अवधनामा संवाददाता
मसौली बाराबंकी। ग्राम दहेजिया में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक पंडित महेंद्र मृदुल ने कौशल्या जन्म एव कौशल्या विवाह की कथा सुनाकर लोगो को भक्ति में भाव विभोर कर दिया।
कथा व्यास पंडित महेंद्र मृदुल ने कहा की एक बार जंगल में रावण अपने रथ पर आरूढ़ मुनियों से रक्त लेने के उद्देश्य से निकला वहीं ब्रम्हा जी के पुत्रों से भेंट हो गई जिनका नाम सनक, सनंदन, सनातन, सनत कुमार था रावण ने उनको देख कर प्रणाम नहीं किया ऋषियों ने रावण से कहा की हे दशकंठ तुमको बहुत गर्व हो गया है तुम ऋषियों मुनियों को दुःख देते हो यह ठीक नहीं है कुछ दिन और लंका में राज्य कर लो फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे ।
रावण ने कहा हमारी नाभि में अमृत है हमारी मृत्यु नहीं होगी तब ऋषियों ने क्रोध में कहा की दक्षिण दिशा में राजा भानुमंत का राज्य है राजा की रानी के अगर कोई कन्या हुई उसके जो पुत्र होगा उसके हाथों से तुम्हारी मृत्यु अवश्य हो जायेगी। रावण लंका चला गया दूतो को राजा भानुमंत के राज्य में लगा दिया और आदेश दिया जब राजा के कोई कन्या जन्म लेगी उसका गुप्त रूप मार देना। कुछ समय के बाद राजा भानुमंत की रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या जन्मी उसी का नाम कौशल्या रखा जब कन्या को दूत मार न पाए और कन्या बड़ी विवाह योग्य हो गई तो रावण को चिंता सताने लगी दूतों के द्वारा जब पता चला कि कन्या उपवन में पूजन करने को जाती है तो रावण अपना भेष बदलकर कर गया और कौशल्या को चुरा लिया एक संदूक में बंद कर समुद्र के किनारे राघव मत्स्य के रख दिया और लंका चला गया एक दिन राजा दशरथ राघव मत्स्य के वहां गए संदूक खोला कौशल्या को मुक्त किया अयोध्या को ले आए विवाह किया ।
रावण पमाली पहाड़ पर जाकर तप किया ब्रम्हा जी प्रकट हुए बोले वरदान मांग लो तब रावण ने यह वरदान मांगा की दशरथ के कोई पुत्र न जन्म ले ।
इस मौके पर मास्टर रामनरेश यादव, मुनेश्वर, हरिनाम, आशाराम, नरेंद्र, राजेंद्र, अनिल वर्मा, शहजराम वर्मा सहित भारी संख्या में भक्तिगण मौजूद रहे।