वैश्वीकरण से‌ हिंदी का विकास संभव नहीं है- प्रोफेसर अनंत मिश्र

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अवधनामा संवाददाता
कुशीनगर। आज जब पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है हिंदी आज भी राष्ट्र भाषा बनने का राह देख रही है। यह हमारे देश की राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमजोरी का परिणाम है। हिंदी को सिर्फ सम्पर्क भाषा कहने और मानने से काम नहीं चलने वाला। हिंदी संख्यात्मक दृष्टि से भी और मूल्य परकता की दृष्टि से भी राष्ट्र भाषा बनने की योग्यता रखती है। इसे राष्ट्र भाषा होना चाहिए।
उक्त बातें बुधवार को बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर‌ अपने‌ विचार रखते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अनंत मिश्र ने कही। उन्होंने कहा कि केवल वैश्वीकरण से‌ हिंदी का विकास संभव नहीं है। उन्होंने हिंदी भाषा की विशिष्टता को बचाये रखने की वकालत करते हुए उसके‌ साथ हो रहे आडंबर से‌ बचने की सलाह दी। उन्होंने ‌हिंदी को‌ लेकर एक ठोस नीति और कार्यक्रम अपनाये जाने की जरूरत रेखांकित की। उन्होंने भारतीय भाषाओं की पारस्परिकता को लेकर उदार दृष्टिकोण अपनाये जाने पर बल‌ दिया। ‘हिंदी एक भाषा नहीं एक सोच है’ इस विचार को प्रस्तावित करते हुए उन्होंने हिंदी भाषा के अनूठेपन को उजागर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सिद्धार्थ पांडेय ने वैश्वीकरण और हिंदी के अंतर्संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने बाजार की मजबूती के साथ हिंदी के‌ शक्तिशाली होने जाने की बात कहीं। उन्होंने हिंदी के वैश्विक प्रसार का तथ्यात्मक विवेचन किया और आशा व्यक्त की यह राष्ट्रभाषा के पद को सुशोभित करेगी। महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ अमृतांशु शुक्ल ने अकादमिक दुराग्रहों से‌ निकलकर हिंदी को विकसित करने की बात कही। उन्होंने राजनीतिक वाद-विवादों से उठकर हिंदी को‌ संपर्क भाषा का विस्तार करने का आह्वान किया। स्वागत भाषण देते हुए डॉ राजेश कुमार सिंह‌ ने कहा कि वैश्वीकरण के‌ दौर में हिंदी एक समृद्ध भाषा है। उन्होने तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी को‌ विकसित करने पर जोर दिया।
अंग्रेजी विभाग के आचार्य डॉ आमोद राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी अपने विकास के लिए किसी राजनैतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति की मोहताज‌ नहीं है, यह निरंतर अपने बोलने‌ वालों की वजह से‌ व्यापक और विस्तृत हो रही है। संगोष्ठी की भूमिका रखते हुए कार्यक्रम संयोजक एवं संचालक डॉ गौरव तिवारी ने कहा कि सरकार प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस जैसे आयोजन करके भले रस्म अदायगी करती हो, एक पखवाड़े बाद जमीन का इसका प्रभाव शून्य होता है। जिस हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को हिंदी के प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है। वहाँ स्क्रिप्ट भी रोमन में लिखे जाते हैं। न्यायालयों की भाषा आम जन की भाषा नहीं हो पाई है। आभार ज्ञापन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य दीपक ने किया। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण से हुआ।
कार्यक्रम में डॉ राम भूषण मिश्र, डॉ राजेश कुमार, डॉ सत्येन्द्र गौतम, डॉ उर्मिला यादव, डॉ सत्य प्रकाश, डॉ रीना मालवीय, डॉ ज्ञान प्रकाश मङ्गलम, डॉ इन्द्रजीत मिश्रा, डॉ बीना कुमारी, एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें।
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