एक शताब्दी से अधिक पुराने पुल पर गुजर रही दर्जनों यात्री और मालवाहक ट्रेन

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अवधनामा संवाददाता

सुमेरपुर हमीरपुर। यमुना बेतवा नदी के संगम पर बना रेलवे पुल को 110 वर्ष का सफर तय कर चुका। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बने इस पुल में आज भी रेलगाड़ियों का आना जाना है। रेलवे के अधिकारियों के अनुसार यह पुल अभी तक ठीक है। इस वजह से दूसरे पुल की नींव नहीं रखी गई है। इसी पुल को प्रतिवर्ष मरम्मत करके चलाया जा रहा है। रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए इसी के समानांतर दूसरा पुल बनाया जा रहा है। कानपुर बांदा रेलखंड में पत्योरा गांव के समीप यमुना बेतवा संगम पर अंग्रेजी शासनकाल के दौरान झूलेदार पुल का निर्माण कराया गया था। इस पुल  में 1912 में निर्माण कार्य पूर्ण होने का लोहे में अंकित सिलापट लगा हुआ है। तब से इस पुल से लगातार रेलगाड़ियों को आवागमन निरंतर हो रहा है। जानकारी के अनुसार इस रेलखंड का निर्माण अंग्रेजों ने उस समय माल ढुलाई के लिए किया था। आजादी के बाद इस रूट पर पहली मर्तबा कानपुर से बांदा के मध्य सुबह शाम यात्री गाड़ी का संचालन शुरू किया था। मौजूदा समय में चित्रकूट एक्सप्रेस, बेतवा एक्सप्रेस, गरीबरथ, चित्रकूट कानपुर इंटरसिटी के अलावा कानपुर मानिकपुर तथा कानपुर खजुराहो पैसेंजर ट्रेन का आवागमन होता है। इसके अलावा 15-20 से ज्यादा माल गाड़ियां सीमेंट, गिट्टी, कोयला, नारियल आदि सामग्री लेकर इस रूट से प्रतिदिन गुजरती है। जानकारों के अनुसार उस समय में और आज के समय में जमीन आसमान का अंतर है। उस समय के परिपेक्ष्य में इस समय कई गुना अधिक भार इस पुल से गुजारा जा रहा है। सीमेंट की जगह ककई ईंट और चूने से निर्मित पुल की कोठियां आज भी ज्यों के त्यों सीधी खड़ी हैं। इन्हीं कोठियों की मजबूती को आधार बनाकर आज भी धड़ल्ले के साथ रेलगाड़ियां गुजारी जा रही हैं। इस पुल की मियाद 100 वर्ष पूर्ण हो चुकी है। अभी यह कितने वर्षों तक कार्यरत रहेगा। इसकी घोषणा नहीं की गई। रेल पथ के अवर अभियंता उपेंद्र कुमार ने बताया कि रेल मंत्रालय ने दो वर्ष पूर्व दक्षिण भारत की एक कंपनी से इस पुल का सर्वे कराकर रिपोर्ट तलब की थी। कंपनी के इंजीनियरों ने पुल का फिटनेस प्रमाण पत्र जारी करके आवागमन के लिए मुफीद बताया था। आगे कितने वर्षों तक इस पुल से संचालन किया जा सकता है। इसकी जानकारी उनके पास नहीं है।
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