मुसलमानों की जान की कोई क़ीमत नहीं?

0
144
Hindi and Urdu Newspaper India
वकार रिजवी
9415018288

आज 2019 के संसदीय चुनाव में वोट डालने का आखिऱी दिन है, जिसको जितना बोलना था दिल खोलकर बोल लिया, जितनी नफऱत फैलानी थी दिल खोलकर फैला ली, पुराने गड़े मुरदे जितने निकालने थे निकाल लिये। 1984 के बाद से जब भी चुनाव हुआ है सभी पार्टियां दिल्ली में हुये शर्मनाक सिक्ख हादसे को हमेशा भुनाने की कोशिश करती रहीं हैं और इसबार भी जितना कर सकते थे किया हालांकि इन पार्टियों ने उन सिक्ख परिवार वालों के जख़़्मों पर कभी कोई मरहम तो नहीं रखा बस वोट के लिये इस्तेमाल किया जबकि इस हादसे की भरपाई कांग्रेस ने हर तरीक़े से करने की कोशिश की। इन दंगों से मुतासिर लोगों को जितना मुआज़ा दिया गया शायद ही किसी को मिला हो, इस हादसे पर जितनी बार शर्मिन्दगी का इज़हार किया गया, शायद ही कभी ऐसे हादसे पर किया गया हो, आरोपियों को सज़ा भी हुई, इत्तेफ़ाक़ान ही सही लेकिन एक अल्पसंख्यक में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधि को डा. मनमोहन सिंह के रूप में प्रधानमंत्री बनने का अवसर भी मिला लेकिन पूरे चुनाव में न तो किसी पार्टी ने 2002 के गुजरात दंगों का जि़क्र किया न 1992 में बाबरी मस्जिद शहीद होने के बाद मुम्बई में सैकड़ो मारे गये निर्दोषों का नाम लेने की कोई हिम्मत कर सका, न भागलपुर किसी को याद रहा न मेरठ न मुरादाबाद और न मुजर्फ़रनगर, आखिऱ क्यों ? क्योंकि यहां मारे जाने वाले सब के सब मुसलमान थे ? 1984 में जो हुआ, वह शर्मनाक था, समाज के लिये भी और देश के लिये भी और सरकार के लिये तो बहुत ही शर्मनाक, तो 2002 के गुजरात दंगे कैसे किसी के लिये ज़ीनत का सबब हो सकते हैं लेकिन 2 प्रतिशत से कम सिक्ख समुदाय के खि़लाफ़ हुये अत्याचार को तो लोग आज 35 साल बाद भी याद रखे हुये है लेकिन 18 प्रतिशत मुसलमानों का नाम लेने के लिये कोई भी पार्टी तैयार नहीं जबकि उसका वजूद ही मुसलमानों के वोट से ही है। कहीं किसी जगह किसी भी पार्टी की तरफ़ से कोई भी आवाज़ तो आई होती कि 1984 की तरह मेरठ, मुरादाबाद, भागलपुर, मुम्बई, गुजरात और मुजफ़फरनगर में जो हुआ वह भी शर्मनाक था किसी पार्टी ने इनके परिवार वालों के साथ इंसाफ़ नहीं किया, तो हम करेंगें इनके साथ इंसाफ़, हम करेंगें इनके साथ न्याय, हम देंगें इनका हक़, हम रखेंगें इनके परिवार वालों के जख़़्मों के मरहम, लेकिन सब ख़ामोश जैसे सबके लब ही सिल गये क्योंकि शायद इनकी नजऱों में मुसलमानों की जान की कोई क़ीमत नहीं क्योंकि शायद ख़ुद मुसलमान की नजऱ में भी मुसलमान की जान की कोई क़ीमत नहीं।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here