अभाव भी नही रोक सके विकास का सफर, लौटा बनकर डॉक्टर

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Even lack could not stop the journey of development, returned by becoming a doctor

अवधनामा संवाददाता

बेटे का ख्वाब पूरा करने के लिए किसान पिता ने बेंच दी पुस्तैनी जमीन
मोहम्मद नसीम
सुबेहा बाराबंकी(Subeha Barabanki)। बेटे का ख्वाब पूरा करने के लिए किसान पिता ने एक तरह से सबकुछ दांव पर लगा दिया। वहीं पुत्र ने पिता की मेहनत व भरोसे को बेकार जाने नही दिया और छह साल बाद गले मे डॉक्टर की डिग्री लेकर लौटा। ऐसे लायक पुत्र को देख पिता और परिवार खुशी से फूला नही समा रहा, वहीं डॉक्टर बेटे की इस उपलब्धि से गांव वाले भी बहुत खुश है।
चेहरे पर सफल होकर लौटने की खुशी, लंबे समय बाद अपनों के बीच जाने का उत्साह, विजयी मुस्कुराहट और गले मे एमबीबीएस की डिग्री लेकर गांव पहुंचे विकास यादव की सफलता की चर्चा पूरे गांव ही नही इलाके भर में हो रही है। हैदरगढ़ क्षेत्र के कमेला गांव में रहने वाले डॉ. विकास यादव ने पिता का सर फख्र से ऊंचा कर दिया है। छह साल की मेहनत के बाद विकास  यूक्रेन देश से एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर अपने गांव लौटे है। डॉक्टर विकास बातचीत में अपनी सफलता के पीछे उनके पिता का हाथ होना बताते हैं। उनके डॉक्टर बनने तक का सफर उन्ही की जुबान से सुनिए, वो बताते हैं कि किसान का बेटा होकर डॉक्टर की पढ़ाई करना आसान नही था। क्योंकि हमारा पारिवारिक बैक ग्राउंड भी स्ट्रांग नही था। डॉक्टर बनना मेरा सपना था जिसे पूरा करने के लिए मेरे साथ साथ मेरे पिता विक्रम सिंह यादव को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। पढ़ाई के बीच मेरी बहन गंभीर बीमारी के चलते पैसों के अभाव में वह मौत के मुंह में समा गई। कुछ इसी तरह की बातें मुझे मन ही मन चुभने लगी जिसके बाद मैंने फैसला लिया कि अब मैं अपने गांव डॉक्टर बनकर ही लौटूंगा। मैंने अपने गाँव कमेला में रहकर 12वीं पास की। सब्जेक्ट बायो था, इसलिए डॉक्टर बनना ही बेस्ट ऑप्शन था। मेरी पढ़ाई को लेकर पिता काफ़ी परेशान थे। एक तरफ मेरी पढ़ाई दूसरी तरफ घर का ख़र्चा चलाना। कॉलेज करने के लिए हमारे पास रुपये नही थे। तब मेरा भविष्य बनाने के लिए मेरे पिता ने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दिए। एक एक रुपए के लिए हम मोहताज हो गए थे। हमारे घर की हालत देखकर लोग हसने लगे थे। तब मैंने सोच लिया था कि अब एमबीबीएस की डिग्री लेकर ही अपने गांव लौटूंगा। आज गांव आया हूं तो सब बेहद ही खुश है खास कर मेरे पिता। इससे बड़ी खुशी की बात मेरे लिए और कुछ भी नहीं हो सकती।
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