क्रिकेट देवता का 50वां जन्मदिन

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एस. एन. वर्मा

सचिन तेन्दुलकर ने 16 साल के उम्र पाकिस्तान के खिलाफ 1989 में अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था। 24 साल तक क्रिकेट खेलने के बाद 16 नवम्बर 2013 को खेल से सन्यास लिया। सचिन कि तुलना दुनिया के महानतम बल्लेबजो से की जाती है। क्रिकेट प्रेमियो के निगाह में उन्हें देवत्व का दर्जा प्राप्त था। उनके नाम पर रिकार्डो की भरमार है। इन्टरनेशनल मैच 664 खेला है, जिसमें 200 टेस्ट 463 वन डे इन्टरनेशलन 1 टी-20 इन्टरनेशनल शामिल है। क्रिकेट में उनका सबसे लम्बे कैरियर रहा है। 22 साल 91 दिन क्रिकेट के हर फारमेट में खेला उनके नाम सबसे ज्यादा रन 34357 बनाने का रिकार्ड है। टेस्ट में 15921, वन-डे इन्टरनेशनल में 18426, टी-20 में 10 रनों का अम्बार है। उनके नाम 100 शतक है, 51 शतक टेस्ट में, 49 शतक वन डे में, अर्ध शतको को संख्या 164 है जिसमें टेस्ट में 68 और वन-डे में 96 अर्ध शतक बनाये है। आस्टेªलिया के खिलाफ 20 शतक बनाकर एक टीम के खिलाफ सर्वाधिक इन्टरलेशनल सेन्चुरी बनाने वाले का खिताब हासिल किया। टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा 2050 चौक्का जड़े। वन डे इन्टरनेशनल में सबसे ज्यादा 2016 फोर बनाये। 1998 में एक साल में सर्वाधिक शतक बनाने वाले बैटर बने उन्होंने 9 शतक बनाये। एक कैलेन्डर साल में सबसे ज्यादा वन-डे इन्टरलेशनल में 1894 रन बनाये। वन-डे कयम में सर्वाधिक रन का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम हो। 6 वर्ल्ड कप में 2278 रन बनाये, जिसमें 6 शतक और 15 अर्धशतक शामिल है।
किसी एक वन डे वर्ल्ड कप में सबसे अधिक रन 673 वर्ल्ड कप 2003 में मैच खेल कर बनाये। 90 और 99 रनो के बीच 28 बार आउट होने का सर्वाधिक रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है। इतना शानदार रिकार्ड किसी क्रिकेट के देवता का ही सकता है।
तेन्दुलकर के चरित्र पर पिता की नम्रता और माता के धैर्य का भारी असर था जिसने उन्हें महान क्रिकेटर बनाया। पूरे परिवार का सहयोग तो मिला ही। बताते है पिता ने कभी नही कहा तुम मेरे पुत्र हो जो कहता हॅू करो क्रिकेट सीखने के लिये 12 वर्ष की उम्र में परिवार छोड़ कर चाचा चाची के पास रहने चले गये जिन्हें कोई औलाद नहीं थी। तेन्दुलकर के परिवार से इनका मधुर सम्बन्ध था तेन्दुलकर को अपने पुत्र की तरह रक्खा।
तेन्दुलकर का अपने घर से शिवाजी पार्क जाते थे जहां उनके कोच आ रचेकर क्रिकेट सिखाते थे। वहां जाने में काफी समय खर्च हो जाता था रात को घर पहुचते थे सीखने का समय बहुत कम मिलता था। गुरू आस्वेकर तेन्दुलकर की प्रतिभा से प्रभावित थे। उन्होंने राय दी की तेन्दुलकर सहर दशमरम बिज्ञा मन्दिर आ जाय जहां आरचेकर क्रिकेट सिखाते थे। वह शिवाजी पार्क आ गये। 12 साल की उम्र में जब उन्हें क्रिकेट के लिये घर छोड़कर चाचा चाची के यहां जाने की तैयारी चल रही थी तो पिता ने उनसे पूछा क्या परिवार और दोस्तों को छोड़कर जाने के लिये तैयार हो। तेन्दुलकर ने तुरन्त हामी भर दी। तेन्दुलकर बताते है चाचा के घर वह आशा भोसले का भजन सुनते हुये उठते थे। चाची उन्हें मोडकर 4 चपातियां देती थी कहती थी एक बजे तक के लिये ठीक रहेगा। तेन्दुलकर चपातियों पर चीनी और घी गिराकर लपेट कर रख लेते थे। इस तरह क्रिकेट की दीक्षा ली। उनके बड़े भाई अजित ने तेन्दुलकर के क्रिकेट टेलेन्ट को बहुत पहले ही पहचान लिया या जिन्दगी भर तेन्दुलकर के साथ लगे रहे उन्हें इस मकाम तक पहुचाने में उनका सहयोग तेन्दुलकर भूलते नहीं है।
पाकिस्तान के साथ जब उन्होंनें टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया तो रन नहीं बना सके थे नया जान कादिर ने बाल फेकी जो उनके पैड से लगकर स्टम्प पर जा गिरी। वह बहुत निराश हुये उन्हें विश्वास था वह बड़े बैटर बनेगे वह डगमगा गया। टीम मैनेजर और साथियों ने उन्हें समझाया। फिर तेन्दुलकर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आखिरी मैच वानखेडे स्टेडियम में 2013 में खेला। भीड़ सचिन सचिन चीख रही थी। तेन्दुलकर पिच को आखिरी सलाम करने पहुचे भावनाओं से भरे हुये कि इस क्षण के बाद अब कभी किसी क्रिकेट पिच पर नहीं आऊंगा। आंसुओं को अपने कैप में छिपा रहे थे। धोनी और विराट कोहली आखिरी मैच खेलने के लिये पिच तक पहुंचाया था। स्टार टीवी वालेे आये थे बिदाई कवर करने के लिये। तेन्दुलकर ने पूछा वह कुछ देर बोल सकते है। टीवी वालो ने कहा यह हमारे लिये सौभाग्य की बाते होगी। तेन्दुलकर अपना पहला मैच हमेशा याद करते रहे है। जब डब्यू मैच में पाकिस्तान में जल्दी आउट हो गये तो टीम मैनेजर ने समझाया यह स्कूली क्रिकेट नहीं है तुम बहुत जल्दी में थे। यहां ठहर कर खेलना होता है। उसके बाद तो कभी मुड़कर नहीं देखा। अब डाक्टर पत्नी के साथ मिलकर एक एनजीओ चलाते है। हाल में उनके पुत्र अर्जुन ने डेब्यू किया है। भारत रत्न पाने वाले सबसे कम उम्र के शख्स बने। विनम्रता उसी तरह है लड़कपन भी उसी तरह है। पूछने पर नये क्रिकेटर को टिप्स देते रहते है। क्रिकेट के देवता को उनके 50 वे जन्मदिन के लिये अवधनामा परिवार की ओर से बधाई। तुम जियो हजारो साल साल के उम्र हो पचास हजार।

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