इटावा,जसवंतनगर। जो अपना और अन्य द्रव्यों का सत्यार्थ श्रद्धान,ज्ञान, आचरण है वह संसार परिभ्रमण से छुड़ाकर परमसुख में धरनेवाला धर्म है। यह बात नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर जैन बाजार में चल रहे आठ दिवसीय जैन संस्कार शिक्षण शिविर के अंतर्गत बाल ब्रह्मचारी राहुल जैन ने श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार जैनग्रंथ के स्वाध्याय के दौरान कही।उन्होंने आगे कहा वास्तव में वीतराग धर्म ही शरण है। अपने जीवन में हमें हमेश ही निर्ग्रन्थ मुनि दीक्षा की भावना भानी चाहिए जिससे हमारा इस जन्म मरण रूपी संसार का अभाव हो सके और हम अपने परम उत्तम मोक्ष सुख को प्राप्त कर सकें।
रात्रि में आयोजित हुई वाद विवाद प्रतियोगिता में प्रतियोगियों ने बहुत ही उत्साह से भाग लिया।”धर्म से धन होता है”या”धन से धर्म”प्रतियोगियों ने अपना अपना मत रखा।जिसमें वनी जैन,लक्ष्य जैन,चिराग जैन,श्रेयांश जैन,जिनेश जैन, दिव्य जैन,मोक्ष जैन,आकर्ष जैन,निश्चल जैन,आशी जैन आदि ने अपनी तर्क बुद्धि से अपने विचारों को रखा।प्रतियोगिता इतनी रोचक थी कि देर रात्रि तक लोग देखने के लिए डटे रहे।