सिंटा बचाएगा एक्टर्स को मायानगरी के दलदल से:नूपुर अलंकार
कानपुर महानगर। जब भी हम फिल्म और टीवी की दुनिया के किसी एक्टर को देखते हैं तो यही सोचते हैं कि उसके पास दौलत, शोहरत और कामयाबी की कोई कमी नहीं है। हमारी नजरों में उसका जीवन आनंदमय होता है, लेकिन ऐसा नहीं है, इस सब के पीछे एक बहुती दर्द भरी सच्चाई छुपी होती है। उनकी जिस अभिनय कला को देखने के बाद हम तनाव से मुक्त हो जाते हैं उसी अभिनय के बोझ के चलते एक्टर्स तनाव में आ जाते हैं और उनका जीवन समान्य न रह कर जटिलताओं से भर जाता है।
मायानगरी में रह रहे एक्टर्स को तनाव व जटिलताओं से मुक्त जीवन जीने में मदद करने के लिए ‘’सिने एण्ड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन’’ (सिंटा) ने एक अनोखा कदम उठाया है। सिंटा की रणनीति को जानने लिए हमने उसकी वर्किंग कमेटी की सदस्य नुपुर अलंकार से बात-चीत कि, जोकि फिल्म इंड्स्ट्री में जाने वाले और वहां काम करने वाले एक्टर्स के लिए अत्यंत्र उपयोगी है। प्रस्तुत है उनसे बात-चीत के प्रमुख अंश
मुम्बई का ट्रैवेल टाइम लगभग 2.30 से 3 घंटे का होता जिस लोकेशन में शूटिंग के लिए एक्टर्स को बुलाया जाता है। चूंकि यहां काम करने वाले एक्टर्स 20 से 25 वर्ष की आयु के होते हैं तो उनके अंदर अधिक उर्जा व जोश होता है। जिसका गलत फायदा उठाते हुए निर्माता उनसे इतना अधिक काम लेते हैं कि धीरे-धीरे उनकी तबियत खराब होने लगती है, बीमार होने पर उनको हटा कर दूसरे कलाकार को ले लिया जाता है। जो एक्टर्स बहुत दिनों से इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं उन सब की सेहत में गलत प्रभाव पड़ रहा है। हमसे पहले जो भी लोग सिंटा कि कमेटी में रहे है उन्होंने एक्टर्स की ऐसी समस्याओं के लिए कोई भी सशक्त कदम नहीं उठाए। जिस कारण ऐसी समस्याएं दिन पर दिन विकराल होती चली गयीं। इसी का एक ज्वलंत उदाहरण है टीवी सीरियल ऐसी दिवानगी देखी नहीं कहीं के सेट पर अभिनेत्री ज्योति शर्मा चार बार मुर्छित हुयी, तो मुझे सेट पर जा कर उसकी मदद करनी पड़ी। वहीं अभिनेता प्रनव मिश्रा को टांग में सूजन व दर्द होने के बावजूद 4 माह तक छुट्टी नहीं दी गयी। जिस कारण काम के भीषण दबाव व तनवा के चलते दोनों ने खुद को इस सीरियल से अलग कर लिया। इसन दोनों से 18 से 20 घंटे का काम लिया जा रहा था। ऐसा सिर्फ इन दोनों एक्टर्स के साथ ही नहीं हो रहा है इस पंक्ति में ऐसे बहुत से एक्टर्स शामिल हैं। लेकिन अब सिने एण्ड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (सिंटा) की केअर कमेटी ऐसे मामलों में एक्टर्स की मदद करने का बीड़ा है। सिंटा अब एक्टर्स का शोषण नहीं होने देगा। जिसके लिए ऐसे एक्टर्स की काउंसलिंग की जाएगी, उनको यह बताया जाएगा कि ओवर वर्क करने से उनको आगे क्या बीमारियां होने वाली है जिसके चलते उनको काम भी नहीं मिलेगा। इसके लिए तीन दिन का 20, 21 और 22 फरवरी को सेशन रखा गया। जोकि तीन घंटे प्रति दिन का रहा। जिसमें सिंटा एक्टर्स को बताया गया कि जब वो लोग बहुत बिजी शेड्यूल में होते हैं तो उनको कब और क्या खाना चाहिए, जिससे तबियत में कोई ज्यादा बुरा प्रभाव न पड़ें। जब नींद पूरी न हो तो कैसे अपने शूटिंग टाइम में भी योग के द्वारा खुद को ठीक रखना है। इस वर्कशॉप में एक खास बात यह रही कि एक्टर्स को मेडिटेशन की जानकारी देने के साथ ही उससे होने वाले अनेकों फायदों के बारे में बताया गया। ऐसी सभी महात्वपूर्ण विष्यों की जानकारियां देने व काउंसलिंग के लिए सिंटा द्वारा बहुत सारे योगा इंस्ट्रेक्टर्स, फीजियोथेरेपिस्ट, एक्यूप्रेसर-एक्यूपंचर स्पेशलिस्ट, साईक्रेटिस्ट और आयुर्वेद के डॉक्टर्स को बुलाया गया था। जिनका प्रतिदिन 40-40 मिनट के अलग-अलग सेशन रखे गए थे।
इसमें विशेष जानकारी यह भी दी गयी कि देश के दूर-दराज के भागों से सुनहरे भविष्य के सपने लिए अभिनय की दुनिया का हिस्सा बनने जो भी युवक-युवतियां मुम्बई एक्टर बनने आते हैं उनको सर्व प्रथम सिंटा से सम्पर्क करना चाहिए। उन सभी को सिंटा का मेम्बर बनने से पहले यह जान लेना चाहिए कि इंडस्ट्री के हालात कैसे हैं और वो किस दलदल में घुसने जा रहे हैं, क्या वो इसके लिए तैयार है और अगर नहीं है तो सिंटा मेम्बर बनने के बाद उनको तैयार करने की गारंटी सिंटा कि तरफ से मैने खुद ली है। जो भी युवा मुम्बई की फिल्मी दुनिया में काम करने के लिए आते हैं, उनको यहां पर गलत हाथों द्वारा मिसगाइड किया जाता है कि यहां तो समझौता करना पड़ता है, काम हासिल करने के लिए काम के घंटे नहीं देखे जाते तो मैं यह कहूंगी कि आने वाले युवाओं को ऐसे लोगों से बचना जरूरी है। जिसके लिए उनकी हर प्रकार की मदद सिंटा के द्वारा की जाएगी। हमारी संस्था भारत सरकार के श्रम मंत्रालय से सम्पर्क में हैं, जिसके तहत हम इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिए एक कानूनी व प्रभावी नियमावली बनवाने का प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में किसी प्रकार का श्रम कानून हमारी इंडस्ट्री में काम नहीं कर पा रहा है। मेरा एक प्रयास और भी है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे समाचार पत्रों के द्वारा मेरी बात युवाओं तक पहुंचे, जिससे वह लोग इंडस्ट्री के अच्छे-बुरे हालातों से पूरी तरह परिचित हो सकें।
सर्वोत्तम तिवारी की रिपोर्ट