प्राकृतिक खेती से पर्यावरण संरक्षणः डा0 श्याम सिंह

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अवधनामा संवाददाता

बांदा। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अर्न्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा में मेरी लाइफ मिशन के अर्न्तगत पर्यावरण के लिए जीवन शैली अभियान दिनांक 22 मई से 05 जून तक चलाया जा रहा है जिसमें पर्यावरण संरक्षण हेतु विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कराये जा रहे हैं। आज दिनांक 02.06.2023 को जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर प्रदर्शनी सह कार्यशाला का आयोजन केन्द्र पर किया गया जिसमें 50 कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य मानव को सन्तुलित व पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है साथ ही कृषकों की आमदनी भी बढ़ी है किन्तु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में व्यय होता है और पर्यावरण का क्षरण हो रहा है साथ ही उत्पादकता भी घट रही है। प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है। प्राकृतिक खेती की सफलता के लिए पशुपालन विशेषकर देशी गाय को पालना आवश्यक है। फसलों की पोषक तत्वों की माँग को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि हमारी मृदा में लाभकारी जीवाणुओं की पर्याप्त संख्या हो। इनकी संख्या बढाने के लिए जीवमृत, बीजामृत एवं धनजीवमृत गाय के बोबर व गौमूत्र से ही तैयार किया जाती है। डा0 सिंह ने मिटटी में जैवविविधता बढाने के लिए फसल चक्र एवं जैविक खादों व कीटनाशकों के प्रयोग को आवश्यक बताया। आदर्श मानकों के अनुरूप तैयार जीवमृत, बीजामृत एवं धनजीवमृत का प्रयोग कर प्राकृतिक खेती करने पर पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या 01 एकड में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इसके अन्तर्गत क्षेत्रफल बढाया जाये ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आये तो इससे किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देश की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो।
केन्द्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ, डा0 मन्जुल पाण्डेय ने बताया कि जीवामृत सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है। इसको बनाने के लिए 10 ली0 देशी गाय का गौ मूत्र, 10 किग्रा0 ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किग्रा0 बेसन, 2 किग्रा0 गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 ली0 पानी में मिलाकर, इनकों जूट की बोरी से ढ़ककर छाया में रखना चाहिए। फिर सुबह-शाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए। अन्त में 48 घण्टे बाद छानकर सात दिन के अन्दर ही प्रयोग किया जाना चाहिए। डा0 पाण्डेय ने कहा कि प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय से 30 एकड तक की खेती की जा सकती है क्योंकि 01 एकड की खुराक तैयार करने के लिये गाय के 01 दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है।
केन्द्र के पशुपालन के विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती में गाय की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी। केन्द्र की कृषि प्रसार विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने प्राकृतिक खेती में सूचना संचार तकनीकी का प्रयोग के बारे में बताया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र की विशेषज्ञ डा0 प्रज्ञा ओझा, ई0 अजीत कुमार निगम व कमल नारायन का सहयोग रहा।

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