1939 के बाद का भूकम्प

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एस एन वर्मा

तुर्किय में 1999 7.4 तीव्रता वाला भूकम्प आया था जिसमें 17000 लोग मारे गये थे। अभी आये भूकम्प की तीव्रता 7.8 है। यह 1939 के बाद का सबसे बड़ा भूकम्प है। इसमें अब तक 65-75 लोगो के मारे जाने की खबर है। भूकम्प उस समय में आया तब जब नीद की गोद में थे। जीरो डिगरी से नीचे का टम्प्रेचर बर्फ से जमा इलाका उस पर से बारिश कितनी भयावह मौत हुई होगी। जो मर गये वे तो आपदा से मुक्त हो गये पर जो बचे हुये है उनकी आपदा तो मौत से भी ज्यादा भयावह है। सभी देशो ने बचाव दल, दवाइयां, उपकरण भेजे है। यहां तक की युद्ध से जूझ रहा, युक्रेन ने भी मदद का एलान किया है। मदद देने में भारत अग्रगणी है दवाइयां आदमी, उपकरण सभी कुछ भेजा है। ग्यारह हजार से ज्यादा इमारते ढह गई है। भूकम्प तुर्की और सीरिया दोनो जगह आया है। 25000 से ज्यादा लोग घायल है। जैसे-जैसे विपरीत मौसम से जूझते हुये बचाव काम आगे बढ़ता जायेगा, सम्पत्ति नाश, मौत और घायलों के आंकड़े बढ़ते जायेगे। अब तक 500 से ज्यादा झटकें आ चुके है। तुर्की में 55 हजार बचाव कर्मी दिन रात काम जुटे हुये है। भूकम्प से सिरिया का इलाका भी प्रभावित है। विश्व स्वस्थ्य संगठन का अनुमान है मौतो का आकड़ा आठ गुना बढ़ सकता है। भूकम्प प्रभावितों की संख्या 2.30 करोड़ तक पहुंच सकती है।
तुर्की के राष्ट्रपति ने भूकम्प की चपेट में आये 10 प्रान्तों में इमर्जेन्सी और रेड एलर्ट का ऐलान कर दिया है। राहत और बचाव अभियान के तहत 65 देशे ने हाथ बढ़ाये है। 2660 कर्मियों को भेजा है। तुर्की के बचाव कर्मियो के साथ मिलकर 55 हजार से ज्यादा लोग बचाव काम में जूझ रहे है।
जाहिर है ऐसे अवसरों पर आर्थिक तंगी बेकाबू हो जाती है। तुर्की की करेन्सी लीरा एक डालर के मुकाबले 18.85 पर पहुंच गई है। महंगाई दर भी उछल कर 57 प्रतिशत के करीब पहंुच गई है।
12 घंन्टो के बीच 41 से ज्यादा झटके आये। तुर्की के साथ सीरिया भी प्रभावित हुआ। दोनो जगहों के 1700 लोगो के मरने की खबर न्यूज एजेन्सी दे रही है। 1000 लोग टर्की में मौत की खबर दी है। यह आकड़ा सोमवार के शाम तक का है।
तुर्की और सीरिया में जिस रीजन में भूकम्प आया है उस रीजन को सिसमिक फाल्ट लाईन कहा जाना है। जिसे अनातोलिया टेक्टोनिक ब्लाक नाम से जाना जाता है। प्रायः जहां बड़े भूकम्प आते है वहां हफ्तों इसके झटके आते रहते है। हां तीव्रता कम होती जाती है। तुर्की और सीरिया इसी रीजन में आते है। सिसमिक फाल्ट लाइन तुर्की के उत्तरी मध्य और पूर्वी रीजन से होकर गुजरती है। इस लिहाजा से हिमालय के क्षेत्र को भी बहुत संवदेनशील माना जाता है। यही वजह है कि दिल्ली तक छोटे-छोटे झटके आते रहते है। अभी हाल के दिनों में कई बार ये झटके आ चुके है। हां वे इतने खतरनाक नहीं है। भूकम्प प्रायः जो कम गहराई से आते है वेे काफी विनाशक होते है। क्योकि भूकम्प से प्रेशर बनता है वह पृथवी के सतह के करीब होता है। भूकम्प के लिये अभी विज्ञान में कोई ऐसा तरीका नहीं निकल पाया है। जिससे भूकम्प आने की पहले ही चेतावनी दी जा सके।
भूकम्प का केन्द्र बिन्दु सीरिया से लगते तुर्की के दक्षिणी सीमा पर था। इस स्थान पर सिरिया शरणार्थियों की बड़ी आबादी रहती है। सीरिया में भी भूकम्प से भारी तबाही हुई है। सीरिया पहले से ही गृह युद्ध का संकट झेल रहा है। महंगाई और शरणार्थी समस्या से सीरिया पहले से ही जूझ रहा है। भूकम्प ने तो उसके संकट को कई गुना बढा दिया है। तुर्की में अगले मई में आम चुनाव होने है। देखना है तुर्की राष्ट्रपति कैसे इन सबसे निपटते है।
भारत ने बचाव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है यह स्वागत योग्य है। मेडिकल उपकरण, डाग स्क्वाड, ड्रिल मशीन और भी कई उपकरण भेजे है। इस मुशकिल घड़ी में तुर्की के साथ-साथ सीरिया को भी बचाव दल से मदद मिलेगी। सीरिया चूकि महंगाई और गृह युद्ध से पहले से ही त्रस्त है। उसके लिये यह सहायता बहुत राहत देने वाली होगी। क्योकि महंगाई और शरणार्थी मोर्चे पर पहले से ही फंसा हुआ है।
विकराल प्रतिकूल मौसम तो समस्या है ही यहां के रिहायशी ढांचे दूर-दूर है हर जगह पहुचना, मलबे में दबे लोगो को निकालना बडा चुनौती भरा काम बना हुआ है। पर मानवता से ओत प्रोत लोग जान की बाजी लगा कर बचाव कार्य में लगे हुये है। राहत पहुंचाने में लगे हुये है। सुनकर गर्व से सीना फूल जाता है। तमाम युद्ध और स्वार्थ के टकराहटों के बीच दुनियां में अभी मानवता बची हुई है। भारत द्वारा प्रदत्त मदद ने हम भारतवासियों को बहुत खुशी और सकून दी है। दुनिया के मानवता से लबलब जज्बे को सलाम।
मानव का स्वाभाव है रोता है फिर हंसता है। यह क्रम पूरे जिन्दगी भर चलता रहता है। नाटककार शेक्सपियर को कहना है समय सबसे बड़ा मरहम है। कालान्तर में खुशी हो या गम धीरे-धीरे धूमिल पड़ता जाता है। इस विनाश लीला के बीच बच्चन जी की कविता की दो लाइने जीवन का पूरा दर्शन समझा देती है।
नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख,
प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नवगान फिर फिर।

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