंकार हुआ तो मानव को राक्षस होना पड़ता है। इसी कारण भगवान के द्वारपाल जय विजय राक्षस योनि में जन्म लिये। सृष्टि के लिए वृक्षों की भी उपयोगिता है। प्रकृति परमात्मा की अनुपम कृति है, अस्तु प्रत्येक मनुष्य को वृक्षों व पशु -पंक्षियो की रक्षा करनी चाहिए।
आचार्य ब्रम्हानंद शास्त्री जी ने कहा कि कलयुग के प्रभाव के कारण परीक्षित द्वारा ऋषि शम्मीक के गले में मरा हुआ सर्प डालने, मृत्यु निकट होने पर मोक्ष प्राप्ति हेतु के उपाय आदि का मार्मिक प्रसंग सुनाया।
राजा परीक्षित ने 16 वर्षीय शुकदेव महराज से पूछतेहैं कि हे भगवान मृत्यु के निकट होने पर मनुष्य को क्या करना चाहिए।
परीक्षित के इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य शुकदेव ने भगवान के महा विराट स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया।
सप्तम दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में श्रीकांत शुक्ल, अनन्त शुक्ल, राजेश जायसवाल, रिषि देव ओझा व अन्य श्रोता गण उपस्थित रहे।
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